जीवनी शक्ति की विद्युत चुंबकीयता

August 1971

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शक्ति तत्वों के बारे में वैज्ञानिक जानकारियाँ जितनी बढ़ती जा रही है जीवन और प्राण से सम्बन्धित पाश्चात्य मान्यतायें उतनी ही तेजी से गलती और बदलती जा रही हैं, भारतीय तत्वदर्शन की सत्यता की सम्भावनाओं में उतनी ही तीव्र वृद्धि होती जा रही है। साधनाओं की-योगाभ्यास की कठिन प्रक्रियाओं को पार कर भारतीय तत्वदर्शियों ने जो खोजें की है पाश्चात्य विज्ञान उधर ही बढ़ रहा है प्रस्तुत लेख में पाश्चात्य विज्ञान द्वारा प्रमाणित मानव जीवन के विद्युत चुम्बकीय स्वरूप का विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे पाठकों को जीवन-शक्ति, प्राणतत्व की कल्पना का एक नया रूप मिलेगा।

एक बार डॉ. रेगनाल्ट एक रोगी की परिचर्या कर रहे थे, मानसिक तनाव के उस बीमार को वे जब जब पूर्व पश्चिम दिशा की ओर सुलाते “ओसिलोट मीटर” की सहायता से पता चलता है कि कष्ट बढ़ गया है जब कि चारपाई की दिशा उत्तर-दक्षिण करते तत्काल लाभ मिलता। उन्होंने बताया यह घटना इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य का पृथ्वी की चुम्बकीय धाराओं से सम्बन्ध है डॉ. रेगनाल्ट की यह खोज एक दिन विकास बाद और मनुष्य के अीवा जैसे एक कोषीय जीव से उत्पत्ति की बात को खण्डित कर दे तो कुछ आश्चर्य नहीं प्राण या जीवन शक्ति एक सनातन तत्व हैं जो विस्फोट के कारण ब्रह्मांड के किसी केन्द्र-पिण्ड से बहता हुआ सारे विश्व में नाना प्रकार की रचनाओं के रूप में व्यक्त हो रहा हैं।

कुत्ते, बिल्लियाँ, बैल एक बार जिस रास्ते को देख लेते हैं दुबारा उधर कभी जाना हो तो वे उधर से आसानी से लौट आते हैं। इनके सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि वे प्राकृतिक चिन्हों की मदद से यात्रायें कर लेते होंगे पर कुछ पक्षी, मछलियाँ हजारों मील लम्बी यात्रायें करती है, रात में करती हैं, विभिन्न ऋतुओं में करती हैं तो भी नियत स्थानों में ही पहुँचती हैं यह एक आश्चर्य हैं कि वे बिना किसी दिशा निर्देश के अंतःवृत्ति द्वारा किस प्रकार इस तरह की लम्बी यात्रायें सम्पन्न कर लेते हैं।

योरोपीय सारस ठंडक के दिनों में योरोप से उड़ती हैं और अफ्रीका जा पहुँचती हैं। काले सिर वाले कौवे (हूडेड क्रो) अबाबीले 6000 मील यात्रायें करके एक स्थान से दूसरे स्थानों तक पहुँच जाती हैं। उन्हें कोई दिशा ज्ञान न होने पर भी वे नियत स्थानों में कैसे पहुँच जाते हैं यह आश्चर्य का विषय था। यात्रायें अधिकाँश रात में होती है, तारों का कोई ज्ञान हो पक्षियों के बारे में ऐसे भी कोई तथ्य प्रकट नहीं अतएव आश्चर्य होना स्वाभाविक ही हैं। जीव-शास्त्रियों ने खोज की और पाया कि रहस्य कुछ भी हो पर एक बात निश्चित रूप से साफ हो जाती हैं वह यह कि सभी पक्षी पृथ्वी की चुम्बकीय रेखाओं के समानान्तरण प्रवास करते हैं प्रयोगों से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है।

