शाक भाजी खाइये-अपनी बढ़ाइये

April 1971

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आज लोगों में एक मिथ्या विश्वास जम गया है कि चाहे वह माँस हो अथवा खोये से बनी हुई मिठाइयाँ जितना अधिक चर्बी वाला आहार ग्रहण किया जायेगा मनुष्य उतना ही शक्तिशाली और दीर्घजीवी बनेगा जब कि हमारे ऋषि चरक का कहना है दूध, शाक, छाछ, फल और हलके से हलका आहार लेने से शक्ति तेज और आयु की वृद्धि होती है।

गाँधी जी इंग्लैण्ड गये तब अंग्रेजों ने उनसे माँस लेने को कहा। गाँधी जी ने कहा- इतना गरिष्ठ भोजन करके मैं अपने पेट को नरक नहीं बनाऊँगा इस पर अंग्रेज एक कविता बनाकर गाँधी जी को चिढ़ाया करते थे- ‘बिहोल्ड माइटी इंग्लिश हूँ गवर्न्स इण्डियन स्माल, विकाज आफ बीईग मीट ईटर ही इज फाइव कबिट्स टाल” अंग्रेजों को देखो कितना ताकतवर है वह छोटे-छोटे भारतीयों पर शासन करता है और माँस खाने के कारण ही पाँच कबिट लम्बा है।”

गाँधी जी थे विनम्र स्वभाव के व्यक्ति बहस करना उन्हें अच्छा नहीं लगता था चुप रह गये पर कुछ दिन बाद ही अमेरिका के कारनेल विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. एम. मैकके ने एक परीक्षण किया उन्होंने कुछ चूहे के बच्चों को बहुत गरिष्ठ ढंग का चर्बी वाला भोजन खिलाया। इन के शरीरों का विकास तो अत्यन्त तीव्र हुआ पर वे बेचारे 730 दिन में ही मृत्यु के घाट भी उत्तर गये। मरते मरते वह डॉ. मैकके को यह बता गये कि जीवन की सरपट दौड़ मनुष्य को जल्दी ही मार देती है थोड़ा चलो, आराम से चलो देश और दुनिया का बहुत समय तक आनन्द लेते हुये चलो। जो लोग इस नीत को कम से कम आहार के मामले में धारण करेंगे वे दीर्घजीवी अवश्य होंगे यह बात अगले प्रयोग से सिद्ध हो गई।

उन्होंने अन्य चूहों को कम कैलोरी वाला किन्तु अधिक विटामिन और खनिज अम्ल वाला भोजन दिया तो वे 1400 दिन से भी अधिक जीवित रहे। इस प्रकार उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि मनुष्य को जीवन वर्द्धक आहार की आवश्यकता है उसी में अधिक शक्ति भी होती है भले ही मनुष्य देखने में ज्यादा मोटा लम्बा और पहलवान टाइप का न हो उन्होंने हिसाब लगातार बताया कि यदि मनुष्य शाक भाजी फल आदि पर ही रहना प्रारम्भ करे तो उसकी आयु 250 वर्ष तक हो सकती है। यदि पर्याप्त संयम भी रख लिया जाये तो यह आयु और भी बढ़ाई जा सकती है।

इसी सिद्धाँत की पुष्टि अमेरिका के ही अन्य वैज्ञानिक डॉ. जान व्योरकस्तेन ने की है। उन्होंने जीवित कोशिकीय द्रव्य (जिससे मनुष्य का शरीर बना है जिसे प्रोटोप्लाज्म करते हैं) का रासायनिक विश्लेषण करते समय पाया कि उसके प्रोटीन के अणु एक प्रकार के रासायनिक पदार्थ द्वारा जुड़े रहते हैं। मनुष्य का शरीर- एन्जाइमों की सहायता से इस पदार्थ को घुलाकर सुपाच्य बनाता और नये कोशों की वृद्धि व शरीर का विकास करता है- यदि हमारा आहार गरिष्ठ और माँस जैसे भारी खाद्यों वाला है तो इसका मतलब यह है कि प्रोटीन को जोड़ने वाले रसायन अत्यन्त कड़े हैं। वृद्धावस्था तक यह इतने कड़े हो जाते हैं कि नये कोशों का बनाना ही बन्द करा देते हैं यही भीतर ही भीतर सड़ने लगते हैं जिससे विष पैदा होता है मनुष्य के शरीर व हड्डियों की लचक नष्ट हो जाती है इसलिये वृद्धावस्था में तो विशेष रूप से हलका आहार ही लेना चाहिये पर यदि मनुष्य सारे ही जीवन हलका आहार रखे तो वह शरीर की क्षमतायें बनाये रखने में समर्थ होता है और अपना जीवन कई सौ वर्षों तक सुरक्षित रख सकता है। इसी बात को यों कहा जा सकता है-

मदिरा माँस छोड़कर जो भी शाक दूध फल खाता है। जीता है सौ वर्ष शत्रुओं को भी मार भगाता है॥


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