22 जून 1955 के दिन इण्डोनेशिया में सूर्यग्रहण पड़ रहा था। हिन्दू और बौद्ध दर्शन से प्रभावित होने के कारण इण्डोनेशियाई लोगों में भी धर्म, आत्मा, परमात्मा के सम्बन्ध में लोगों की काफी जिज्ञासा में रहती है। ऐसे अवसरों पर वहाँ भी धार्मिक चर्चायें होती है। ऐसी ही बात–चीतें कुछ लोगों में चल रही थी। ‘साकसुबु’ नामक एक अधेड़ व्यक्ति ने बताया-”यह उसके जीवन के लिये हानिकारक है और ऐसा लगता है, मेरी मृत्यु के दिन जब समीप आ गये है।”
पाकसुबु के स्वास्थ्य में कोई खराबी न थी। उसका आयु भी कोई अधिक न थी, इसलिये लोगों ने उसकी बात को हँसी में उड़ा दिया।
एक सप्ताह बीतने को आया-पाकसुबु सामान्य दिनों की तरह स्वस्थ और भला-चंगा रहा, किन्तु सातवें दिन उसे हल्का-सा ज्वर चढ़ा ओर थोड़ी ही देर में उसका प्राणान्त हो गया। एक सप्ताह पूर्व उसे जिस बात का आभास हुआ था, वह इतना सत्य निकला इस पर उसके मित्रों और परिचित ने बड़ा आश्चर्य किया।
‘लन्दन से हाँयकाय तक’ पुस्तक के विद्वान् लेखक हुसेन रोफे एक बार अपने घनिष्ट मित्र श्री जे0 वी0 से मिलने गये। यह अवसर बहुत दिन बाद आया था, इसलिये हुये नरोफे कल्पनायें, अनेक योजनायें लेकर मित्र महोदय के पास गये थे, किन्तु जैसे-जैसे वह घर के समीप पहुँचते गये न जाने क्यों उनके मस्तिष्क में निराशा बढ़ती गई। अपनी इस अनायास स्थिति पर स्वयं रोफे को भी हैरानी थी। धीरे धीरे उनके मस्तिष्क में न जाने कहाँ से दबे-दबे विचार उठने लगे कि जे0 वी0 आत्महत्या की तैयारी कर रहा है। इस प्रकार का अचानक आभास और वह भी इतना जोरदार कि उन विचारों के जाये कोई और विचार टिक ही न पा रहा था।
रोफे के आश्चर्य का उस समय ठिकाना न रहा जब मित्र के घर पहुँचते ही उसने पाया कि वह जहर खरीद जाया है और आत्म हत्या की बिल्कुल तैयारी में ही है। हुसेन रोफे ठीक समय पर न पहुँच गये होते तो उन सज्जन ने अपना प्राणान्त ही कर लिया होता।
उक्त घटना की टिप्पणी करते हुये स्वयं हुसैन ने लिखा है कि भविष्य में होते वाली घटनाओं के प्रति चाहते हुये या अनचाहे जो अनुभूति होती है उसका मनुष्य जीवन की मूल समस्याओं के प्रति अत्यधिक कार्बनिक महत्व है। पशु-पक्षियों के बारे में भी हम देखते है कि इनको भविष्य की घटनाओं के बारे में अनुभूति हो जाती है। कोई बड़ा-फसाद, हत्या, लूटपाट या भूकम्प जैसी घटना घटित होनी होती है तो कुत्ते पहले ही एक विशेष प्रकार की डरावनी आवाज में रोने लगते है। आन्तरिक दृष्टि न होने के कारण हम उन सूक्ष्म अनुभूतियों और पूर्व ज्ञान की अवस्था को महत्व नहीं देते पर यदि हम थोड़ा-सा भी ध्यान दे तो वह मानना पड़ेगा कि मनुष्य की चेतना किसी विलक्षण और विश्व–व्यापी चेतना से सम्बन्ध रखती है। उसके गुणों में उसका सनातन होना भी सम्भव है। मनुष्य अपनी आन्तरिक शक्तियों को जागृत करके अपने जीवन की ओर अधिक सुविधाजनक और क्षमतावान् बना सकता है।
