क्रोध

November 1969

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

महाराष्ट्र के सन्त श्री एकनाथ जी को कुछ मसखरा युवक सदा उन्हें तंग किया करते थे। एक बार एक भूखा ब्राह्मण उस गाँव में आया और भोजन की याचना की। गाँव के उन्हीं दुष्टजन ने उससे कहा कि ‘यदि तुम सन्त एकनाथ को क्रोधित कर दो तो हम तुम्हें दो सौ रुपये देंगे। हम तो हार चुके शरारत कर करके पर उन्हें क्रोध आता ही नहीं।” दरिद्र ब्राह्मण भला कब मौका चूकने वाला था। फौरन उनके धर गया, वहाँ वे न मिले तो मन्दिर में जा पहुँचा जहाँ पर वे ध्यान मग्न बैठे थे। वह जाकर उनके कन्धे पर चढ़कर बैठ गया। सन्त ने नेत्र खोले और शाँत मुद्रा में बोले-ब्राह्मण देवता! अतिथि तो मेरे यहाँ नित्य ही आते हैं, किन्तु आप जैसा स्नेह आज तक किसी ने नहीं जताया। अब तो आपको मैं बिना भोजन किये वापिस नहीं जाने दूँगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles