कर्त्तव्य-पालन की दृढ़ता

April 1971

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उस समय संयुक्त प्रान्त के राज्यपाल सर हारकोर्ट बटलर थे। जो आराम-पसंदगी के कारण नवाब साहब के नाम से जाने जाते थे। वह आवश्यकता पड़ने पर राजधानी लखनऊ से प्रयाग भी आते और राजभवन में ठहरते। उनके स्नान के लिये एक बड़े कुण्ड की व्यवस्था थी, जिसमें पानी भरा रहता था।

उन दिनों प्रयाग में पानी की बहुत कमी थी। नलों में बहुत थोड़े समय के लिए पानी आता था। जब लोगो  के लिए पानी मिलना कठिन हो रहा था उस समय राजभवन के कुण्ड के लिए पानी कहाँ से मिलता। राज्यपाल के अंगरक्षक दौड़े-दौड़े नगरपालिका अध्यक्ष के घर गये।

उस समय अध्यक्ष पद पर टंडन जी कार्यरत थे। वह जान्सटन गंज के एक छोटे से मकान में रहते थे। अंगरक्षकों ने टंडनजी के घर जाकर देखा कि वे जमीन पर एक टाट बिछाये काम कर रहे हैं चारों और कागज फैले हुये हैं। अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित उन अंगरक्षकों को भी वहीं जमीन पर बैठकर अपनी बात कहनी पड़ी फर्नीचर की व्यवस्था तो उनके उस छोटे मकान में थी नहीं।

अध्यक्ष महोदय ने उसकी बात बड़ी गम्भीरता से सुनी और यह जानते हुये भी जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में निर्णय दिया जा रहा है उसकी नाराजी कुछ से कुछ कर सकती है, बिना डर उन्होंने उत्तर दिया ‘जब मैं नगर निवासियों के पीने के लिए पर्याप्त जल की व्यवस्था नहीं कर पा रहा हूँ तब फिर नवाब साहब के नहाने के लिए व्यवस्था कहाँ से करूं?


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