पूर्व ज्ञान या भविष्य-दर्शन को लेकर हमारी मान्यतायें और भी गहरी है। हिन्दू-दर्शन यह मानता है कि इस सृष्टि में जो कुछ भी चैतन्य है, यह सब आत्मा ही है। आत्मा ही सर्वत्र व्याप्त है, यही कर्ता और दृष्टा भी है। भूत में क्या था और भविष्य में क्या होना है ? वह सब आत्मा को जानकारी से परे नहीं है, क्योंकि वह सब कालों में विद्यमान् और अखण्ड है। तेजोबिंदूपनिषद में स्वामी कार्तिक के प्रश्न करने पर भगवान् शकर बतलाते हैं-
अखंडकरतो ह्यात्मा अंखडकरसौ गुपः। अखडैकरस लक्ष्यमखंडकरर्स अहः॥
अंखडेंकरसोमंत्र अर्थढेकरसा क्रिया। अखडैकरसं ज्ञानमखंद्वेकरसं वियत्॥ -2।3,
अर्थात्-आत्मा अखण्ड एकरस है गुरु भी वही सच्चा है जो अखण्ड और एकरस है। लक्ष्य अखण्ड एकरस है और तेज भी अखण्ड एकरस है। अन्य अखण्ड एकरस है, ज्ञान अखण्ड एकरस है, जल अखण्ड एकरस है।
इसी प्रकार जीव, ब्रह्मांड और परमात्मा को भी अखण्ड एकरस बताया गया है। तात्पर्य वह कि आत्महत्या ब्रह्म की सम्पूर्ण विभूतियों का ज्ञान जो कि एक सनातन सत्य के रूप में प्रस्फुटित होता है, यह भी अखण्ड है और मनुष्य उस अखण्ड ज्ञान से सम्बन्ध स्थापित कर लेने के बाद विषय की सम्पूर्ण हलचलों का ज्ञान, समीपवर्ती और दूरस्थ वस्तुओं का ज्ञान स्वयं ही प्राप्त करता है।
धार्मिक मान्यताओं और उपलब्धियों में कोई विवाद हो सकता है, किन्तु आत्मा की इन अनुभूतियों के सम्बन्ध में यदि वह सत्य है तो किसी भी दश, किसी भी परिस्थिति और काल में विवाद नहीं आना चाहिये और यही एक बिन्दु है, जहाँ विश्व के सम्पूर्ण धर्म एवं दर्शन एकाग्र होते है और यह मानने लगते हे कि संसार में ऐसी कोई चैतन्य सत्ता है अवश्य जो मनुष्य जीवन का मूत्र लक्ष्य है, यही सब ज्ञान, शक्ति और सामर्थ्यों का स्वामी है। वह पदार्थ की तरह निर्जीव नहीं वरन् कोई चैतन्य पदार्थ है और वही सृष्टि का नियमन करता रहता है।
इस मन्तव्य की पुष्टि करने वाली घटनायें केवल भारतवर्ष में ही नहीं संसार के प्रत्येक क्षेत्र में घटती रहती है ऊपर श्री हुसेन रोफे ने यही बात कही है। श्री मेयर्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक कि ह्य मल परसनैलिटी एण्ड हट्स सरवाइबल आफ बाडीसी डेग’ में 13 उदाहरण दिये है, जिसमें ऐसी अद्भुत ज्ञान शक्तियों का विवरण देकर यह बताने का प्रयत्न किया गया है कि ज्ञान की चमत्कारिक क्षमतायें पदार्थ की नहीं हो सकतीं। निश्चय ही वह कोई चेतन-शक्ति का खेल है। इन उदाहरणों में प्रसिद्ध गणितज्ञवास और ऐम्पेयर के उदाहरण भी दिये गये है।
