ऊपर जाने की जल्दी हो तो सिगरेट पियें

April 1971

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इलिनाँस (अमेरिका) का नेशनल लैबोरेटरी के रेडियो ताजिकल भौतिक (फिजिक्स) विभाग के डॉ. रिचर्ड वी. होल्जमान और डॉ. फ्रेंक एच. इल्सविज ने धूम्रपान के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए 13 उन लोगों को चुना जो कम से कम 10 सिगरेट प्रतिवासर पीते थे। 6 ऐसे व्यक्ति चुने गये जो सिगरेट नहीं पीते थे रक्त, फेफड़े और हड्डियों की विस्तृत जाँच के उपरान्त ही निष्कर्ष सामने आये उन्हें 1966 की ‘साइंस’ पत्रिका के अंक 153 पेज 1256 में लिखते हुए उन्होंने बताया-

‘सिगरेट पीने बालों के शरीर में रेडियो धर्मी सीसे और पोलोनियम की मात्रा न पीने वालों के शरीर की मात्रा से दुगुनी थी। यह दोनों ही ल्यूकोग्या तथा हड्डी का कैंसर पैदा करने वाले मुख्य विष है। अब तक हुए बम विस्फोट आदि से जो रेडियो धर्मी धूल आकाश में छा गई है वह अन्न, जल, वायु में माध्यम से यद्यपि आज सभी जीवधारियों को प्रभावित कर रही है पर सिगरेट पीने वालों में किसी कारण से मामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा यह दुगुने मात्रा में चला जाता है इसलिए अधिक सिगरेट पीने वाले शीघ्र ही रोग और मृत्यु के शिकार होते हैं।”

जनरल आफ अमेरिका ऐसोसिएशन के अनुसार मसूड़ों और जबान पर हो जाने वाले सफेद दाग ल्यूकोप्लेकिया भी धूम्रपान का ही परिणाम होता है जिसे अब डाक्टर सीधे-सीध स्मोकर्स पैच कहने लगे हैं। पहले यह गालों और मसूड़ों में होता है पीछे इसके रोगियों में से ही 20 प्रतिशत को मुंह का कैन्सर हो जाता है।

जार्जिया के छात्रों में बढ़ती हुई धूम्रपान की आदत को रोकने के लिए वहाँ के शिक्षकों और समाज सेवियों ने एक अभियान प्रारम्भ किया पर उसका कोई अनुकूल प्रभाव पड़ता न दिखा। जार्जिया विश्व विद्यालय के डॉ. ए.एस. एडवर्ड का कहना था कि आधी सिगरेट का धुआँ ही पूरी तरह कोई पी जाये तो उतने से उसकी उँगलियाँ काँपने लगेंगी। छात्रों ने पहले तो इस कथन की हँसी उड़ाई इस पर एडवर्ड ने एक प्रयोग किया- उन्होंने 100 छात्रों को खड़ा कर 1 मिनट में 8 बार धुआँ खींचने को कहा उससे कम्पन की मात्रा 126 प्रतिशत बढ़ गई। सात मिनट में यह औसत 232.3 प्रतिशत तक बढ़ गया धुआँ फेफड़ों से जाने के लिए बच लेने पर कम्पन 9.9 प्रतिशत तक हुआ इस प्रयोग से वहाँ के छात्रों में इसके दुष्परिणाम समझ में आये और उनमें सिगरेट पीना छोड़ना भी शुरू कर दिया। यह विवरण ‘जनरल आफ अप्लाइड साइकोलॉजी’ के एक अंक में छपा भी था।

लोगों की ऐसी मान्यता है कि सिगरेट पीना छोड़ देने से पेट को नुकसान होता है और थकावट बढ़ती है। अभ्यास के कारण सम्भव है प्रारम्भ में ऐसा कुछ लगता हो पर यदि छोड़ने का दृढ़ संकल्प ले लिया जाये और सिगरेट पीना छोड़ दिया जाये तो एक सप्ताह के अन्दर ही इतने सुखद परिणाम दिखाई देते हैं कि फिर सिगरेट पीने की इच्छा अपने आप ही मर जाती है अमेरिका के कोर्टनी रिले कूपर लगातार 40 वर्ष तक सिगरेट पीते रहे। पीछे विभिन्न डाक्टरों और अनुसंधानकर्त्ताओं से उन्हें पता चला कि धूम्रपान रोग और शीघ्र मृत्यु के लिये आमंत्रण की तरह है तो उनके मस्तिष्क ने एका-एक पलटा खाया। उन्होंने कहा-

