अमैथुनी सृष्टि भी होती है-हो सकती है

November 1969

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विगत अंक में स्त्री और पुरुष के प्रजनन-कोषों (ओवम और स्पर्म) में उभयनिष्ठ (एक ही कोष में दोनों) सम्भावनाओं के अनेक उदाहरण दिए गये थे। उनसे यह सिद्ध होता था कि पुरुष प्रजनन केश (स्पर्म) में स्त्री और पुरुष दोनों के ही गुण सम्भाव्य है, उसी प्रकार बिना पुरुष के समायोजन के अकेले अण्ड (स्त्री प्रजनन कोष को अणु कहते है) की निषेचन क्रिया (गुण सूत्रों का दुगुना हो जाना-यह क्रिया ही गर्भाधान का करण होती है)। से ही सन्तान उत्पन्न की जा सकती है।

संसार के इतिहास में ऐसे उदाहरण सैकड़ों की संख्या में भरे पड़े है, जब केवल स्त्री ने ही सन्तान को जन्म दिया हो, अथवा पुरुष ने अकेले ही कोई बच्चा पैदा किया हो स्त्री पुरुषों में से किसी का भी सहयोग न हो ऐसे प्राणियों के जीवन की सम्भावनायें भी अब सत्य सिद्ध होने जा रही है और इस तरह विकासवाद के सिद्धान्त की धीरे-धीरे धज्जियाँ उड़ने जा रही है।

1634 में प्रकाशित अपनी उपलब्धियों के प्रसंग में फ्राँसीसी सर्जन डा एम्ब्राज पारे और मान्तेग्ने ने जार्मे गानयिर नामक एक 15 वर्षीय लड़की ने एकाएक पुष्य योनि में बदल जाने की घटना का उल्लेख किया ह। जार्मे गानयिर का जन्म विट्री ले फ्रान्से में हुआ। वह प्रायः सुअर चराने का काम करती थी। 15 वर्ष की आयु में एक दिन वह जंगल में सुअर चरा रही थी। उसके सुअर किसी किसान के खेत में घुस गये। खेत के किनारे-किनारे ऊँची खाई थी। जार्मे गानयिर को पता चला तो वह भागी और रास्ते में पड़ रही खाई को लाँघने के लिए जोर से कूदी। कूदने पर उसे पेडू में जोर का धक्का लगा। जिससे उसे यह जान पड़ा मानों उसकी आँतें फटकर बाहर निकल पड़ी हों। लड़की दर्द से चीख उठी। कुछ लोगों ने उसे उठाकर घर पहुँचाया। डाक्टरों को बुलाया गया। उन्होंने परीक्षा की और बड़े आश्चर्य के साथ घोषित किया कि लड़की-लड़का बन गई है। डाक्टर ने निरीक्षण करके बताया कि उसके पेडू में पुरुष जननेन्द्रिय का विकास काफी दिनों से हो रहा था। पूर्ण विकास हो जाने पर ही धक्के से पेडू फटा और पुरुष लिंग बाहर निकल आया। डाक्टरों ने इस बात का आश्चर्य किया कि मनुष्य शरीर की मूलतः ईकाई में दोनों प्रकार के गुण सूत्र किस प्रकार पाये जाते ह। इस घटना से सारे नगर में तहलका मच गया और वहाँ एक विशेष गीत गाया जाने लगा, जिसका यह अर्थ होता था-जोर से मत उछलो नहीं तो लड़का बन जाओगी।” इस घटना के बाद जार्मे गानयिर का एक पादरी द्वारा विधिवत् नाम संस्कार कराया गया और तब वह जर्मे मेरिया हो गया।

इंग्लैण्ड से छपने वाले साप्ताहिक पत्र ‘पियर्सन’ में एक लेख छपा जिसका शीर्षक ‘कुमारी कोब कोवा से श्री कोबेक’ है। कु जेकंन कोबकोवा चेकोस्लोवाकिया की प्रसिद्ध महिला खिलाड़ी थी। यौवन में प्रवेश करते समय नारियों के विशेष लक्षण उभरते है पर इनके साथ उलटा ही हुआ। प्रारम्भ में स्तन थे, वह छोटे होने लगे। पेडू में उन्हें प्रायः दर्द हुआ करता।डाक्टरों को दिखाने पर पता चला कि उनके शरीर में पुल्लिंग विद्यमान ह, तब उन्होंने अपना आपरेशन कराया। आपरेशन में कोई कष्ट नहीं हुआ और वे विधिवत् स्त्री से पुरुष बन गई।