भारतवर्ष में मैस्मरेजम, अँगूठे में दृष्टि जमाना, बिल्सौर दर्पण या पालिश किये हुये लोहे पर दृष्टि जमाकर भूत या भविष्य की घटनाओं का देखने और पता लगाने वाले अनेक चमत्कारी व्यक्ति पाये जाते है, ऐसा ही एक प्रयोग मर जोजैफ वार्नवी ने कराया। एक विशेष प्रकार के शीशे में जब उन्होंने दृष्टि जमाई और अपनी पत्नी का हाल जानना चाहा तो उन्होंने एक महिमा का चित्र देखा जो बहुत बड़िया किस्म के वस्त्र और आभूषण पहने हुई थी। महिला की शक्ल-सूरत तो उनकी धर्मपत्नी से मिलती-जुलती थी पर उन्होंने बताया कि मेरी पत्नी ऐसे आभूषण पहनती ही नहीं, इसलिये उन्हें इस विज्ञान पर विश्वास नहीं हुआ किन्तु जब यह घर लौटे तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि उनकी धर्मपत्नी ठीक वही आभूषण पहनें थी, जो उन्होंने दर्पण में देखा था। तब से वार्नवी भारतीय तत्व-दर्शन से इतना प्रभावित हुये कि उन्होंने समाज भारतीय हुसैन का कक्षा एक के विद्यार्थी की भाँति अध्ययन किया। उनके मस्तिष्क में बहुत दिन तक यह विचार उठता रहा कि जो आत्म शक्ति न देखे हुये को भी देख सकती है, न जाने हुये को भी ज्ञान सकती है, वह अपने आपमें सब प्रकार की भौतिक शक्यों से निःसन्देह परिपूर्ण होनी चाहिये। अपनी इन परिपूर्ण चेतन अवस्था को जानना इसलिये भी आवश्यक है, क्योंकि वही जीव की अन्तिम स्थिति है और उसे प्राप्त कर लेने पर संसार में और कुछ प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रह जाती।
आज वैज्ञानिक ने ऐसे-ऐसे कम्प्यूटर तैयार किये हैं, जिनकी इलेक्ट्रानिक शक्ति उन सब बातों को बता सकती है, जो प्रकृति (नेचर) के गणितीय (मेथेमेटिकल) सिद्धान्त से सम्बन्धित है। कम्प्यूटर शरीर के रोगों का पता बता देते है, लाखों प्रकाश वर्ष दूर के सितारों का दूरी, दिशा और कोण तक बता देते है, किन्तु यह मनुष्य कब मर जायेगा, एक वर्ष, एक माह, एक दिन बाद इस मनुष्य की क्या स्थिति होगी-ऐसा संकेतन ज्ञान के पास और न किसी मशीन में ही है। यह तो किसी आत्म-चेतना की ही शक्ति हो सकती है, जो ज्ञात अज्ञात रूप से लोगों को प्रेरित और प्रभावित करती रहती है। और ऐसे उदाहरण संसार के हर देख में देखने की मिलते है-
पूर्वाभास के सत्य अनुभव (ट्रू एक्सपीरियन्सेज इन एकेमी) नामक पुस्तक के विद्वान् लेखक थी मार्टिन ने ऐसी सैकड़ों घटनाओं का वर्णन किया है, जिसमें अध्याय का भी स्वप्न या साधारण अवस्था में विलक्षण आभास ‘संकेत लैण्डेड टू’ (दो व्यक्तियों की जान) शीर्षक से हेरोल्ड ग्लूक एक घटना इस प्रकार हुआ-
