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June 1964

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यस्येच्छेदुत्तमाँ मैत्रीं, कुर्यान्नार्थामिलाषकम्।

परोक्षे तद्रहश्वारं, तत्स्त्रीसंभाषणम् तथा॥

तन्नयूनदर्शनं नैव, तत्प्रतीपविवादनम्।

असहाय्यं च तत्कार्ये, अनिष्टोपेक्षणं न च॥

जिस व्यक्ति से अभिन्न मित्रता की इच्छा हो, उससे कभी धन की अभिलाषा नहीं करनी चाहिए, उसके रहस्यों को उसकी पीठ-पीछे नहीं कहना चाहिए, उसकी अनुपस्थिति में उसकी स्त्री से बात चीत नहीं करनी चाहिए, मित्र की कमियों पर दृष्टि नहीं रखनी चाहिए। मित्र के विरुद्ध किसी से नहीं कहना चाहिए। उसके कामों में सदा सहायता करनी चाहिए, मित्र के अनिष्ट की कभी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।


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