शब्द तो ब्रह्म है मंत्र उसकी पराशक्ति

August 1971

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न्यूयार्क का माउण्ड सिनाई हॉस्पिटल। एक जख्मी युवक आता है, दुर्भाग्य से उसकी अत्यधिक तेज वोल्टेज वाले तार का स्पर्श कर लिया था। औषधि से कोई हिस्सा नियंत्रण में आ गया किंतु हाथ की कुछ उंगलियाँ इतनी भयंकरता से जली थी कि उनको काट देने के अतिरिक्त कोई उपाय सम्भव नहीं दीख रहा था तब कुछ डाक्टरों ने मन्त्र शक्ति (?) का सहारा लिया। मन्त्र से भयंकर जली हुई उंगलियां भी ठीक हो गई।

“एचीब्स ऑफ फिजीकल मेडिसिन एण्डरि हैबिलेशन” पत्रिका में ही छपी एक अन्य घटना-एक महिला स्नायु की गड़बड़ी से हाथ की उंगलियों की जख्मी हो गई थी। वह उंगलियों से हाथ की हथेली भी नहीं छू सकती थी। उसका मन्त्र (?) से इलाज किया गया और वह महिला कुछ ही दिन में सामान्य काम-काज तथा उंगलियों से जूतों के फीते तक बांधने में समर्थ हो गई। “नर्व्स” के ऐसे 90 प्रतिशत रोगी इस प्रकार ठीक हुये हैं।

मस्से के लाइलाज रोगियों पर जर्मन के एक डॉक्टर ने मन्त्र शक्ति (?) का प्रयोग किया और पाया कि 15 दिन के प्रयोग से मस्से का नाम निशान तक ऐसे गायब हो गया जैसे “गधे के सिर से सींग”।

पेरिस के सालपेट्र-पेट्री हॉस्पिटल में पहली बार कटे हुये शरीर के 27 रोगियों पर मन्त्र शक्ति (?) का प्रयोग किया गया और उनमें से 19 पूर्ण रूप से अच्छे हो गये शेष 8 आर्थिक। जर्मनी के ही कुछ डॉक्टरों ने कान के 16 रोगियों पर प्रयोग किया मन्त्र शक्ति (?) का, यह वह रोगी थे जिन्हें न तो शल्य चिकित्सा ठीक कर सकती थी और न ही औषधियाँ। इस नई चिकित्सा पद्धति से इन रोगियों में से 6 तो तुरन्त अच्छे हो गये 6 आँशिक ठीक हुये, कुल 4 ही ऐसे थे जिन पर उसका कुछ प्रभाव नहीं पड़ा जबकि डॉक्टर यह मान रहे थे कि एक दिन हम अवश्य ही कान के कठिन से कठिन रोगों का 80 प्रतिशत सफल इलाज कर लेंगे 20 प्रतिशत के लिये ही कुछ अधिक समय लग सकता है।

एक बार अमरीका के राष्ट्रपति कैनेडी कनाडा गये। एक वृक्षारोपण समारोह में वृक्ष लगाने के तुरन्त बाद उन्हें अकड़न और दर्द अनुभव हुआ। उनके डॉक्टर जानेट ट्रावेल ने जब देखा कि सामान्य औषधियों से उपचार सम्भव नहीं तो आधुनिक विज्ञान की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि शब्द शक्ति (?) की ओर उनका ध्यान गया। उसी के प्रयोग से राष्ट्रपति कैनेडी अच्छे भी हुए। आज जर्मनी स्केनडीनवीया, फ्राँस, ब्रिटेन और अमरीका में इस शक्ति का प्रयोग हो रहा है, और उनके आश्चर्यजनक परिणाम सामने आ रहें है।

ऊपर जिस मन्त्र शक्ति का उल्लेख किया गया है वह वास्तव में भारतीय पद्धति से प्रयोग की गई मन्त्र शक्ति नहीं है। उसे मशीनों द्वारा उत्पादित पराध्वनि (अल्ट्रासाउंड) चिकित्सा कहते हैं तथापि उसमें जो सिद्धान्त प्रयुक्त होता है उसमें और भारतीय मन्त्र विद्या के सिद्धान्त में कोई अन्तर नहीं है अन्तर कुल इतना है कि भारतीय योगी और तत्वदर्शी मनुष्य-शरीर को ही एक परिपूर्ण यन्त्र और भावनाओं को उच्च शक्ति वाली विद्युत शक्ति मानते हैं जबकि भौतिक विज्ञान शब्दों के अति सूक्ष्म कम्पन मशीनों द्वारा पैदा करता है और विद्युत-स्त्रोत के लिये विद्युत-उत्पादी-डायनेमो का प्रयोग करता है।