“नवम्बर 1950 की एक शनिवार को हमारे घर कोई उत्सव होने वाला था। एक दिन पूर्व शुक्रवार को ही मेरी धर्मपत्नी ने मुझसे कहा-”आज आप बाहर नहीं जायगा। घर की आवश्यक व्यवस्था में आज आपको साथ घटाना पड़ेगा।” किन्तु उस दिन मुझे ऐसी प्रबल प्रेरणा उठ रही थी कि आज तो समुद्र की सैर के लिये जाना ही चाहिये। मैंने अपनी धर्मपत्नी की बात को कमी ठुकराया नहीं पर मैं स्वयं नहीं जानता कि उस दिन मुझे किस अज्ञात शक्ति द्वारा प्रेरित का जा रहा था कि मैंने जानबूझ कर अपने मित्र जैक को कार लेकर अपने साथ चलने को राजी कर लिया। उस दिन समुद्र में तूफान आने की आशंका की घोषणा मौसम-विभाग के द्वारा की जा चुकी थी, इसलिये मेरी धर्मपत्नी ने समुद्र की ओर जाने से तो बिल्कुल ही इनकार कर दिया, किन्तु मेरे मन में न जाने क्यों कोई बात चिपक नहीं रही थी। मेरा कोई मन भी नहीं था पर भीतर से ऐसा लगता था, तुम्हें समुद्र की ओर जाना ही चाहिये।
निश्चित समय पर गाड़ी आ गई हम और जैक दोनों समुद्र की ओर चल पड़े। हमारे वहाँ पहुँचने से पर्व ही समुद्र भयंकर आवाज के साथ गरजने लग गया था। तटवर्ती मल्लाह पीछे हट चुके थे तो भी मेरे मुख से निकल ही गया-ओ भाई मल्लाह, हमें समुद्र की सैर करनी है, एक वोट तो देना।”
मल्लाह बुरी तरह झल्लाया “आपको दिखाई नहीं देता समुद्र किस तरह उबल रहा है, वोट तो डुबोयेंगे ही आप भी जान से हाथ धो बैठेंगे।” यही बात जैक ने भी कही किन्तु मुझे तो कोई अज्ञात शक्ति खींच रही थी, मैंने कहा-”यह लो वोट की कीमत और एक वोट मेरे लिये छोड़ दो।”
“मेरे हठ के सामने सब परास्त हो गये। वोट, हम और जैक देखते देखते समुद्र की लहरों में जा फंसे। मुझे 200 गज की दूरी पर फुटबाल की तरह कोई वस्तु दिखाई दी। मैंने जैक को इशारा किया तो जैक झल्लाया- ‘‘आज आपको क्या हो गया है, एक साधारण-सी फुटबाल के लिये अपने को मौत के मुख में डाल रहे है।”
मुझे यह बातें भी कुछ प्रभावित न कर सकीं। वोट उधर ही बढ़ा दी। पास पहुंचकर देखता हूँ कि दो नाविक जो समुद्र के तूफान में फँस गये थे, डूब रहे हैं, हमने किसी तरह उन्हें अपनी नाव में चढ़ाया और डोलते डगमगाते किनारे आ पहुँचे।
मेरी इस सहृदयता और साहस को जिसने भी सुना, सराहा। मेरी धर्मपत्नी ने उस दिन मुझे हृदय से लगा लिया। तब से बराबर सोचता रहता है, वह कौन-सी शक्ति थी जो मुझे इस तरह प्रेरित करके यहाँ तक ले गई? क्या ऐसा भी कोई तत्व है, जो अपनी इच्छा से विश्व का सृजन और नियमन करता है, यदि हो तो क्या मनुष्य इसकी स्पष्ट अनुभूति कर सकता है ?
इन प्रश्नों का उत्तर आत्म-चेतना की शोध और परिष्कार द्वारा ही सम्भव है। जड़ पदार्थों में न उसकी अनुभूति कर सकता है। न उसका ज्ञान। पूर्व ज्ञान आत्मा के लिये सम्भव है और उसकी प्राप्ति के लिये यह आवश्यक है कि भौतिक जगत् को ही सब कुछ न मानकर जीव चेतना का भी अनुसन्धान किया जाये।