अद्वैत आत्मा की अद्वैत अनुभूतियाँ

April 1971

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सन् 1643 को रात, द्वितीय महायुद्ध, पैसिफिक सागर में तेरहवीं एयर फोर्स बटालियन के कमाण्डर जनरल नेथान एफ र्ट्वनिंग दुर्भाग्यवश युद्ध के दौरान अपने बेड़े से अलग पड़ गये। वे एस्पेराइट सन्तों एयरवेज के लिए अपने चौदह साथियों के साथ रवाना हुये थे। युद्ध के दिन थे ही बहुत खोज की गई पर उनका व उनके साथियों का कुछ भी पता नहीं चला।

जनरल नेथान की पत्नी उस समय अमेरिका में अपने घर में सा रही थी। प्रगाढ़ निद्रा के समय उन्हें लगा उसके पति उनके पास खड़े हैं और बेचैनी पूर्वक उसे जगा रहे हैं। श्रीमती ट्वीनिंग ने अपने पति का मुँह और हाथ स्पष्ट देखा उन्होंने पति के हाथ पकड़ने चाहे तभी उनकी एकाएक नींद टूट गई। स्वप्न उन्होंने पहले भी देखे थे किन्तु यह स्वप्न उनसे विचित्र था जग जाने पर भी वह ट्वीनिंग को इस प्रकार रोमाँचित कर रहा था कि उनकी गर्दन के बाल सिहर कर खड़े हो गये थे।

उसके बाद उन्हें नींद नहीं आई। रात पूरी जागकर बिताई। सवेरा हो चला था। तभी एकाएक टेलीफोन की घण्टी बजी। उनकी एक सहेली का फोन था। उसके पति भी दक्षिणी पैसिफिक सागर पर सैनिक अफसर थे इसलिये श्रीमती के हृदय में रात को रोमाँचकारी घटना ने फिर एक बार उत्तेजना उत्पन्न की। उन्होंने जल्दी-जल्दी में पूछा-कहो सब ठीक तो है ना! उधर से आवाज आई सब ठीक है पर मेरा मन न जाने क्यों बड़ी देर से बार-बार तुम्हें ही याद कर रहा है मैंने तुम्हारे पास आने का निश्चय किया है कहीं जाना मत, मैं दो तीन दिन में ही तुम्हारे पास आ रही हूँ।

श्रीमती ट्वीनिंग को अब भी आशंका थी कि उसे कोई बात कहनी है जो अभी छिपाई जा रही है किन्तु जब वे घर आई तब भी ऐसी कोई बात उन्होंने नहीं बताई। इतने पर भी श्रीमती ट्वीनिंग की उस स्वप्न के प्रति आशंका गई नहीं। दो दिन रहकर जब उनकी सहेली वापस लौट गई तब श्रीमती ट्वीनिंग को सरकारी तौर पर जानकारी दी गई कि उनके पति अपने बेड़े के साथ लापता है उनकी खोज की जा रही है। खोज करने वाले अधिकारी नियुक्त कर दिये गये हैं। इस समाचार से उनका मन बड़ा व्यग्र हो रहा था। थोड़ी ही देर बाद दूसरी सूचना मिली जिसमें यह बताया गया था कि जहाज मिल गया है। और श्री ट्वीनिंग शीघ्र ही उनसे मिलने घर आ रहे हैं।

भेंट होने पर श्रीमती ट्वीनिंग ने उस रात के स्वप्न वाली बात बताई इस पर श्री ट्वीनिंग ने बताया कि कि सचमुच उस दिन ठीक उसी समय के संकट में पड़े थे जिस समय उन्होंने स्वप्न देखा। उन्होंने यह भी बताया कि कितने आश्चर्य की बात है कि ठीक उसी समय मुझे-तुम्हारी (उनकी पत्नी) तीव्र याद आई थी इस पारस्परिक अनुभूति का कारण क्या हो सकता है? इसके अतिरिक्त जिस आफीसर ने खोज की वह उनको सहेली का ही पति था उसे किसने वहाँ आने के लिये प्रेरित किया यह सब ऐसे रहस्य है जो मनुष्य को बताते हैं जीवन में जो कुछ प्रकट है वही सत्य नहीं वरन् सत्य का सागर तो अदृश्य में छुपा हुआ है। और वह विचित्र संयोगों के मध्य प्रकट हुआ करता है।

