तपती दोपहरी में ईरान के कविवर शेखसादी नमाज पढ़ने मस्जिद जा रहे थे। उनके पैर में जूते नहीं थे, अतः उन्हें बड़ी पीड़ा हो रही थी। इतने में एक आदमी चमचमाते जूते पहने वहाँ से निकला। वह भी नमाज पढ़ने जा रहा था। शेखसादी का दिल उदास हो गया। एकाएक वे बोल उठे-परवरदिगार! यह है तेरा न्याय? मेरे पास पहनने के लिए फटी पुरानी जूतियाँ भी नहीं और यह आदमी चमचमाते जूते पहने है।”
थोड़ी दूर चलने पर शेखसादी को एक अपंग दिखायी दिया। अब तो कवि की आँख खुल गई। तत्काल ही उन्होंने अपने गाल पर एक तमाचा मारा और दोनों हाथ आकाश की और उठाकर कहने लगे-अल्लाह मुझे माफ करना। मुझसे भयंकर भूल हो गई। तूने मुझे कैसे सुन्दर पाँव दिये हैं, जबकि यह बेचारा तो अपंग है।