मगध के एक धनी व्यापारी ने बहुत धन कमाया। उसे अपनी सम्पन्नता पर इतना खर्च हुआ कि वह अपने घर के लोगों पर ऐंठा करता। फल यह हुआ कि उसके लड़के भी उद्दंड और अहंकारी हो गये। पिता पुत्रों में ही ठनने लगी। घर नरक बन गया।
उद्विग्न व्यापारी ने महात्मा बुद्ध की शरण ली और कहा- “भगवन! मुझे यह नरक से मुक्ति दिलाइये, मैं भिक्षु होना चाहता हूँ।”
तथागत ने कुछ सोचकर उत्तर दिया- “भिक्षु बनने का अभी समय नहीं है तात्। तुम जैसा संसार चाहते हो वैसा आचरण करो तो घर में ही स्वर्ग के दर्शन कर सकोगे।”
व्यापारी घर लौट आया और विनम्रता बरतने लगा। उससे सारे घर के हृदय परिवर्तित हुए और सुख-शान्ति के दर्शन होने लगे।