एक बार कुछ कौवों को पकड़ कर उनके शरीर में कुछ चिन्द बाँध दिये गये। यह कौवे उत्तर पूर्व दिशा में प्रवास के आदी थे। इस बार उन्हें प्रशा (जर्मनी) में पकड़ा गया और वहाँ से 500 मील पश्चिम ले जाकर कील नहर के किनारे छोड़ गया। इस बार उन्होंने उड़ान भरी और स्कैंडेनेविया में जाकर उतरे। पहली उड़ान वाले मार्ग से इस मार्ग की तुलना की गई तो स्पष्ट ज्ञान हो गाय कि यह यात्रा-पथ पहले प्रवास पथ से ठीक समानान्तर था। ह्वेल और सालोमन मछलियों के प्रयोग से भी यही बात सामने आई और उससे एक बात पूर्ण स्पष्ट हो गई कि जीव-जन्तुओं का जीवन चुम्बक-शक्ति से प्रभावित और प्रेरित होता है। इन प्रयोगों में शियर-वाटर (जल में तैरने वाले पक्षी) का उदाहरण सर्वाधिक आश्चर्य जनक था इसे अटलाँटिक महासागर के एक किनारे पर छोड़ा गया वहाँ से वे 3050 मील लम्बी यात्रा सम्पन्न कर स्कोरवोम द्वीप के अपने निवास स्थान पर जा पहुँचे।

जीव-जगत चुम्बकीय शक्ति से बहुत अधिक प्रभावित पाया जाता है। टरमाइट कीड़ा अपना घर ठीक पृथ्वी की चुम्बकीय रेखाओं के समानान्तरण बनाता है। पृथ्वी पर कभी चुम्बकीय आँधियाँ आती है तो दीमक चींटियाँ तक विक्षुब्ध हो उठती हैं। यहाँ तक कि जीव कोशों (लाइफ सेल्स) का सूत्र विभाजन भी अपनी प्रारम्भिक होता है। फ्रोमोजोम हमेशा सेलों के ध्रुवों की ओर ही चलते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि जीवनी-शक्ति विद्युत चुम्बकीय क्षमता से ओत-प्रोत अथवा वैसी ही कोई शक्ति है।

जीव जन्तु ही नहीं मनुष्यों के जीवन भी चुम्बकीय शक्ति से प्रभावित होते हैं। 1845 में डॉ. रीचेनबैक ने अनेक लोगों पर उनके स्वप्नों का अध्ययन कर बताया कि पूर्व की ओर सिर ओर पश्चिम की ओर पैर करके सोने में बड़ी बेचैनी होती है। जबकि उत्तर-दक्षिण सोने में सुखद अनुभूतियाँ होती है। डॉ. क्लैरिक तथा डूरविले के प्रयोग भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं ओर बताते हैं कि स्वप्नों में दिखाई देने वाले दृश्यों का सम्बन्ध कैसे भी हो चुम्बकीय शक्ति से ही हैं। डॉ. रेगमाल्ट, अम्बाँस भुलर, लैंप्रिस आदि ने भी उक्त मान्यताओं की पुष्टि की है।

पृथ्वी की चुम्बक शक्ति के बारे में यद्यपि वैज्ञानिक अभी कल्पनायें हो करते हैं और अनुमान लगाते हैं कि पृथ्वी के गर्भ में मैगनेटाइट या फेरस आक्साइड की विशाल राशि संग्रहित है उसी के फलस्वरूप पृथ्वी एक विशाल चुम्बक की तरह काम करती है मानवीय जीवन या जीव जन्तुओं का चुम्बकीय धाराओं से प्रभावित होने का कारण उसके शरीर में लौह युक्त होमोग्लोबिन का होना बताते हैं पर वस्तुतः यह दोनों ही कारण सूर्य के प्रकाश किरणों की विद्युत चुंबकीयता के कारण है। पृथ्वी को चुम्बक बनाने का काम सूर्य करता है। पिछले एक लेख में ध्रुव प्रभा के निर्माण की व्याख्या करते समय यह बात प्रकट हुई है। अखंड-ज्योति के पिछले एक अंक में “पत्थर में भगवान्” शीर्षक में यह बताया गया है कि सूर्य के प्रकाश कण (फोटोन्स) ही जीवन का आधार भूत तथ्य है। पुरुष के शरीर में पाया जाने वाला “होमोग्लोबिन” यह प्राण ही हैं जो सूर्य से निःसृत होता है और वायु द्वारा, इच्छा शक्ति द्वारा अन्न द्वारा हमारे शरीरों में पहुँचता रहता है स्त्री के शरीर में इसे ही “रयि” कहते हैं विपरीत ध्रुव संचय होने के कारण ही स्त्री-पुरुषों में परस्पर आकर्षण का स्वभाव पाया जाता है।

