समाज सेवक महात्मा हंसराज तब विद्यार्थी ही थे। आवश्यक कार्यों से बचा सारा समय मुहल्ले के गरीब तथा अनपढ़ लोगों की चिट्ठी लिखने तथा पढ़ने में ही लगा देते थे। जब परीक्षा निकट आई तो माता ने समझाया-क्यों रे! तू सारे दिन दूसरों की लिखा-पढ़ी करता रहता है-अपनी पढ़ाई कब करेगा? अब सब कुछ छोड़कर पढ़ाई की तरफ ध्यान देना चाहिये तुम्हें।” इस पर वे मुस्कराकर सहज भाव से बोले-माँ यदि पढ़ाई-लिखाई का लाभ अकेले ही उठाते रहे हम, दूसरों का उससे कुछ भला न हो तो ऐसी पढ़ाई-लिखाई किस काम की। शिक्षा की उपयोगिता तभी है जब उसका अधिक से अधिक लाभ दूसरों को मिले।”