हिन्दी साहित्य में सुमित्रानन्दन पंत का विशिष्ट स्थान है। यों तो कोई भी विश्वास अपनी-अपनी श्रद्धा, कल्पना, विचार और बौद्धिक शक्ति से ही प्रगाढ़ होता है पर जीवन सम्बन्धी मान्यतायें ऐसी जटिल हैं कि उनमें दृश्य और अदृश्य दोनों में तार्किक सम्बन्ध जोड़े बिना हमारे विश्वास का प्रयोजन हल नहीं होता। श्री पंत जी ने जो विश्वास का प्रयोजन हल नहीं होता। श्री पंत जी ने जो विश्वास किया था व उनकी कल्पना मात्र नहीं थी उन्होंने जीवन की एक गहन दर्शन मानकर ही उस पर विचार किया था पर कई बार उन्हें भी मृत्यु के उपरान्त जीव के अस्तित्व पर अविश्वास-सा होने लगता था। एक घटना जिसने इस मान्यता को उलट दिया वह इनके परिवार से ही सम्बन्धित है।
एकबार श्री पंत जी के चाचाजी पहाड़ी के एक बहुत सुन्दर स्थान में एक साधु का प्रवचन सुनने गये। प्रवचन देर तक चला। जब वह समाप्त हुआ तो शाम हो गई। सब लोग तो चले गये पर वह साधु के पास ही बैठे रहे। साधु ने उन्हें बैठे देखकर पूछा- आप यहाँ अभी तक किस लिये रुके हैं? पंतजी के चाचाजी ने धीरे से बताया महाराज मेरा घर यहाँ से दूर है। रास्ते में कई डरावने स्थान पड़ते हैं मुझे भूत का भय लगता है, इसलिये जाने में ठिठक हो रही है।
साधु ने उन्हें भभूत दी और हथेली में मलते हुये कहा लो अब जाओ यदि रास्ते में कोई भूत मिले तो यह हाथ जोर से मारना, भूत तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा पायेगा। चाचाजी घर के लिये चल पड़े। रास्ते में जैसी कि आशंका थी उन्हें एक आकृति सी दिखाई दी। वह उनकी ओर ही बढ़ रही थी। चाचाजी के अनुसार- “मैंने हिम्मत की और वह जो से वही हाथ दे मारा। इसके बाद वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया।” चाचाजी घर आये तो श्री पंत जी के बड़े भाई ने उनको देखते ही पूछा चाचाजी आपके गाल में यह तमाचे की निशान किसका है। घर के सब लोगों और चाचाजी ने भी शीशे में देखा। गाल में पाँचों उँगलियों के साफ निशान थे यह निशान चाचाजी की उँगलियों से बहुत मोटे थे। वह निशान कहाँ से आया अब तक भी लोग नहीं समझ पाये और अन्त में इसे भी भूत काण्ड की ही संज्ञा दी गई।
‘मृत्यु के पश्चात् मनुष्य जिन्दा रहता है” मैन्स सखाइवल आफ्टर डेथ में एस.पी.आर. की रिपोर्ट्स से उद्धृत एक घटना पादरी-सी. एल. ट्वीडेल ने दी है।
आइओवा नगर में रहने वाले एक किसान श्री मिकाइल कोन ले की मृत्यु हो गई। मिकाइल बड़ा सम्पन्न व्यक्ति था पर वह हमेशा गन्दे कपड़े पहनता था। उसकी मृत्यु भी गन्दे कपड़ों में ही हुई। एक कमीज, जो महीनों से नहीं धोई गई थी पहने उसकी संदिग्ध अवस्था में मृत्यु हो गई। इस मृत्यु की जाँच करने वाले अफसर ने शव को देखकर कहा इसके पुराने कपड़े पहनाकर मेरे घर भेज दिया जाये। किसान के बेटे ने ऐसा ही किया। सफेद कपड़े पहनाकर लाश अफसर के घर भेज दी गई। लड़का जैसे ही अपने घर लौटा कि अपनी बहन बेहोश पाई। काफी देर बाद होश में आने पर उसने बताया मैंने अभी-अभी पिताजी को साफ कपड़ों में देखा। वैसे कपड़े वे कभी नहीं पहनते थे। वे मुझसे कह रहे थे मेरी पुरानी कमीज मुर्दाघर में पड़ी है उसमें कुछ बिल और रुपये हैं।”
लकड़ी के इस बयान को घर और पड़ौस वालों ने भी तब तो बकवास कहा पर जब लड़के ने बताया कि हाँ सचमुच ही उनके पुराने कपड़े उतरवा कर मुदविर में फिंकवा दिये गये हैं तो लोगों की आतुरता भी बढ़ी। लोग मुर्दाघर गये। कमीज उठाकर देखी गई उसमें भीतर बड़ी सावधानी से एक थैली से हुई थी उसमें बिल भी थे और रुपये भी। इस घटना से सभी आश्चर्यचकित रह गये और वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने माना कि मृत्यु के पश्चात् भी चेतना अपनी बौद्धिक क्षमता के साथ जीवित रहती है।
सन् 1945 की बात है तब द्वितीय महायुद्ध चल रहा था। केंटोर नामक एक व्यक्ति को अमेरिका से लन्दन जाना पड़ा। केंटोर एक रात केसिंगटन में रुके बोर्डिग हाउस का एक कमरा सोने के लिये दिया गया। केंटोर ने स्वयं इसके बाद का अनुभूत वर्णन इन शब्दों में लिखा है-
“भोजन करने के बाद मैं सो गया। पहली नींद तीन बजे टूटी। मैं उठा और लघुशंका के लिये कमरे से बाहर गया और फिर लौटकर आया और विस्तार पर लेट गया। लेटते देर नहीं हुई थी कि ऐसा लगा कि नीचे से कोई मेरे कम्बल को घसीट रहा है। पहले तो मैंने सोचा कपड़े अपने आप खिसक रहे होंगे इसलिये उन्हें ऊपर को खींच लिया किन्तु वही क्रिया फिर दुबारा हुई। मेरा मुँह फिर खुल गया। इस बार थोड़ी ताकत लगाकर कपड़े फिर ऊपर उठाये। जितनी देर कपड़े ऊपर उठाये रहा कपड़े ठीक रहते पर छोड़ते ही उन्हें फिर कोई खींच लेता। बाहर उठकर देखा कोई नहीं था। कमरे की बत्ती जलाकर कोना कोना देखा कोई नहीं था। दरवाजे बन्द करके कपड़े चारों ओर से लपेट कर फिर लेट गया। लेटना था कि कमरे में एक विचित्र प्रकाश दिखाई दिया। उसमें अजीब-अजीब तरह की हलचलें हो रही थी हँसने ओर रोने की विचित्र आवाजें भी आती रहीं। मैंने शेष रात बड़ी बेचैनी से काटी।
इस घटना का नायक केंटोर कोई साधारण और अविश्वस्त आदमी नहीं अमेरिका का प्रसिद्ध लेखक हैं जिन्हें कुछ दिन पहले ही “पुलित्जर पुरुकार” प्रदान किया गया है।
यह घटनायें हमें जीवन के सम्बन्ध में नये सिरे से विचार करने के लिये प्रेरित करती है। वर्तमान जीवन ही जीवन का अन्त नहीं, वरन् मृत्यु के बाद भी मनुष्य जिन्दा रहता है। यदि यह सच है तो क्या हम उस अनन्त जीवन की शोध और सार्थकता के लिये कुछ कर रहे हैं हमें आपने आपसे यह प्रश्न करना और उसका समाधान भी ढूंढ़ना चाहिये।