डॉ. मैरिनेस्को ने तो कई प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि चुम्बकत्व हमारे मानसिक संस्थान को भी प्रभावित करते हैं वे मस्तिष्क की तीसरी वेन्ट्रिकल में धन विद्युत प्रविष्रुट कर निद्रा ला देते थे। विद्युत और चुम्बक लगभग एक जैसी ही शक्तियाँ और परस्पर परिवर्तनीय है। उन्होंने यह भी दिखाया कि स्वप्न की अनुभूतियाँ भी चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित होती हैं। हम ऐसे सैकड़ों उदाहरण दे चुके हैं कि कई बार मनुष्य के स्वप्न नितान्त सत्य पाये जाते हैं इससे प्रतीत होता है कि चुम्बक शक्ति में विचार, सर्वज्ञता, सर्व व्यापकता के सारे लक्षण विद्यमान है यदि ऐसा ही हैं ध्रुव प्रभाओं (अरोरल लाइट) द्वारा जीवात्मा के ऊर्ध्व या अधोगामी लोकों में प्रस्थान की भारतीय मान्यतायें भी गलत नहीं होनी चाहिए। पुराणों में वर्णन आता है-

नाथवीथ्युतरं यच्चं सप्त्तर्षिभ्यश्र दक्षिणम् । उत्तर सवितुः पन्था देवयान इति स्मृतः ॥

उत्तरं यद गस्तस्य अजवीथ्याश्च दक्षिणम् । पितृयनः सर्वै पन्था वैश्वानर पथाद् बहिः॥

अर्थात्-नाथ वीथी के उत्तर और सप्तर्षि से दक्षिण सूर्य का जो उत्तर की तरफ का मार्ग है उसे देवयान कहते हैं। अगस्त के तारे से जो उत्तर और अजवीयी दक्षिण है वह वैश्वानर मार्ग से बाहर पितृयान का मार्ग है।

यह मार्ग पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति सूर्य के प्रकाश कणों के सम्मिलित रूप से बनते हैं उनका स्वरूप विद्युत चुम्बकीय ही होता है जैसा कि पिछले ध्रुव प्रभा वाले लेख में दिया है। धन और ऋण विद्युत कणों का एक दूसरी ओर आना-जाना ही विद्युतीय चुम्बक शक्ति का क्रम है वैदिक भाषा में इसे ही “एति च प्रेति च” कहा है इसे ऋग्वेद में-

अन्तश्ररति रोचनास्य प्राणाद पानती, व्यख्यनमहिषो दिवम् (ऋग्वेद 10।189।2

अर्थात्-प्राण अपान रूप में स्पन्दित यह शक्ति ही जीवन का आधार हैं। यों उसका मूल आधार सूर्य हैं-

आकृष्णोन रजसा वर्त्तमानो निवेशयत्रमृतं मर्त्यच। हिरण्य येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन॥

अर्थात्-काले वर्ण के लोकों से विचरता हुआ मृत्य ओर अमृत अर्थात् प्रकृति और प्राण (धन और ऋण या उत्तरी ध्रुव चुम्बकत्व व दक्षिणी ध्रुव चुम्बकत्व) दोनों सुव्यवस्थित करता हुआ सुवर्णमय रथ से सविता (आदित्य प्राण) समस्त लोकों को देखता हुआ, दर्शन देता हुआ आ रहा है।

जहाँ अब यह प्रसिद्ध होता जा रहा है कि जीवनी शक्ति विद्युत चुम्बकीय तत्व है वहाँ उसके सूर्य लोक से निसृत होने का प्रमाण भी वैज्ञानिकों को मिल रहे हैं सूर्य में काले धब्बों का वैज्ञानिकोँ द्वारा अंकन इस बात की पुष्टि करता है कि सूर्य लोक का सम्बन्ध किसी और भी सुविशाल बीज ग्रह से अथवा ब्रह्मांड से है। इस सम्बन्ध में आगे की खोजें स्वर्ग मुक्ति और एक विश्व-व्यापी सत्ता के अस्तित्व ओर उसकी प्राप्ति की आवश्यकता का ही बोध करायेगी।


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