फूल ने अपने साथ लगे काँटे से कहा-तुम्हारा यह लम्बा, नुकीला और भद्दा शरीर मेरे साथ अच्छा नहीं लगता हैं। देख मेरा शरीर कितना सुन्दर है, इससे कितनी मनमोहक सुगन्ध निकलती है, अपने इस गुण के कारण ही में महापुरुषों और देवताओं के गले का हार बनता हूँ।”
काँटे ने उत्तर दिया-यह सब ठीक है परन्तु जिस जीवन में फूल ही फूल है, सुख ही सुख है, उसमें निष्क्रियता आने लगती है और विकास रुक जाता है। जीवन का वास्तविक निर्माण तो काँटे नहीं है, वह जीवन नहीं है।”