यह घटनायें यह बताती है कि मनुष्य के शरीर का विकास करने वाला पहल कोष (सेल) स्त्री-पुरुष दे तो की सम्भावनाओं से परिपूर्ण था। लिंग वाले लक्षण-बीज (जीन्स) में से पहले एक उभार में आया पीछे दूसरे ने उभार कर लिया और उस मनुष्य ने इसी शरीर में यौन परिवर्तन कर लिया।

अनेक बार शारीरिक दृष्टि से यौन परिवर्तन नहीं होता शरीर पुरुष का ही रहता है पर गुण सूत्र (क्रोमोसोम्स) स्त्री के गुणों वाले विकसित हो जाते है, ऐसी अवस्था में पुरुष शरीर में रहने वाली चेतना भी स्त्रियों जैसे काम करती रहती है, उसे उसी में अच्छा लगता है ड़ड़ड़ड़ यह पद्धति बदलनी पड़ी तो उसमें उसे दुःख होता है। ऐसी अनेक घटनायें ‘मिस्ट्रीग ऑफ सेक्स’ नामक पुस्तक में री सी जे एस॰ टामस द्वारा दी गई है।

पेरिस के एक सरकारी पदाधिकारी में यह गुण असाधारण रूप में था। वह अपने ड्यूटी के घण्टों के अतिरिक्त जब घर में होता तो प्रायः हमेशा ही स्त्रियों के पकड़े पहनता, वैसी ही बात-चीत करता, मुख के हावभाव भी बिलकुल स्त्रियों जैसे ही होते। 1926 में कई दिन तक घर से बाहर नहीं निकला तब पुलिस ने सन्देह में घर का ताला तोड़ा। उसने आत्म-हत्या कर ली थी। मृत्यु के कारणों का तो पता नहीं चला पर छत से लटकने तक वह जो वस्तु पहने था, उससे उसकी नारी-वृत्ति का गहरा परिचय मिलता है। अन्य वस्त्रों की बात तो दूर रहीं, उसने अम्बर-बियर और मोजे दस्ताने भी स्त्रियों के ही पहने थे। बाल भी वह स्त्रियों जैसे ही सजाये हुये था।

1923 में अमेरिका में एक दुर्घटना घटी। टैस्मर नामक दम्पत्ति पर किन्हीं बदमाशों ने आक्रमण कर दिया। आक्रमणकारियों में एक स्त्री भी थी, जिसे श्रीमती टेस्मर ने पहचान लिया। प्रयत्न करते पर पुलिस ने एक शोफर और उसकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार स्त्री को श्रीमती टेस्मर ने पहचान भी लिया। जेल में रह रही। वह स्त्री तब लोगों के आश्चर्य का कारण बनी, जब लोगों ने देखा कि उसके दाढ़ी मूँछें निकलनी प्रारम्भ हो गई। पुलिस ने जाँच की तो पता चला कि वह बदमाश पुरुष है। उसे स्त्री वेष, हावभाव इतने पसन्द कि वह छोटी अवस्था से ही स्त्रियों जैसे रहता, इस पर घर वालों ने उसे निकाल दिया। 1912 में उसने इन्डियाना के एक पुरुष से विवाह कर लिया। उसका गला बिलकुल स्त्रियों जैसा था, इसलिये उसे कई बार स्त्रियों के मध्य गाने का भी अवसर मिला। 12 वर्ष बाद उसके एक लड़की से भी विवाह कर लिया इस पर उसका पति नाराज हुआ पर बाद में तीनों साथ-साथ हरने को सहमत हो गये। दामस नामक लेखक ने इस व्यक्ति के संबंध में लिखा है, उसमें पुरुषत्व के कोई भी लक्षण नहीं थे।