मन्त्र शक्ति भारतवर्ष की एक चिर-परिचित पराशक्ति है और आज भी उसका प्रयोग अनेक रोगों के उपचार और सिद्धियों सामर्थ्यों की प्राप्ति में किया जाता है। सर्प के काटने जैसे भयंकर विष को गाँवों के तान्त्रिक ठीक कर लेते हैं, बिच्छू, गोह और कुत्तों के काटने का, पाण्डु रोग, मूर्छा, मिर्गी टाइफ़ाइड का इलाज भी मन्त्र शक्ति से होता है। दिसम्बर 1967 की कादम्बिनी में पेज 18 में “शब्द ब्रह्म का प्रतीक मन्त्र” शीर्षक से लेखक श्री गोविन्द शास्त्री ने एक घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि एक पाण्डु रोगी को एक मंत्रज्ञ द्वारा ठीक करते मैंने अपनी आँखों से देखा। मंत्रज्ञ ने काँसे की थाली में हाथ रखवा कर मन्त्र बोलना शुरू किया। थाली में पानी भरा था। जैसे-जैसे वह मन्त्र फूँकता था थाली का पानी पीला होता गया और रोगी अच्छा होता गया। कुल दो दिन के उपचार से रोगी पूर्ण रूप से स्वस्थ और चंगा होकर घर लौट गया।

योग वशिष्ठ में मन्त्र की चिकित्सा शक्ति पर प्रकाश डालते हुये लिखा है-

यथा विरेक कुर्वन्ति हरीतक्यः स्वभावतः। भवनावशतः कार्य तथा परलवादयः॥ 6।1।81।39

अर्थात्-जैसे हर्र खाने से पाचन संस्थान में तीव्र गति होती है और दस्त लग जाते हैं उसी प्रकार दृढ़ भावना से यरलव आदि मन्त्रों के अक्षर शरीर पर असर करते हैं।

शब्द शक्ति और भारतीय योगियों द्वारा उसके अद्भुत ज्ञान का उल्लेख करते हुये लिखा है कि वेद में मन्त्रों के अशुद्ध उच्चारण का निषेध किया गया है और उनमें अनिष्ट की संभावना व्यक्त की गई हैं यह बात इस बात का प्रमाण है कि भारतीय शब्द शक्ति की महान महत्ता से अतीत काल से ही परिचित रहे हैं। जर्मन विद्वान बेवर ने भी इसी प्रकार का मंतव्य प्रकट किया है।

कहने की आवश्यक नहीं कि “शब्द” या ‘ध्वनियाँ हर व्यक्ति को प्रभावित करती है। किसी बच्चे ने कभी शेर की दहाड़, हाथी की चिंघाड़ना न सुनी हो और उसे एकाएक सुनने को मिल जाये तो वह घबरा जायेगा हालाँकि उसे यह पता नहीं होगा कि शेर कोई हिंसक जीव है। कोयल की कूक से प्रसन्नता और कौवे की काँव-काँव से कर्कशता का स्वतः भान होता है। शब्द एक प्रकार का आलोड़न है जैसे कोई पानी को मथे और कोई को दूर कर दे उसी प्रकार शब्दों के कम्पन न केवल विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करते हैं वरन् वह कम्पन “संवहन” की शक्ति भी रखते हैं और काई के समान ही विजातीय द्रव्य को खींच कर बाहर भी निकाल सकते हैं। शरीर में कुछ ऐसे चक्र ग्रन्थियाँ, गुच्छक और उपत्यिकाएं होती है जो शब्दों की ध्वनियों को अपने-अपने ढंग से प्रभावित और प्रसारित करती हैं भाव विज्ञान के ज्ञाता मंत्रज्ञ इन स्वर लहरियों को ही रोग निवारक शक्ति के रूप में प्रयोग करते रहें हैं यद्यपि आज इस विद्या के जानने वाले लुप्तप्राय हो चले तथापि मन्त्र विज्ञान अपने आप में सुदृढ़ स्तम्भ की भाँति जीवित है। आधुनिक विज्ञान ने उसे प्रमाणित कर फिर से इस महाशक्ति के प्रयोग की सम्भावनाओं का क्षेत्र खोल दिया है।

