सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए

June 1964

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समाज के पुनर्निर्माण के लिए हमें स्वस्थ परम्पराओं को सुविकसित करने और हानिकारक कुरीतियों को हटाने के लिए कुछ विशेष काम करना पड़ेगा। अव्यवस्थित समाज में रहने वाले व्यक्ति कभी महापुरुष नहीं बन सकते। चारों और फैली हुई निकृष्ट प्रथाएं तथा विचारधाराएं बालकपन से ही मनुष्य को प्रभावित करती हैं ऐसी दशा में उसका मन भी संकीर्णताओं और ओछेपन से भरा रहता है। व्यक्तित्वों के विकास के लिए समाज का स्तर ऊंचा उठाना आवश्यक है। इसलिए अध्यात्मतत्त्व को मूर्तिमान देखने की आकाँक्षा करने वाले प्रबुद्ध व्यक्तियों को अपने समय के समाज में प्रचलित अव्यवस्थाओं को दूर करने के लिए कुछ ठोस और कड़े कदम उठाने ही पड़ते हैं।

हम भी इन जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते। सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए साहसपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है। विवाहों के नाम पर होने वाला अपव्यय हमारे समाज की सबसे बड़ी एवं सबसे घातक कुरीति है। उसका उन्मूलन हमारे जातीय जीवन-मरण का प्रश्न है। इस कुप्रथा की जड़ें इतनी गहरी घुस गई हैं कि उन्हें एकाकी कोई व्यक्ति नहीं उखाड़ सकता, इसके लिए सामूहिक एवं संगठित प्रयत्न ही सफल हो सकते हैं। अतएव विगत अंकों में जातीय संगठनों की आवश्यकता का प्रतिपादन किया जाता रहा है। इस संगठन का प्राथमिक उद्देश्य अपव्यय रहित आदर्श विवाहों की परम्परा प्रचलित करना है। पर बात यहीं तक सीमित रहने वाली नहीं है। आगे चलकर अन्य अनेक कुरीतियों का उन्मूलन तथा सभ्य-समाज के उपयुक्त स्वस्थ परम्पराओं का प्रचलन करना पड़ेगा। आरंभ इस रूप में हो रहा है पर इसका अन्त एक सुविकसित स्वस्थ, सशक्त एवं प्रबुद्ध समाज की नवरचना की सफलता के रूप में ही होगा।

यह भ्रम किसी को भी नहीं करना चाहिए कि जाति-पाति के नाम पर जो संकीर्णता का विष आज चारों ओर फैला हुआ है उसको इन संगठनों द्वारा प्रोत्साहन मिलेगा। ऐसा कदापि संभव नहीं। हम प्रगतिशील विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक आदर्शवादी कार्यक्रम, आदर्शवादी लोगों द्वारा आरंभ कर रहे हैं। दूसरे जातीय संगठनों ने उस संकीर्णता का विष भले ही बढ़ाया हो पर हम तो उसका उन्मूलन करने चले हैं और हर कदम फूँक-फूँक कर उठाने की सावधानी रख रहे हैं। ऐसी दशा में लक्ष्य से विपरीत दिशा में काम होने लगेगा ऐसी आशंका क्यों करनी चाहिए? युग-निर्माण योजना के अंतर्गत आरंभ किये गये प्रगतिशील जातीय संगठन सामाजिक क्राँति की भूमिका ही सम्पन्न करेंगे, उनके द्वारा पुनर्निर्माण का रचनात्मक कार्य ही संभव होगा।

इस जातीय संगठन कार्यक्रम को, आदर्श विवाहों की परम्परा को कार्यान्वित करने के लिए कुछ ऐसे कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है जो इस दिशा में सक्रिय प्रयत्न करें, अधिक समय लगावें और अधिक उत्साह प्रदर्शित करें। इस छोटे रूप में आरंभ की जाने वाली इस सामाजिक क्राँति का रूप आगे चलकर निश्चित रूप से बहुत व्यापक होने वाला है। उसका नेतृत्व, राजनैतिक नेतृत्व से भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण होगा। पिछली पीढ़ी के नवरत्न राजनैतिक स्वाधीनता संघर्ष में बहुत कुछ त्याग बलिदान करके भारत माता का मस्तक ऊंचा कर चुके हैं। अब वर्तमान पीढ़ी के सामने सामाजिक एवं बौद्धिक क्राँति की आवश्यकता उपस्थित है। इसके लिये वैसा ही साहस एवं त्याग अभीष्ट है जैसा कि स्वतंत्रता के सेनानी पिछले दिनों दिखा चुके हैं।

यों यह कार्यक्रम आगामी गुरु पूर्णिमा से युग-निर्माण योजना के द्वितीय वर्षारम्भ से विधिवत आरंभ हो जायेगा पर इसके लिए जैसे प्रभावशाली नेतृत्व की आवश्यकता है वह अभी नहीं मिला है। इस आवश्यकता की पूर्ति की जानी चाहिए। अपने परिवार में ऐसे व्यक्तियों की कमी नहीं जो नेतृत्व के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। उनके कदम आगे बढ़ने चाहिए। समय की पुकार अनसुनी न की जानी चाहिए। आन्दोलनों के आरंभ-कर्ता अपने मौलिक साहित्य के कारण अधिक श्रेय प्राप्त करते हैं। पीछे तो उसके व्यापक हो जाने पर अनेकों एक से एक उपयुक्त व्यक्ति उसमें आ मिलते हैं। देखना यह है कि युग की इस महान आवश्यकता की पूर्ति के लिए साहसपूर्ण कदम उठाने के लिए, हम में से कौन आगे बढ़ते हैं और किन्हें इतिहास में अमर बनाने वाला श्रेय लाभ प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है।


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