इंग्लैण्ड की ‘वैवीजेन्स” तो इतिहास की एक मनोरंजक घटना बन गई थी। बैबीजेम्स की पुरुषत्व के हावभाव बहुत पसन्द थे। उसने अपना स्त्रीत्व आजीवन छिपाये रखकर अस्पताल में डाक्टर का काम किया। कालेज के दिन भी उसने पुरुष वेश में ही बिताए। 1819 में वह स्टाफ सर्जन के रूप में भरती हुई ओर उन्नति करते हुये, 1851 में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल, 1858 में इंस्पेक्टर जनरल के उच्च पद तक पहुँची। जब उसकी मृत्यु हुई तब जाकर पता चला कि आजीवन पुरुष का सफल अभिनय करने वाला इंस्पेक्टर जनरल पुरुष नहीं, स्त्री था।

इतिहास के यह पृष्ठ हमें यह सोचने के लिये विवश करते हैं कि शरीर का आत्मा के लिये कोई महत्व नहीं। चेतना मन और विचार है और वह इच्छानुसार स्त्री या पुरुष हो सकता हैं। इच्छाएँ यदि अविकसित रहें तो परिवर्तन एक शरीर में से ही दूसरे शरीर में हो सकता है।

कुछ दिन पूर्व अमृत बाज़ार पत्रिका में एक समाचार छपा था कि हैदराबाद (सिन्ध) की शेरपुर रियासत में गम्बात् के पास के छोटे से गाँव में काबू नामक 18 वर्षीय लड़का अचानक लड़की हो गया। इसे अब स्त्रियों की तरह मासिक धर्म भी होने लगा है और वह स्त्री के समान गर्भ धारण करने की क्षमता से भी परिपूर्ण है, जबकि जन्म से उसके शरीर में ऐसी कोई सम्भावनाऐं न थी।

विकासवाद में अंगों और जन्तुओं के लुप्त होकर दूसरे जीवनों में क्रमिक रूप से विकसित हो जाने का समय-सारिणी बड़ी लम्बी है। कई-कई परिवर्तन तो एक-एक लाख वर्ष में होते बताये गये हैं, जिनकी सत्यता कभी भी प्रामाणिक नहीं हो सकती। उस समय का कोई जैविक (बायोलॉजिकल) इतिहास उपलब्ध न होने से यह नहीं कहा जा सकता कि विकास की कल्पना सत्य होगी ही। हड्डियों और ढाँचों के बारे में समय संबंधी मान्यतायें गलत भी हो सकती है पर यह प्रत्यक्ष घटनायें तो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि आत्म-चेतना आने आप में विलक्षण शक्ति है और वह इच्छानुसार शरीर धारण करने में समर्थ है। कई बार इच्छाएँ स्वयं अनिर्णीत रह जाती होंगी, जिनमें स्त्री व पुरुष दोनों के वंश-बीज विद्यमान रहते होंगे। शरीरों में आकस्मिक परिवर्तन इसी आधार पर होना सम्भव है। नील्सहायेर ने ‘मैन इन्टू धूमैन’ नाम ग्रन्थ में ऐसी अनेक घटनायें प्रस्तुत की है और अपनी सम्मति देते हुये लिखा है-यह घटनायें सचमुच मानव-जीवन के अस्तित्व को ओर भी रहस्यपूर्ण बनाती है कोई ऐसी सत्ता प्रकृति में काम कर रही है, जो अपने आप व्यक्त होने में समर्थ है। उसका स्वरूप और शरीर विचारमय ही हो सकता है।”

ऐसी घटनायें भारतीय संस्कृति के इतिहास में भी कम नहीं है, महाभारत में शिखण्डी के स्त्री से पुरुष में परिवर्तित होने का वर्णन आता है। पाँचाल नरेश द्रुपद को रुद्र के आशीर्वाद से एक कन्या हुई। रुद्र की आज्ञानुसार राजा द्रुपद और उनकी रानी के अतिरिक्त यह भेद और किसी को भी प्रकट न हुआ। शिखण्डी का पालन-पोषण राजकुमारों की तरह ही हुआ। युवावस्था में पदार्पण करते ही राजा द्रुपद ने शिखण्डी का विवाह दशार्ण के सम्राट् हिरण्यवर्मा की पुत्री के कर दिया। किन्तु राजकुमारी को शिखण्डी के संपर्क में आते ही पता चल गया कि वह स्त्री है। उसने यह बात अपने पिता तक पहुँचा दी। शिखण्डी को इस बात का पता चला तो उसने दुःखी होकर गृह-परित्याग कर दिया, वह वन में जाकर तप करने लगा। तप करते हुये शिखण्डी की व्यथा स्थूणाकर्ण नामक यक्ष को मालूम हुई। उसे शिखण्डी की शल्य चिकित्सा की और उसे पुरुष बना दिया।

सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु के पुत्र का नाम सुद्युम्न था। सुद्युम्न एक बार जंगल की ओर गये। वहाँ शिव व पार्वती एकान्तवास में थे। सुद्युम्न को उस समय स्त्रियों की तरह काम-वासना भड़की। यह पौराणिक कथा यह है कि शिव ने शाप देकर उसे स्त्री बना दिया पर ऐतिहासिक तथ्य यह है कि शिव ने औषधि द्वारा उसके प्रसुप्त नारीतत्त्व के लक्षणों को जागृत कर दिया था। इससे वह लड़की बन गया और उसका नाम “इला” पड़ गया। महान सौंदर्य शाली राजकुमार पुरुरुवा का जनम इस यौन परिवर्तित इला के गर्भ से ही हुआ था, यह वर्णन अगले अंक में दे रहे हैं।

यह पौराणिक गाथायें पढ़कर लोग भारतीय धर्म और उसकी आख्यायिकाओं की कल्पना की विलक्षण उड़ान कह कर हँसते और टालते है। पर जब वही बात विज्ञान और वर्तमान प्रमाणों के द्वारा सत्य होती दीख पड़ती है, तब वेदांत और पुराणों की वैज्ञानिकता को स्वीकार नहीं किया जाता। वही बातें भारतीय संस्कृति और आध्यात्म के लिये अन्ध-विश्वास बन जाती है, जबकि विज्ञान के लिये सत्य और तथ्य। बातें दरअसल दोनों ही एक है।

इंग्लैण्ड में मिडिल गेट स्ट्रीट यारमाउथ नगर की दो बहिनों की घटना बड़ी विलक्षण है। इनका नाम था मार्जोरी और डेजीफेरो। मार्जोरी तब 13 वर्ष की थी और एक आर्ट-कालेज में पड़ती थी, तभी उसे अपनी आवाज कुछ भारी और शरीर में विचित्र परिवर्तन से अनुभव हुये। विवश होकर उसे डाक्टरों की शरण लेनी पड़ी। डाक्टरों ने उसके शरीर में पुरुषत्व के लक्षण उभरते देखे। लन्दन के एक अस्पताल में उसकी चिकित्सा हुई और वह लड़की से लड़का बन गई। अब उसका नाम मार्क रखा गया।

मार्क ओर डेजी फेरो कुछ दिन भाई-बहिन की तरह रहे पर इसी बीच मार्क वाली शिकायत उसे भी उठ खड़ी हुई और उसका भी डाक्टरों को आपरेशन करना पड़ा। मार्क की तरह डेजी फेरो भी लड़का बन गई। उसका नाम डेविड रखा गया, दोनों बहिनें-दो भाई हो गये और दोनों के बाद में पुनः लड़कों के स्कूल में साथ-साथ शिक्षा ग्रहण की।

इस घटना के पीछे भी वही रहस्य है, जो उन पौराणिक घटनाओं के पीछे। इन्हें कोई भी व्यक्ति अन्धविश्वास नहीं कहता, क्योंकि यह आधुनिक है। यदि यह घटनायें सत्य है तो भारतीय अध्यात्म की आख्यायिकाओं को भी सत्य ही मानना पड़ेगा। पुरातनकाल विज्ञान के विकास का चरम काल था, उस समय इन घटनाओं द्वारा वहीं बातें प्रमाणित की गई थीं, जो आज की जा रही है। अमैथुनी सृष्टि वस्तुतः आत्म-चेतना का यथार्थ इतिहास है, उसमें गहन आध्यात्मिक रहस्यों का प्रवेश है, जिन्हें विज्ञान क्रमशः खोलता चला जा रहा है। क्रमशः


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