पराध्वनि का प्रयोग विज्ञान जगत का एक सूक्ष्म सिद्धान्त है। घंटा एकबार बजने के बाद बड़ी देर तक झनझनाता रहता है उसका कारण है घन्टे के परमाणुओं में तीव्र कम्पन। ध्वनि सुनाई देना बंद हो जाती है तो भी कम्पन चलते रहते हैं। हमारे कानों की बनावट ऐसी है कि हम उनसे 20000 साइकिल प्रति सेकेंड की ध्वनि सुन सकते हैं उससे अधिक की नहीं। इस लेख के प्रारम्भ में कुछ बीमारों के अच्छे होने के उदाहरण दिये गये हैं वह एक विशेष प्रकार के यन्त्र द्वारा प्रयुक्त अत्यन्त सूक्ष्म पराध्वनि (अल्ट्रा साउण्ड) से ठीक हुये हैं यह ध्वनि 800000 से 1000000 साइकिल प्रति सेकेंड तक सूक्ष्म और तीव्र होती है। उस समय वह इतनी सशक्त होती है कि शरीर की ही नहीं रत्नों तक की भी चीर-फाड़ कर सकती है। रूसी तो इन दिनों कपड़ों की धुलाई से लेकर भारी उद्योगों तक में इस पराध्वनि शक्ति का उपयोग कर रहे हैं यह सब शब्द शक्ति के चमत्कार ही है। अत्यन्त गतिशील (सुपरफास्ट) ध्वनि तरंगें शरीर की कोशिकाओं को अंग सन्देश देकर रक्त तथा तरल रक्त की पूर्ति करती है और उसे गति देती है जिससे रोग कीट या तो बाहर छन जाते हैं या मर जाते हैं। कई बार इनके नियन्त्रित प्रयोग से बड़े ही विस्मय बोधक परिणाम दिखाई देते हैं। अमरीका में एक बार 90 बच्चे पोलियो और संधिवात के शिकार हो गये उन पर पराध्वनि का प्रयोग किया गया और वह अच्छे हो गये पेरिस के एक वकील को कमर का बहुत दर्द था। वह खड़ा भी नहीं हो सकता था। पराध्वनि के इलाज ने कुल पाँच मिनट में ही उसे अच्छा कर दिया। भारतीय योगी मन्त्र शक्ति से दूरवर्ती वस्तुयें किसी भी स्थान में किसी भी समय प्राप्त कर लेने की क्षमता रखते हैं लास ऐन्जिल्स (अमरीका) और जर्मनी के डाक्टरों ने इन ध्वनियों के साथ प्रयुक्त करके इस बात की सम्भावनाओं को भी सत्य सिद्ध कर दिया है। हमें अपने शरीर की क्षमता और भावों की प्रबलता को अनुभव करने भर की बात है यदि उसे सीख पायें तो मन्त्र शक्ति का लाभ हर व्यक्ति प्राप्त कर सकता है।

यह सारा संसार अति सूक्ष्म शब्द कम्पनों का विराट समुद्र है। पृथ्वी के चलने की ध्वनि से लेकर सोर घोष (सोलर न्वायज) तक और उल्कापात से लेकर अनेक निहारिकाओं में विस्फोट तक के हजारों, लाखों कम्पन विराट अन्तरिक्ष को कम्पायमान करते रहते हैं। इन सब शब्दों की एक सम्मिलित शब्द शक्ति उत्पन्न होती है उसे ही महा प्रणाव या “ॐ” कहते हैं कानों की अतीन्द्रिय क्षमता या सूक्ष्म श्रवण शक्ति जागृत कर इस शब्द की ब्राह्मी शक्ति से सम्बन्ध जोड़ा और उसका प्रयोग न केवल आत्म-कल्याण वरन् हजारों अन्य लोगों के उपहार के रूप में भी किया जा सकता है। विज्ञान द्वारा उत्पादित पराशक्ति तो “ब्राजीलियन क्वार्ट्ज” के आधा इंच टुकड़े और बिजली के तारों की क्षमता पर आधारित होती है उसके प्रयोग से ही जब असाध्य बीमारियाँ दूर हो सकती हैं तब शब्द के अथाह शक्ति सागर से सम्बन्ध स्थापित करने के लाभ का तो कहना ही क्या? उसके प्रयोग से भारतीय योगी आश्चर्यजनक चमत्कार दिखाते रहे हों तो आश्चर्य क्या? शब्द तो ब्रह्म है उससे ब्रह्म की सी सृजन शक्ति का प्रदर्शन किया जाये तो उसमें कोई रहस्य वाली बात नहीं वरन् उसे एक वैज्ञानिक तथ्य ही मानना चाहिए।


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