प्रेम-मार्ग

June 1941

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(श्री यदुनंदन प्रसाद अग्रवाल, पौड़ी)

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पण्डित भया न कोय।

ढ़ाई अक्षर “प्रेम” का, पढै सो पण्डित होय॥

-(कबीर)

अग्नि की चिनगारी के ऊपर राख की पतली परत के रहते हुए उसके अस्तित्व का बोध हमें नहीं होता, परन्तु ज्यों ही परत हटा ली जाती है, चिनगारी देदीप्यमान होकर हमारे आँखों के सामने नाचने लगती है। ठीक इसी तरह हम जब प्रेम की असलियत तक पहुँचना चाहते हैं, तो हमें पहिले गहरे अनुभव द्वारा प्रेम के ऊपर पड़ी हुई उस परत को हटा लेना पड़ता है, और जहाँ एक बार उसे हटाने में सफल हुए नहीं कि हमें अपनी आत्मा प्रेम की प्रतिभा से ओत-प्रोत सी जान पड़ने लगती है। हमें प्रेम-मार्ग पर बढ़ते हुये अलौकिक सुख का अनुभव होने लगता है, और आखिर हम एक ऐसे स्थान पर पहुँचते हैं, जहाँ से अपने प्रेमी और अपने को दो भिन्न-भिन्न वस्तुओं के रूप से देखना नहीं चाहते। दो को एक करने या अपने प्रियतम से मिल जाने के लिये पागल से हो उठते हैं। बस फिर साँसारिक कार्यों से तुच्छता का अनुभव होने लगता है, हमारा हृदय सब कार्यों से विरक्त हो कर केवल अपने प्रेमी से मिल जाने के लिये व्यग्र हो जाता है। ऐसी स्थिति को प्रेम की पराकाष्ठा कहते हैं। प्रेम की पराकाष्ठा को पहुँचने पर साँसारिक कृत्यों से रिक्त होने की कामना प्रबल हो उठती है। उसके लिये जीवन, सिर्फ प्रेम-भजन के लिये हो जाता है। प्रेम की ऐसी स्थिति प्रायः भगवान के प्रति होती है। बड़े-बड़े सन्तजनों ने इसी तरह अपने अखण्ड प्रेम को भगवान के प्रति लगाया और अन्त में उसी प्रेमी भगवान से मिलकर एक हो गये।

जीवन का प्रेम से गूढ़ सम्बन्ध है। जहाँ हम अपने दैनिक-जीवन में प्रेम का आश्रय लेते हैं अपने नित्यकर्मों में प्रेम को ही प्रधानता देते हैं। वहाँ सुख और शान्ति हमारे चरणों में आकर लोटती है। प्रेम के बिना सुख की प्राप्ति असम्भव है। अगर झोंपड़े से प्रेम है, तो उसी से सुख है और अगर उन विशाल गगनचुम्बी अट्टालिकाओं से घृणा है तो वहाँ लाख सर पटकने पर भी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती।

प्रेम वशीकरण है, उसमें वशीभूत करने की शक्ति है। हम अगर किसी के प्रति अपना सच्चा निःस्वार्थ और अटूट प्रेम करते हैं उसके लिये अपने हृदय-पट खोल देते हैं, उसको अपनी आँखों में बिठा देते हैं, तो कोई संशय नहीं कि वह अपना हो जाता है, कितनी ही दूर क्यों न रहता हो मीरा के गिरधर गोपाल की तरह हर घड़ी हाजिर रहता है।

भगवान के प्रति पूर्ण प्रेम, संसार की और वृत्तियों को दबा लेता है। जिस तरह नेत्रों में अंजन लगाने से हमारे आँसू गिर पड़ते हैं, उसी तरह प्रेम रूपी अंजन हमारे आँखों के सामने नाच रहे तमाम मोह-जाल और इच्छाओं को गिरा देता है अगर हम सच्चे हृदय से अपने प्रीतम को पाने के लिये प्रेम करें तो अवश्य ही उन्हें पा सकते हैं।


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