यज्ञ-कुराड जागो आहुति लो (Kavita)

June 1969

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

संकल्पों के बने खण्डहर, संस्कृतियों के राजमहल में। सूरज के घर घिरी अमावस, रश्मि रचीतम के दल-दल में॥

कालजयी चमकायें जाते, मर-पिपीलिका की फौजों से। नीककण्ठ कतराते दिखते, उठो हलाहल की मौंजों से॥

‘सवर्गादपिगरीयशी’ धरती पर होती अभाव का नर्तन। देवों की क्रीड़ा का आँगन, दैत्यों के कृत्यों का साधन॥

मन्त्रों गुँजित अन्तरिक्ष में, फँसा कल-युग का कोलाहल। श्वाँस-श्वाँस अवरुद्ध घुटन से, माँग रही मानवता सम्बल।

आह-कराह विवशताओं से डसी हुई जीवन की तानें। चेहरों पर उदासियाँ उभरी, राहें भूल गई मुस्कानें॥

एक अनिश्चित भाग दौड़ के बीच फँसा मानव का जीवन। अपना खाया सुख तलाशते, भरे भरे हम है सूनापन॥

चहल पहल की चकाचौंध में, हम अपनी क्षमतायें भूले। उसी डाल को काट रहे हैं, उसी डाल पर डाले भूले॥

युद्धों के बादल ऋषियों की कुटियों पर गड़गड़ा रहे हैं। अस्थि-दान की इस बेला में, युग दधीचि, बरबरा रहे हैं॥

कल्पवृक्ष का देश क्षुआ की महा ज्वाल में धधक रहा है। कामधेनु के घर में कान्हा, बुदं-बुदं को सिसक रहा है॥

तमसा- तट से चीत्कार का कोई छन्द नहीं जगता है। अमृत घट सावें संस्कृति को, हृदय लगाने की क्षमता दी॥

विश्वासों को अभय दान दो, प्राणों में जी उठें ऋचाऐं। आता सतयुग लौट न जाये, लेकर चन्दन की समिधाऐं॥

युग का विश्वामित्र कह रहा, राम उठो, सन्ताप मिटाओं। युग पिनाक तोड़ना ठहर कर, पहले शिव का चाप चढाओं॥

- लाखनसिंह भदौरिया ‘शैलेन्द्र’ साहित्यकार

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118