बगदाद के शासक

June 1969

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बगदाद के शासक ने जितना कर सकता था धन-सम्पत्ति जमा की। उसके लिये वह प्रजा पर तरह-तरह के अन्याय और अत्याचार भी करता था। उससे प्रजा बड़ी दुःखी थी। एक दिन गुरु नानक घूमते- घूमते बगदाद जा पहुँचे। खलीफा के महल के सामने ही वह कंकड़ों का छोटा- सा ढेर जमा करके उन्हीं के पास बैठ गये। किसी ने खफीफा को नानक के आने की सूचना दी। खलीफा स्वयं वहाँ पहुँचा। कंकड़ों का ढेर देखते ही उसने पूछा- ‘‘महाराज! आपने यह कंकड़ किस लिये इकट्ठे किये हैं।” गुरु नानक ने मुस्करा कर उत्तर दिया- ”अरे नानक! मैंने तो सुना था तू बड़ा ज्ञानी है पर तुम्हें इतना भी पता नहीं कि कयामत के दिन कोई अपने साथ कंकड़ तो क्या सुई- धागा भी नहीं जा सकतीं।” गुरु नानक ने चुटकी ली- ”मालूम नहीं महोदय, पर मैं आया इसी उद्देश्य से हूँ, कि ओर तो नहीं पर शायद आप प्रजा को लूटकर जो धन इकट्ठा कर रहे हैं, उसे अपने साथ ले जायेंगे तो उनके साथ ही यह कंकड़ भी चलें जायेंगे?” खलीफा समझ गया, इसके आगे प्रजा का उत्पीड़न बन्द कर उनकी सेवा में जुट गया।


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