मानव-जीवन का अनुपम सौभाग्य
मानव-जीवन भगवान् की दी हुई सर्वोत्तम विभूति है। इससे बड़ा वरदान और कुछ हो नहीं सकता। सृष्टि के समस्त प्राणियों को जैसे शरीर मिले है, जैसे सुविधा साधन प्राप्त है, उनकी तुलना में मनुष्य की स्थिति असंख्यों गुनी श्रेष्ठ है। दूसरे जीवों का सारा समय और श्रम केवल शरीर रक्षा में ही लग जाता है, फिर भी वे ठीक तरह उस समस्या को हल नहीं कर पाते। इसके विपरीत मनुष्य को ऐसा अद्भुत शरीर मिला है जिसकी प्रत्येक इन्द्रिय आनन्द और उल्लास से भरी पूरी है, उसे ऐसा मन मिला है जो पग-पग पर हर्षोल्लास का लाभ ले सकता है, उसे ऐसी बुद्धि मिली है जो साधारण पदार्थों से अपनी सुख सुविधा के साधन विनिर्मित कर सकती है। मानव-प्राणी को जैसा परिवार, समाज, साहित्य तथा सुख-सुविधाओं से भरा-पूरा वातावरण मिला है वैसा और किसी जीव को प्राप्त नहीं हो सकता।
इतना बड़ा सौभाग्य उसे अकारण ही नहीं मिला है। भगवान् की इच्छा है कि मनुष्य उसकी इस सृष्टि को अधिक सुन्दर, अधिक सुखी अधिक समृद्ध और समुचित बनने में उसका हाथ बटाये। अपनी बुद्धि क्षमता और विशेषताओं से अन्य पिछड़े हुए जीवों की सुविधा का सृजन करें और परस्पर इस तरह का सद्व्यवहार बरते जिससे इस संसार में सर्वत्र स्वर्गीय वातावरण दृष्टिगोचर होने लगे।
-सन्त तिरुवल्लुवर