एक सन्त निश्चित दिन अपनी गुफा से बाहर निकलते और जिससे उनका स्पर्श हो जाता वही रोग मुक्त हो जाता था। एक भक्त यह सुनकर वहाँ पहुँचा और जिस समय महात्मा गुफा से निकल कर आरोग्यता दान करते हुए गुफा में घुसने को थे तभी भक्त ने उनकी चादर का कोना पकड़ लिया और बोला कि आपने सबका रोग दूर किया, मेरे भी मन का रोग दूर कीजिये।
महात्मा हड़बड़ा कर कहने लगे- मुझे जल्दी छोड़ो। वह ईश्वर देख रहा है कि तुम उसका पल्ला छोड़कर दूसरे का पल्ला पकड़ना चाहते हो।’ मुक्ति दाता वही है उसी का पल्ला पकड़ महात्मा चादर छुड़ाकर गुफा में घुस गये और ईश्वर भक्ति में लीन हो गये।