मनुष्य मरने के बाद भी जिन्दा रहता है

June 1969

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वाशिंगटन के किसी वर्ष में श्रीयुत रेगरेन्ड आर्थर फोर्ड का भाषण था। मृतात्माओं को बुलाने और उनका जीवित मनुष्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में फोर्ड की उन दिनों अमेरिका में वैसी ही ख्याति थी, जिस तरह आज कल भारतवर्ष में अहमदनगर के श्री. बी.डी. ऋषि और उनकी धर्मपत्नी की चर्चा है। श्रीमती रूथ मांटगुमरी ने फोर्ड के बारे में अनेक बातें सुनी थी। वह स्वयं भी अमेरिका की प्रख्यात महिला थी और जीन डिक्सन के संपर्क में आने के बाद में आत्मा, मृत्यु, परलोक पुनर्जन्म आदि पर विस्तृत खोज कर रही थी। एक दिन एक लाइब्रेरी में उन्हें श्री शेरवुड एडी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘आप मृत्यु के बाद भी जीवित रहेंगे, (यू बिल सरवाइब आफ्टर डेव) पढ़ी। उसमें फोर्ड की उपलब्धियों की विस्तृत चर्चा थी। श्री एडी विश्व के विख्यात लेखक थे। पूर्व में बाड॰ एम॰ सी0 के संस्थापक भी वही थे, इसलिये श्रीमती रूथ मांटगुमरी ने निश्चय दिया कि जब एडी ने भी फोर्ड की उपलब्धियों को सत्य और प्रामाणिक माना है तो उनसे मिलकर निःसंदेह अनेक तथ्यों का पता लगाया जा सकता है। तभी से वे इस प्रयत्न में थी कि कहीं फोर्ड से भेंट की जाये। सौभाग्य ही था कि आज फोर्ड स्वयं किसी आध्यात्मिक भाषण के सम्बन्ध में वाशिंगटन पधारे थे। श्रीमती रूथ मांटगुमरी ने अवसर खोना ठीक नहीं समझा। वे फोर्ड से मिली और विस्तृत विचार-विमर्श के लिये और समय की माँग की। फोर्ड ने दो दिन याद आने की स्वीकृति दे दी।

दो दिन बाद श्रीमती रूथ मांटगुमरी फोर्ड से नियत स्थान पर फिर मिली और उनसे पूछा - क्या यह निश्चित है कि मृत्यु के बाद जीवन का अन्त नहीं हो जाता वरन् आत्मायें अपनी गतिविधियाँ और क्रिया-कलाप उसी प्रकार जारी रखती है, जिस तरह जीवित मनुष्य?

फोर्ड ने उत्तर दिया- “मृत्यु के पश्चात् भी आत्मायें दूसरे लोकों में जाकर बराबर आध्यात्मिक उन्नति के प्रयत्न में रहती है, जब तक लोक की प्राप्ति नहीं होगी तब तक उनका यह प्रयत्न बराबर बनता रहता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिये यह आत्मायें दूसरे लोगों, विशेष कर अपने प्रियजनों को संदेश भी पहुँचाना चाहती है पर उन सूक्ष्म संकेतों को जब लोग नहीं पकड़ पाते, इसलिये उनके संदेश निरर्थक जाते रहते है पर कई आत्मायें इतनी बलवान् होती है कि वे अपनी बात किसी माध्यम से व्यक्त कर सकती है और लिख भी सकती है, वह बातें वर्तमान् से सम्बन्ध रखने वाली हो सकती है, यही मृतात्माओं के अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रमाण है।

श्रीमती रूथ इतनी आसानी से यह बातें मान लेने वाली नहीं थी। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में ऐसी जिज्ञासायें उठती है, किंतु चिन्तन के अभाव में, विश्लेषण अथवा प्रमाणों के अभाव में वह रहस्य मुंदे के मुंदे रहे जाते है। एक बार बालक नचिकेता को भी ऐसी ही प्रबल जिज्ञासा उठी थी, उसने भी यमाचार्य से ऐसा ही प्रश्न किया था-

ये यंप्रेते विचिकित्सा मनुष्यें अस्तीत्येके मत्यमस्तीति जान्ये।

एतद्विबामनुन्निष्ट स्वयाहं वराणःमेव वरस्तृतीयः॥

-करु. उप. 1-20,

“आचार्य देव! मरे हुये मनुष्य के विषय में बड़ा भ्रम है। कुछ लोग कहते है, मृत्यु हो जाने पर भी बीज बना रहता है। कुछ कहले है, उसका नाश हो जाता है। सो आप मुझे उसका निश्चित निर्णय करके बताइये सत्य क्या है ?”

