एक बार एक व्यक्ति ने अपना सर्वस्व परोपकार में लगातार संन्यास ग्रहण किया। वह सभी प्रकार से ईश्वर में शरणागत हो गया इसके कारण उसके योग क्षेम का भार स्वयं उठाने के लिए भगवान को सहर्ष बाध्य होना पड़ा। उसके लिए एक देवदूत एक थाली में बड़े सुस्वादु भोजन लाता था। और उसे कराकर लौट जाता था। यह देख एक अन्य व्यक्ति भी अपना सब कारोबार लड़कों को सौंपकर, गेरुए वस्त्र पहनकर उसी के निकट तप करने लगा।
अब देवदूत दो थाली लाने लगा, एक में सूखी रोटी तथा दूसरी में वही सुस्वाद भोजन। दूसरे व्यक्ति ने लगातार सूखी रोटी आते देख कहा- मुझे ही क्यों सूखी रोटी मिल रही हैं। देवदूत ने उत्तर दिया-भगवान्! यह फल तो संचित पुण्य के अनुसार मिल रहा है। उसने पुण्य में सर्वस्व लगा दिया और अपने जीवन भर में केवल एक बार बड़े अहंकार से एक व्यक्ति को सूखी रोटी दी थी। उसी के ब्याज स्वरूप यह रोटियाँ मिल रही हैं। अब आपकी सूखी रोटी भी समाप्त होने को हैं, फिर कुछ न मिलेगा।
अब इस व्यक्ति को चेतना हुई और उसने अपनी बाकी बची रोटी देवदूत से मँगाकर दान कर दी और आप भूखा रहा। दूसरे दिन जब देवदूत भोजन लेकर आया तो दोनों थाली सुस्वादु पकवानों से भरी थीं।