गाँधी जी की रक्षा का दायित्व

April 1971

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गाँधीजी उन दिनों दक्षिण अफ्रीका में थे। उनके साथ जर्मनी के निवासी कैनल बैक रहते थे। दोनों में अच्छी मित्रता थे। वहाँ के पठानों को गाँधीजी की नीति पसन्द न आई तो वह नाराज हो गये। कुछ व्यक्तियों ने पठानों के कान और भर दिये।

कैनल बैंक को ऐसा अनुभव हुआ कि यह पठान कभी भी गाँधीजी पर आक्रमण कर सकते हैं अतः उन्होंने गांधीजी की सुरक्षा हेतु एक रिवाल्वर की व्यवस्था करली। गाँधीजी जी के साथ कैनल बैक को जहाँ कहीं जाना होता वह अपने कोट की जेब में रिवाल्वर छिपाकर ले जाते। गाँधी जी को इस सम्बन्ध में तनिक भी जानकारी न थी। कैनल बैक तो आदर्श मित्र की भूमिका प्रस्तुत कर रहे थे। अपने साथी की पूरी-पूरी सहायता करना प्रत्येक मित्र का कर्त्तव्य होता है यह उनकी दृष्टि में था।

एक दिन अचानक गाँधीजी की दृष्टि कैनल बैंक के कोट पर पड़ी जिसकी जेब बड़ी भारी-भारी थी और वजन के कारण एक और लटक गई थी। उन्होंने उस कोट की जेब में हाथ डाला तो रिवाल्वर। कैनल बैंक के आते ही उन्होंने पूछा इतना तो बताइये कि यह रिवाल्वर आप अपनी जेब में क्यों रखते हैं?

कुछ नहीं ऐसे ही सही बात बताने से संकोच हो रहा था।

गाँधीजी ने हँसते हुए कहा ‘रस्किन और टॉलस्टाय की पुस्तकों का तो अध्ययन मैंने भी किया है, क्या उसमें कहा कहीं लिखा है कि अकारण रिवाल्वर जेब में रखा जाये।

मुझे ज्ञात हुआ है कि कुछ पठान आपसे रुष्ट हो गये हैं। पता नहीं कब आप पर आक्रमण करदे।

अच्छा! तो आप मेरी रक्षा  करना चाहते हैं।

इरादा तो यही है’

फिर तो मैं निश्चित हो गया कि मेरी रक्षा का दायित्व अब तक ईश्वर के हाथ में था और अब आप उसे अपने हाथ में ले रहे हैं। जब तक आप जीवित हैं तब तक मेरा बाल बाँका नहीं हो सकता। यह भी खूब रही। आपने मेरे प्रति मैत्री और आत्मीयता का भाव रखने के कारण ईश्वर के अधिकार को छीनने का साहस किया।

कैनल बैंक अब क्या कहते। उन्होंने रिवाल्वर निकाल कर बाहर फेंक दिया।


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