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August 1971

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जिस प्रकार सिंह-शावक सिंह की क्रोधाग्नि, भयंकरता अथवा हिस्सा से नहीं डरता सके साथ खेलता है और दौड़-दौड़ कर उसके गले में लिपटता है, उसी प्रकार सत्य का प्रेमी सत्य की भयंकरता से भयभीत नहीं होता ओर उसी के पास दौड़ जाता है।

सत्य का व्यवहार शत्रु को भी मित्र बना देता है। संसार में अजातशत्रु होने की इच्छा रखने वाले को सत्य का अनुयायी होना चाहिए। सत्य एक ऐसा तेजस्वी साथी है जो हर आपत्ति में मनुष्य की रक्षा किया करता है। कभी धोखा नहीं देता और न कभी कुछ चाहता है।

जहाँ हम सच्चा व्यवहार करते हैं। वहीं जीवित रहते हैं। असत्य का सहारा लेने की भावना आते ही मर चुकते हैं। सत्य को जानते हुए भी असत्य को प्रश्रय देते समय हमारे हृदय में जो एक ग्लानि होती है वह एक ऐसा विष है जो हमारे हाड़-माँस में ही नहीं मन बुद्धि ओर आत्मा तक में विंध जाता है और इस प्रकार हम अपने सर्वनाश के बीज बो लेते हैं।

-महात्मा गाँधी


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