यमाचार्य ने नचिकेता को तब योगाभ्यास कराया और उसके द्वारा उसने यह जाना कि जीव किस प्रकार मृत्यु के उपरान्त यमलोक, प्रेतलोक, वृक्ष, वनस्पति आदि योनियों, भुवर्लोक आदि में जाता है और यहाँ की परिस्थितियों का वर्तमान जीवन की तरह उपयोग करता है। योग द्वारा सूक्ष्म शरीर के अदृश्य ज्ञान को स्थूल रूप में प्राप्त कर लेते है, शर्षी की विद्या किसी समय भारतवर्ष में बहुत अधिक प्रचलित थी। लोग पितरों से जीवित मनुष्यों की तरह सम्बन्ध स्थापित कर लेते थे, अब भी उस विद्या के जानकार छिट-पुट योगी है अवश्य, पर उनका दृष्टिकोण भी नितांत स्वार्थपूर्ण और व्यवसायिक है। संसार के कल्याण अथवा एक नये विज्ञान की खोज का भाव उनमें नहीं पाया जाता, यह विद्या धीरे-धीरे पश्चिम को जा रही है। पिछले 100 वर्षों में वहाँ इस संबंध में विस्तृत खोजे हुई है। बड़े-बड़े पदार्थ वेत्ताओं ने यह माना है कि मृत्यु के बाद चेतना दूसरे कोषों में बना रहता है, प्रोफेसर कुक्स, ब्रंटन और सर ओलिवर लाज ने इन विषयों पर बहुत अधिक लिखा है। श्रीमती रूथ मांटगुमरी ने तो अपना जीवन ही इस कार्य में लगाया और संसार को एक नये विज्ञान की प्रेरणा दी, यह घटना उनकी विस्तृत शोभा का ही एक अंग है।

अपनी बात फोर्ड ने समाप्त की तो श्रीमती रूथ मांटगुमरी ने उनसे पूछा- क्या आप ऐसी किसी आत्मा को बुलाकर मुझसे परिचय करा सकते है, जिसे में पहले से जानती होऊँ, जिससे मैं सत्य और असत्य का पता लगा सकूँ?

फोर्ड एक सोफे पर आराम से बैठ गये। दोनों आंखें एक काले रूमाल से बाँध ली। रूथ ने पूछा गया बत्ती बुझा देनी चाहिये पर फोर्ड ने कहा- उसकी कोई आवश्यकता नहीं है। थोड़ी देर बाद एक आवाज आने लगी, यह आवाज यद्यपि फोर्ड के मुख से ही आ रही थी पर उनकी आवाज से बिल्कुल भिन्न। उसने बताया यह लो श्रीमती रूथ तुम्हारे चाचा तुम से भेंट करना चाहते है। इनका नाम फ्रेन्ड बैंनेट है। यह बहुत समय पहले अफ्रीका में पादरी (प्रीचर) थे।”

श्रीमती रूथ तुरन्त बोली- “नहीं, नहीं यह गलत है मेरे इस नाम के कोई चाचा नहीं थे, न ही इस नाम के किसी व्यक्ति को जानती हूँ।” इसके बाद माध्यम (फोर्ड) देखकर बोलना आरम्भ किया- वह भी तुम्हें नहीं जानते उनका कहना है कि तुम्हारे पति उन्हें खूब अच्छी तरह जानते हैं, तुम्हारे पति का नाम ‘बाब’ है, तुम उनसे घर आकर पूछना और हाँ, अब तो यह तुम्हारे पिताजी उपस्थित है। वे अपना नाम ‘ट्रा’ बता रहे है। श्रीमती रूथ यह सुनते ही चौंकी- वस्तुतः उनके पिता का यही नाम था।

