संत दादू के पास एक महिला आई। उसका पति रुष्ट रहता था। घर की अनबन से निरन्तर अशाँति बनी रहती थी। महिला ने अपनी दुःखी गाथा संत से कही और कष्ट निवारण के लिए वशीकरण कवच माँगा।
संत ने उसे समझाया कि पति के दोष दुर्गुणों का विचार न करते हुए तुम सच्चे मन से उसकी सेवा करो। प्रेम से पशु भी वश में हो जाते हैं, मनुष्य की तो बात ही क्या है?
महिला को इससे संतोष न हुआ। वह वशीकरण कवच की ही माँग करती रही। अन्त में दादू जी ने एक कागज पर दो लाइन उसे लिखकर दे दीं और कहा- यह कवच है इसे पहनना और मेरे कहे अनुसार पति की प्रेमपूर्वक सेवा करना।
एक वर्ष बाद वह महिला बहुत सी भेंट उपहार लेकर आई। उसका पति वश में हो चुका था ‘घर का नरक स्वर्ग में परिणत हो चुका था। श्रद्धापूर्वक उसने संत के चरणों में मस्तक नवाते हुए भेंट प्रस्तुत की और वशीकरण कवच की बड़ी प्रशंसा करने लगी।
दादू ने उपस्थित लोगों से कहा-आप लोग भी यह वशीकरण विद्या सीख लें। महिला से उन्होंने कवच वापिस लेकर उसे खोला और सबको दिखाया। उसमें एक दोहा लिखा था-
दोहा-दोष देख मत क्रोध कर, मन से शंका खोय।
प्रेम भरी सेवा लगन से, पति वश में होय॥