मदद की स्थिति में हूँ

April 1971

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कोयल और चींटी उद्यान में एक साथ रहकर आनन्द पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थीं। कोयल आम के वृक्ष पर बैठ सुमधुर गीत गाकर पथिकों को अपनी  ओर आकर्षित करती रहती थी, तो चींटी वृक्ष की जड़ के पास एक छोटे छिद्र में रहकर दिन रात अपनी भोजन व्यवस्था में जुटी रहती थी। एक दिन चींटी ने कोयल को बसंत में अठखेलियाँ करते देखा तो मन-ही मन सोचने लगी, सदैव दिन एक से तो रहते नहीं। थोड़े दिन बाद ही पतझड़ आया, पत्ते गिरने लगे। फूल मुरझाने लगे, अब कोयल की सहायता करने वाला कोई मित्र न था। उसने दूर-दूर तक सहायता के लिए दृष्टि डाली, अन्त में वह चींटी के पास गई और बड़ी नम्रता से सहायता के लिये याचना की।

चींटी बोली- ‘जब तुम झूम-झूमकर गाती और अठखेलियाँ करती थी तब शायद तुम भूल गई थी कि प्रत्येक बसंत के बाद पतझड़ भी आता है। प्रत्येक मार्ग का अन्त तो कहीं होता ही हैं। मैंने पतझड़ का ध्यान रखा। श्रम को समझा और अब मैं तुम्हारी मदद की स्थिति में हूँ।


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