माध्यम ने आगे बोलना आरम्भ किया- “श्रीमती रूथ - आपके पिता आपको और आपकी माता जी को प्यार कहते हैं, ये बताते हैं कि जब उनकी मृत्यु हुई थी, तब तुम उनके पास नहीं थी। ये काफी बीमार थे और उनकी एकाएक मृत्यु हो गई थी। मर कर थोड़ी देर में उन्हें अपने रोग का भी पता नहीं रहा। ये स्वस्थ अनुभव कर रहे है, वे कह रहे है- ‘यहाँ किसी प्रकार की बीमारी नहीं है, मनुष्य हमेशा एक-सी अवस्था में रहता है, न वह बूढ़ा होता है, न बालक और न युवक। और हाँ देखो तुम्हारी माता जी यहाँ नहीं है, ये तुमसे काफी दूर है अभी कुछ दिन तक आयेंगी भी नहीं, उन्हें मैं देख रहा हूँ, उनकी टाँग में कई दिन से दर्द हो रहा है।”

उक्त दोनों व्यक्तियों के अतिरिक्त कई और जानी, अनजानी आत्माओं का परिचय श्रीमती रूथ से कराया गया। अपनी पुस्तक ‘सत्य की खोज में’ (इन सर्च आफ ट्रुथ) में वे स्वयं लिखती है- “कई पहचानी हुई आत्माओं की बातें इतनी सत्य थी कि’ मैं आश्चर्य - चकित रह गई। मेरे पिताजी ने जो-जो बातें बताई सब सच थी। सचमुच ही जब वे बीमार थे तब मैं अखबार के काम से इजिप्ट गई थी, मुझे इजिप्ट में ही तार द्वारा उनके निधन की सूचना दी गई थी। जब मैं लौट कर आई तब दो दिन बीत चुके थे, पिताजी किसी बीमारी से ही मरे थे, यह भी मुझे अच्छी तरह मालूम है।”

“सायंकाल मैंने एकाएक माताजी को टेलीफोन किया तो उन्होंने बताया कि सचमुच उनके एक पैर में कई दिन से बुरी तरह से कष्ट है और उन्हें लौटने में काफी समय लगेगा। इसी प्रकार बाब ने मुझे बताया कि मेरी मौसी फ्रेंड बैगेट नाम के एक पादरी को व्याही थी। वे काँपों (अफ्रीका) में ही रहते थे।”

इन दोनों घटनाओं में श्रीमती रूथ ने जहाँ वर्तमान् के सत्यों को स्वीकार किया है, यहाँ यह भी लिखा है कि यदि मृतात्माओं द्वारा बताई हुई भूत व वर्तमान की बातें सच होती है तो वे मृत्यु के अनन्तर अपने अस्तित्व के बारे में भी वो कुछ कहते है, उसे सत्य मानने से इनकार करना दुराग्रह ही होगा। उसे सत्य मानकर मानव समाज अपना अहित ही करता है क्योंकि उससे एक अत्यन्त आवश्यक और उपयोगी वास्तविकता पर पर्दा पड़ जाता है।”

माध्यम के द्वारा मेरे पिता ने कहा था- मैं तुम्हें एक ऐसे रहस्य का उद्घाटन करता हूँ, जो विश्व की सबसे बड़ी आवश्यकता है, वह यह कि हम एक ऐसे संसार में रह रहे है, जिसमें स्थूल की तरह सब कुछ दृश्य है, सब कुछ अनुभव गम्य है, जहाँ बराबर उन्नति होती रहती है। हम शून्य (बैकुबम) में नहीं रह रहे पर यहाँ सबको मनोरंजन से रहना पड़ता है यहाँ बेकार बैठकर कोई प्रसन्न नहीं रह सकता, जितना शरीर से काम कर सकता था उससे अधिक काम में अब भी कर सकता हूँ। तुम जानती होगी मुझे गाने का शोक था, मैं अभी भी संगीत का अभ्यास करता हूँ।”