सत्य की खोज में “इन सर्च ऑफ दि ट्रुथ” पुस्तक में इस घटना का हवाला देते हुये- श्रीमती रुथ मान्टगुमरी लिखती है कि युद्धों के समय पाशविक वृत्तियाँ एकाएक आत्म-मुखी हो उठती है तब कैसे भी व्यक्तियों का अतीन्द्रिय अनुभूतियाँ स्पष्ट रूप से होने लगती है। युद्ध के मैदानों में लड़ने वाले सैनिक और उनके सम्बन्धी रिश्तेदारों के बीच एक प्रगाढ़ भावुक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है वही इन अति मानसिक अनुभूतियों की सत्यता का कारण होता है। ध्यान की गहन अवस्था में होने वाले भविष्य की घटनाओं के पूर्वाभास भी इसी कारण होते हैं कि उस समय एक ओर से मानसिक विद्युत दूसरी ओर से पूरी क्षमता के साथ सम्बन्ध जोड़ देती है और जिस प्रकार लेजर यन्त्र, दूरदर्शी (टेलीविजन) यन्त्र हमें दूर के दृश्य व समाचार बताने दिखाने लगते हैं उसी प्रकार यह भाव सम्बन्ध हमें दूरवर्ती स्थानों की घटनाओं के सत्य आभास कराने लगते हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध की ही एक अन्य घटना का उल्लेख अपने इसी अध्याय में करते हुये श्रीमती रुथ मान्टगुमरी ने लिखा है कि चैकोस्लोवाकिया तथा थाईलैण्ड के भूतपूर्व राजदूत जो उसके बाद ही जापान के राजदूत नियुक्त हुये श्री जानपन तब मुकड़ेन नगर में थे। युद्ध की आशंका से बच्चों को अलग कर दिया गया। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पैट्रोपिया जान न कैलीफोर्निया के लैगुना बीच में एक मकान ले लिया और वही रहने लगी।

इसी बीच श्रीमती जॉनसन ने कई बार जापान के समाचार जानने के लिये अपना रेडियो मिलाया पर रेडियो ने वहाँ का मीटर पकड़ा ही नहीं। एक दिन पड़ोस की एक स्त्री ने बताया कि उनका रेडियो जापानी प्रसारणों को (रेडियो ब्राडकास्टिंग) खूब अच्छी तरह पकड़ लेता है। तीन महीने तक श्रीमती जॉनसन ने इस तरफ कुछ ध्यान ही नहीं दिया। एक दिन उन्हें एकाएक रेडियो सुनने की इच्छा हुई। वे तुरन्त पड़ोसिन के घर गई। रेडियो का स्विच घुमाया ही था कि आवाज आई-हम रेडियो स्टेशन मुकड़ेन से बोल रहे हैं अब आप एक अमेरिकन ऑफिसर बी. जॉनसन को सुनेंगे।’

विस्मय विस्फारित श्रीमती जानसन एकाग्र चित्त बैठ गई- अगले ही क्षण जो आवाज आई वह उनके पति की ही आवाज थी। वे बोल रहे थे - मैं बी.एलेक्सिन जान्सन मुकड़ेन बोल रहा हूँ जो भी कैलीफोर्निया अमेरिका का नागरिक इसे सुने कृपया मेरा सन्देश मेरी पत्नी पैट्रोसिया जान्सन या मेरे माता-पिता श्री व श्रीमती कार्ल टी जान्सन तक पहुँचाये और बतायें कि मैं यहाँ कैद में हूँ स्वस्थ हूँ, खाना अच्छा मिलता है और छूट जाऊँगा, अपनी पत्नी और बच्चों को प्यार भेजता हूँ।”

दो माह पीछे जान्सन कैदियों की बदली में छुट कर आ गये। पैट्रोसिया पति से मिलने गई तो वहाँ उस पति से क्षणिक भेंट होने दी क्योंकि कुछ समय के लिये श्री एलेक्सिस जान्सन को तुरन्त जहाज पर जाना था। पैट्रोसिया को थोड़ी ही देर में घर लौटना पड़ा। उसकी सहेलियाँ उसे घुमाने ले गई पर अभी वे एक सिनेमा में बैठी ही थीं कि पैट्रोसिया एकाएक उठकर बाहर निकल आई और अपने घर को फोन मिलाया तो दूसरी ओर से अलेक्सिस जान्सन बोले और बताया कि मैं यहाँ हूँ मुझे जहाज में जाना पड़ा। पैट्रोसिया सिनेमा छोड़कर घर चली आई।

3 माह तक कभी भी रेडियो सुनने की आवश्यकता अनुभव न करना और ठीक उसी समय जबकि पति संदेशा देने वाले हों रेडियो सुनने की अन्तःकरण की तीव्र प्रेरणा का रहस्य क्या हो सकता है? कौन सी शक्ति थी जिसने पैट्रोसिया को सिनेमा के समय फोन पर पहुँचने की प्रेरणा दी जब इन बातों पर विचार करते हैं तो पता चलता है कि कोई एक अदृश्य शक्ति है अवश्य जिसने मात्र को एक भावनात्मक सम्बन्ध में बाँध अवश्य रखा है। हज जब तक उसे नहीं जानते तब तक मनुष्य शरीर की सार्थकता कहाँ?


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