एक शिष्य को अपने धर्म निष्ठ होने का अभिमान हो गया। गुरुजी उसे ताड़ गये। धर्म का सही अर्थ समझाने के लिए वे एक दिन एक सद्गृहस्थ के घर ठहरे। कृषक एक आम लाया था, उसे उसने अपनी धर्मपत्नी को दे दिया। बेचारी, धर्मपत्नी ने भी उसे खाया नहीं, छोटे बच्चे को दे दिया। बच्चों ने आम गुरु चरणों में समर्पित किया तो गुरु ने शिष्य को बताया- “वत्स! धर्म का यह है सही अर्थ।”