जन्म-जन्मान्तरों तक पीछा न छोड़ने वाली शत्रु-शराब

August 1971

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विहार प्रान्त के सहर्षो शहर में एक छोटी आयु के बच्चे ने एक दिन माँ को हैरत में डाल दिया। माँ ने बच्चे के लिये गिलास में दूध तैयार किया गिलास हाथ में दिया तो बच्चे ने गिलास फेंक दिया और कहा-मुझे तो दूध नहीं शराब चाहिए। जिस घर में कभी शराब की बूँद भी नहीं आई थी बच्चे द्वारा उसकी माँग किया जाना आश्चर्यजनक था। जब वह गुत्थी नहीं सुलझा पा रहे थे बच्चे ने खुद बताया मैं तो पिछले जन्म से ही पियक्कड़ हूँ एक दिन मैंने और मेरे एक मित्र ने खूब शराब पी थी तब मेरे मित्र ने नशे में मुझ पर वार किया और छुरे से 17 स्थानों को छेद डाला। यह कह कर उसने अपने शरीर में 17 दाग भी दिखाये मानो वह इसी जन्म के दाग हों।

यह घटना जहाँ पुनर्जन्म का प्रतिपादन करती थी वहाँ यह भी बताती थी कि शराब मनुष्य का ऐसा शत्रु है जो कई जन्मों तक भी पीछा नहीं छोड़ती। ऋषि कहते हैं कि प्राण का आधार प्रत्यक्ष रूप से सूर्य है तो अप्रत्यक्ष रूप से दूषित होना चाहिए। यह दूषित संस्कार ही अन्य जन्मों में जन्मजात बुराई के रूप में परिलक्षित होते हैं जैसा कि इस लड़के के स्वभाव में देखने को मिलता है। लोगों की दिलचस्पी बढ़ी। लोगों ने पुलिस का अपराध रजिस्टर देखा तो सचमुच पता चला कि कुछ दिन पूर्व एक ऐसी घटना घटी थी जिसमें शराब के नशे में एक व्यक्ति ने अपने मित्र को छुरे से 17 बार वार कर मार डाला था।

बुद्धि पर पड़ने वाला शराब का दुष्प्रभाव, संस्कारों पर होने वाली उसकी दूषित प्रतिक्रिया सर्वाधिक चिन्तनीय है किंतु मनुष्य की अक्ल उतना दूरदर्शी विवेचन कर सकने की स्थिति में न हो तो उसे इतना तो जाना ही पड़ेगा कि शराब स्वास्थ्य के लिये प्रत्यक्ष विष है। मनुष्य का हृदय बहुत छोटा और कोमल होता है पर शरीर के स्वास्थ्य और जीवन की स्थिरता का केन्द्र बिन्दु वही हैं भगवान् ने उसे उपयोगिता के आधार पर ही इतना सुरक्षित बनाया है उसके लिये हड्डी का बक्स ही तैयार करना पड़ा है। कोई भी दुश्मन साधारणतः हृदय को हानि नहीं पहुँचा सकता पर मदिरा उस मित्र की तरह वार करती है जो देखने में विश्वास पात्र लगता है पर मौका पाते ही जेब उड़ा देता है। शराब दिल को बरबाद करने वाली चामुण्डा है उससे बचने में ही मनुष्य जाति का कल्याण है।

एक मिनट में औसत 70 बार धड़कने वाला संवेदनशील हृदय हर धड़कन के साथ 2 ओंस रक्त निकाल कर शरीर को सींचता है इसे अधिक रक्त निकालने के लिये पम्पिंग क्रिया का बहुत तेज होना आवश्यक है पर उस स्थिति में शुद्ध और अशुद्ध रक्त वाले कोठों को पृथक रखने वाली झिल्ली (क्यूकस मैम्ब्रेन) में सूजन आ जाती है शराब पीने की स्थिति में हृदय के लिये शक्ति भर चेष्टा करते हैं इसलिये शरीर की क्रियायें अस्त-व्यस्त हो जाती है और यदि हृदय कमजोर हुआ तो झिल्ली भी संभल नहीं पाती हार्ट फेल हो जाता है और मनुष्य मर जाता है। जो लोग पहली बार शराब पीने से मरते नहीं उनका हृदय कमजोर होता चला जाता है और वे भी एक दिन अकाल में ही काल कवलित हो जाते हैं।

हृदय शरीर का सर्वाधिक संवेदन शील भाग है इसलिये उसकी रक्षा पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है वैसे उसका असर शरीर के प्रत्येक अंग पर दूषित ही पड़ता है। पेट को ही लिया जाये जहाँ शराब का सबसे सीधा और पहला आक्रमण होता है। अन्न जहाँ पहुँचता है पेट के उस भीतरी भाग पर आँतों में कुछ ग्रन्थियाँ होती है जिनसे एक प्रकार का रस निकलता है इसे “गैस्टिक जूस” कहते हैं यही रस पाचन क्रिया में सहायक होता है। शराब इन ग्रन्थियों में सूजन पैदा कर देती है फलस्वरूप पेट की पाचन शक्ति जाती रहती है और पेट हमेशा के लिये खराब हो जाता है। कई बार तो आँतों में बार-बार धक्के लगने के कारण घाव (गैस्टिक अर्ल्सस) भी हो जाते हैं जिनका ठीक होना कठिन होता है नशेबाज प्रायः सभी पेट के बीमार होते हैं वह आंतों की अग्नि मन्द पड़ जाने के कारण ही होती है।

शराब पीने वाले लोगों के फेफड़े यदि कुछ बोल पायें तो यह कहने से न चूकें-भगवन्! हमें दूसरा जन्म इस शराबी के पेट में मत देना। फेफड़ों का शरीर में महत्व-पूर्ण स्थान है इनमें करोड़ों की संख्या में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं इनमें रक्त भरता है ताकि जब श्वाँस ली जाये तो वह इस अशुद्ध रक्त का कार्बन डायऑक्साइड बाहर निकल जाये और आक्सीजन भीतर आ जाये शरीर में समस्त शक्ति, प्राण ओज का आधार यह आक्सीजन ही होता है। सामान्यतः 1 मिनट में 17 बार फेफड़े श्वाँस खींचते और आक्सीजन शरीर में पहुँचाते हैं किन्तु शराब पीने से आधा घण्टे तक श्वाँस-प्रवास क्रिया बहुत अधिक तेज हो उठती है ओर नशा कम होते ही वह गति सामान्य से भी नीचे चली जाती है। उस समय फेफड़ों का काम शरीर को आक्सीजन देना नहीं रह जाता वरन् जिस प्रकार किसी आग लग गये मकान के सदस्य खाने-पीने का काम छोड़कर जले हुये टुकड़ों को निकालने मलबा समेटने आदि अनावश्यक कार्यों में लग जाते हैं उसी प्रकार शराब की स्थिति में फेफड़े उल्टी क्रिया शुरू कर देते हैं लेना चाहिये था उन्हें आक्सीजन और देना चाहिये था कार्बन डाई आक्साइड पर लेने लगते हैं कार्बन डाई आक्साइड (जिसके कारण मूर्छा आती है, और छोड़ने लगते हैं आक्सीजन प्रवास क्रिया (रेस्पिरेटरी को मोटे) नीचा हो जाने पर फेफड़ों शराब और कार्बन डाई आक्साइड की सफाई में लगना पड़ता है इस प्रकार शराबी व्यक्ति के फेफड़ों का अधिकाँश काम सुरक्षात्मक हो जाता है पोषक नहीं शराबी के मुख और देह का पीलापन उसी के परिणाम होता है ।

इसी प्रकार शराबी के गुर्दों में भी खराबी आ जाती है जिसके कारण शराबी लोगों को पुरुषत्व से वंचित होते तक पाया गया है। गुर्दों (किडनी) का काम है शरीर की रासायनिक प्रक्रिया को सन्तुलित रखना। शरीर के सभी कोश जहाँ आवश्यक पोषण तत्व ग्रहण करते रहते हैं वहाँ उनसे नष्ट हुये पदार्थ भी निकलते हैं जिन्हें गुर्दे यूरिया तथा यूरिक एसिड बनाकर पेशाब के रूप में निकालते रहते हैं। आहर-बिहार में असन्तुलन के कारण कई बार शरीर में फास्फेट, सल्फेट तथा पोटैशियम क्लोराइड की मात्रा बढ़ जाती है उस बढ़े हुये अनावश्यक द्रव्य को मूत्र बनाकर निकाल न दिया जाये तो शरीर में अनेक प्रकार की विकृतियाँ और बीमारियाँ उठ खड़ी हो सकती हैं सामान्य अवस्था में गुर्दे यह काम करते रहते हैं और मूत्र के द्वारा शरीर की गन्दगी बाहर निकालते रहते हैं इससे शरीर स्वस्थ बना रहता है। गुर्दे के पास एक गुच्छे (ग्लोमेरुलस) के रूप में छोटी-छोटी रक्त कोशिकायें (कैपिलरीज) पाई जाती हैं यहाँ गुर्दे रक्त में आई गन्दगी को भी रोकते हैं पर जब शराब पी जाती है तो रक्त के साथ शराब भी यहाँ आ धमकती है फलस्वरूप गुर्दे स्वाभाविक गति से अधिक काम करने लगते हैं उसका एक दुष्परिणाम तो यौन उत्तेजना के रूप में आता है। नशेबाज प्रायः सभी कामुक होते हैं वह इसी कारण है) दूसरा गुर्दे पूरी तरह मूत्र छान नहीं पाते जिससे रक्त की सारी अशुद्धियाँ फिर से लौट जाती हैं और अपने साथ में मूत्राशय की गन्दगी भी ले जाती हैं जिससे बुद्धि में दूषण उत्पन्न हो जाता है। शराबी आदमी की बुद्धि कुण्ठित होने लगती है उनकी विवेक शक्ति उस गंदगी के कारण ही जाती रहती है।

यह सारी बातें बताती हैं शराब कोई अच्छा पेय नहीं वरन् वह स्वास्थ्य की दुश्मन है जो भी उससे बच जाये वह बुद्धिमान और जो उसमें फँस जाये उसे अभागा ही कहा जा सकता है।


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