“यह बातें सुनने वाले को अटपटी अवश्य लगती है, किंतु देर तक अध्ययन और खोज करने के पश्चात् मुझे इनकी सत्यता में अविश्वास नहीं रह जाता।” यह शब्द स्वयं श्रीमती रूथ मांटगुमरी ने स्वीकार किया है और उसके साथ अमेरिका की उस जबर्दस्त घटना को जोड़ा है जिसके बारे में वहाँ बहुत दिन तक व्यापक हलचल मची रही।

यह घटना भी फोर्ड ने माध्यम के द्वारा बताई- जिस समय श्रीमती रूथ को मृतात्माओं से परिचय कराया जा रहा था, माध्यम (फोर्ड जो मृतात्माओं को बुलाकर उनसे संकेत प्राप्त करके रूथ को बताता था) ने बताया - आपसे कोई जज बात करना चाहते है वह सैफ्टे शहर में आपके घर के समीप ही रहते थे, एक दिन अचानक कही गायब हो गये बाद में डूब जाने से उनकी मृत्यु हुई थी, शव का सड़ा हुआ ढाँचा अब भी वहाँ पड़ा देखा जा सकता है।

श्रीमती रूथ ने वहाँ तो यही कहा कि मुझे ऐसे किसी पड़ौसी का पता नहीं है, किंतु घर आकर उन्होंने सैफ्टे कूरियर जनरल के सम्पादक से टेलीफोन पर पूछा तो उसने बताया- “हाँ, हाँ आपके मकान के पास पार्किन्सन नामक एक सज्जन अवश्य रहते थे। ये ‘युणाड्रेड होर्ड आफर अपील्स’ में जज थे। ये एक बार एकाएक गायब हो गये। सात राज्यों के सम्मिलित प्रयत्नों के बाद भी उनका कही पता न चला। बेक शोर होटल के समीप मिलगन झीलके किनारे उनका एक हैट और खाता अवश्य मिला था पर उनके डूबकर मर जाने का कोई प्रमाण न मिलने के कारण उनके स्थान पर कोई परमानेन्ट जज की नियुक्ति नहीं की गई थी। उनका वेतन उनके बैंक खाते में जमा किया जाता रहा है।”

सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि थोड़े दिन बाद ही उनका सड़ा हुआ ढाँचा पानी में तैरता हुआ पाया गया। इन घटनाओं से इस बात की पुष्टि होती है कि जीवात्मा नहीं, शरीर मरता जीता है और मृत्यु के बाद भी जीवन का विकास-क्रम बन्द नहीं होता। गीता में, भगवान् कृष्ण ने भी यही बात कही है-

न छायते भ्रियते या कदाचित्रय मूत्या भविता या न भूयः।

अजों नित्यः आश्चतोऽयं पुराणों न हम्वते हन्यमागे शरीरे॥

-गीता 2 अध्याय।20,

अर्थात् यह आत्मा न तो कभी जन्म लेता है और न मरता है, यह तो अजन्मा, नित्य शाश्वत और पुरातन है, मरना-जीना तो शरीर का धर्म है, शरीर का नाश हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता।

योगवाशिष्ठ में लिखा है-

न जायते भ्रियते चेतनः पुरुषः क्वचित्। स्वप्नं संध्रमवड् भ्राँतमेंतत्पश्यनि केवलम्॥ 3।55।67,

पुरुश्चेतना माजं स कवा क्लेव तश्चति। चेतन व्यतिरिक्तत्ये वदाम्पक्तिं पुभान्यवेत्॥ 3।54।68,

आत्मा न कभी जन्म लेता है और न मरता है। भ्रमवश स्वप्न की-सी स्थिति का अनुभव किया करता है। पुरुष तो चेतन मान है वह नष्ट नहीं होता। लाखों शरीरों का नाश हो जाने पर भी चेतन आत्मा अक्षय स्थित रहता है।

इस घटना के पश्चात् श्रीमती रूथ ने यह विद्या कैसे सीखी और किस प्रकार स्वयं लेखन का उन्होंने अभ्यास किया। एक पेन्सिल किस तरह अदृश्य बातें लिखती है, वह पाठक अगले अंक में पड़ेंगे।


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