ख्वाजा हसन एक दिन टिग्रिस नदी के किनारे टहल रहे थे। शाम का अंधेरा हो चला था। उसने देखा कि पास में ही पेड़ के नीचे एक पुरुष एक नारी के साथ घुल-घुलकर बातें कर रहा है और हाथ में बोतल थामे है। ख्वाजा ने उसे धिक्कारा- दुष्ट नास्तिक इस सन्ध्या-काल में भी कुकर्म नहीं छोड़ता। इबादत करना न आता हो तो मुझसे सीख। उपदेश देकर वे मुड़ ही रहे थे कि सामने नदी में एक नाव चलती और उसमें बैठे हुए यात्री डूबते उतराते मौत जिन्दगी की लड़ाई लड़ने लगे।
पेड़ के नीचे अंधेरे में बैठा हुआ युवक पानी में कूदा और देखते-देखते उसने कितने ही डूबने वालों को खींच कर किनारे पर लगा दिया।
हसन किनारे पर खड़े यह देख रहे थे। जिसे वे दुष्ट नास्तिक कह रहे थे वह इतना उदार और सहृदय हो सकता है इसकी कल्पना भी न थी। जब युवक किनारे पर आया तो हसन उसकी प्रशंसा करने लगे। युवक ने उन्हें प्रणाम किया और कहा- कृपया निन्दा, प्रशंसा में जल्दी न किया करें। पेड़ के नीचे मेरी बीमार माँ बैठी है और बोतल में उसके पिलाने की दवा है।
हसन पानी-पानी हो गये और सोचने लगे बिना पूरी बात जाने कोई अभिप्राय बना लेना भूल नहीं तो और क्या है?