‘हमें जिन्दा रहना है और वह भी नीरोग’- इस दृढ़ इच्छा के साथ उन्होंने सिगरेट पीना छोड़ दिया। कई एक मित्रों ने कहा धीर-धीरे छोड़ने से ठीक रहेगा पर उनके मस्तिष्क में धूम्रपान के दुष्परिणामों की बात सीधे जम गई थी इसलिए इन्होंने दो तीन दिन की गड़बड़ी के बावजूद मित्रों की सम्पत्ति स्वीकार नहीं की। सिगरेट का अभ्यास छूट गया तब उन्होंने बताया जब सिगरेट पीता था मुझे नासूर हो गया था। कोई भी चीज सूँघने में नहीं आती थी, सिर दर्द रहा करता था, धूम्रपान छोड़ने के कुछ दिन बाद ही यह सारे रोग दूर हो गये, पहले हलकी शीत का असर भी बर्दाश्त नहीं होता था पर अब सवेरे स्नान करना अच्छा लगता है। गले की खुजली और खाँसी कम हो गई सूँघने की शक्ति और सुनने की शक्ति में फर्क पड़ गया था वह ठीक हो गया। प्रारम्भ में तो ऐसा लगता था कि सिगरेट छोड़ कर पेट की गड़बड़ क्यों पाल ली, पर एक सप्ताह में ही यह सब निर्मल सिद्ध हुआ। असलियत यह है कि अब तीव्र हो गई है और पहले की तरह अपच नहीं रही। मुझसे कोई सिगरेट पीने का नाम लेता है तो गुस्सा आ जाता है सोचता हूँ ऐसी घृणित वस्तु लोग कैसे दूसरों को सिखा देते हैं कैसे खुद पीने लगते हैं।

सिर चकराना, झपकी लगना, घबराहट और चिड़चिड़ेपन जैसी बीमारियों और मनोविकारों का धूम्रपान से स्पष्ट सम्बन्ध है यह देख कर ही सम्भवतः मनोवैज्ञानिक मैक्वेथ का कथन है जिस घर में कोई सिगरेट जलाकर पीता है वह उसके साथ ही घर की सुख-शान्ति कभी जलाता है अधिकाँश सिगरेट पीने से उसकी 8 प्रतिशत तक का रक्त में बढ़ जाती है। पेरिस के मोटर चालकों का पूर्ण करके देखा गया उनमें से 50 प्रतिशत के शरीर में 100 शीशी रक्त में 1 शीशी मात्रा कार्बन मोनाआइड की थी, सिगरेट ही उसका कारण पाया गया। अमेरिका में धूम्रपान के विरोध में इतने कुछ अनुसंधान हुए उनका प्रचार किया गया कि वहाँ के सैकड़ों लोग ने सिगरेट छोड़ना प्रारम्भ कर दिया। तमाखू और सिगरेट बनाने वाली कम्पनियाँ ने यह देखा तो व्यापार ठप्प पड़ जाने की आशंका से उन्होंने अपने रुपये के बल पर कई वैज्ञानिक और डाक्टरों से सिगरेट के पक्ष में प्रचार कराया पर तथ्य अंततः तथ्य ही है। सच्चाई कभी छुपाई नहीं जा सकती, हर सिगरेट पीने वाला उसके दोष अच्छी तरह अनुभव करता है भले ही मनोबल के अभाव में छोड़ न सकने के कारण वह उसका समर्थन करता दिखता है।

कोई भी वैज्ञानिक सत्यतः तमाखू और धूम्रपान के पक्ष में नहीं है, दुबैको एण्ड लिप कैंसर’ शीर्षक से पाँडविले अस्पताल के डाक्टर जेक्स.ई. फ्राँस ने लिखा है कि तमाखू और धूम्रपान का समर्थन जनता के साथ स्पष्ट धोखा है। हमने देखा है कि इस अस्पताल में 356 रोगी होंठ के कैंसर के आये उनमें से 335 सिगरेट पीने के आदी थे, और उनका कैंसर उसी का परिणाम था।

सिगरेट सभ्य जगत केक लिये न केवल एक रोग वरन् कलंक भी है उनके वंशानुगत-दुष्परिणामों के बारे में तो लोगों को कल्पना ही नहीं है। हमारी जानकारियाँ अत्यन्त स्थूल हैं सूक्ष्म विवेचन करें तो पता चलेगा कि आज लोगों की विचार- शक्ति लड़खड़ा रही है, लोग सही दिशा में सोच सकने में समर्थ नहीं हो रहे, उसका भी कारण सिगरेट आदि के धुएं से हुई मानसिक, विकृति ही है। इस दोष से जितनी जल्दी मुक्त हुआ जाये, धूम्रपान करने वाले समाज को मुक्त किया जाए उतना ही अच्छा-


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