अन्धेरी रात में दो युवक यात्रा कर रहे थे। एक लालटेन थी, उन दोनों का ही काम दे रही थी। चलते-चलते वे एक ऐसे स्थान पर आ पहुँचे, जहाँ से दोनों के रास्ते अलग-अलग होते थे। जिसकी लालटेन थी वह प्रसन्नतापूर्वक आगे बढ़ गया, दूसरे ने जो अन्धकार देखा तो आगे बढ़ने का साहब टूट गया।
क्या करे, क्या न करे वह इसी चिन्ता में था कि पास की एक कुटी से साधु निकले-साधु एक भजन गा रहे थे, जिसका अर्थ होता था-”हे प्रभु! मेरे अन्तर का दीपक जला दो जिससे संसार का अन्धेरा पथ सुविधापूर्वक तय कर ले।”
युवक ने बढ़कर साधु के पैर पकड़ लिये और बोला-”भगवन्! क्या कोई ऐसी भी ज्योति हैं जो हर घड़ी पास रहती हो और कभी न बुझती हो?” साधु ने एक शिला पर बैठते हुए कहा-”क्यों नहीं वत्स! आत्मा स्वयं प्रकाश हैं, तू उसे प्रज्ज्वलित कर और बढ़ जाआगे, संसार में भय किस बात का।”
यह सुनकर युवक को कापुरुषता दूर हो गई और वह प्रसन्नतापूर्वक आगे बढ़ गया।