प्रेम और मोह

June 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री हरि भाऊ उपाध्याय)

प्रेम आत्मिक और मोह शारीरिक है। अर्थात् जब तक आत्मिक गुणों के प्रति आकर्षण है, तब तक वह प्रेम के आकर्षण है, जब शारीरिक सौंदर्य या शारीरिक भोग की ओर आकर्षण होने लगे, तो समझो कि यह मोह का आकर्षण है और अपने को सँभालो। एक सुन्दर पुष्प को हम देखते हैं, उसके दैवी सौंदर्य पर मुग्ध होते हैं, उसमें ईश्वरीय छटा के दर्शन करते हैं, यह प्रेम हुआ। जब इसे तोड़ कर सूँघने या माला बनाकर धारण करने का मन हुआ, तो समझो, मोह के शिकार हो रहे हैं।

दूसरे, प्रेम में जिसे हम प्रेम करते हैं, उसके प्रति त्याग उत्कर्ष, सेवा लेने की चाह रहती है। प्रेम स्वयं कष्ट उठाता है, प्रेमपात्र को कष्ट पहुँचाता नहीं चाहता। उसकी उन्नति चाहता है, अधोगति नहीं। मोहित व्यक्ति अपने सुख की अनियंत्रित इच्छा के आगे प्रेमपात्र के कष्ट और दुख की परवा नहीं करता, उसकी रुचि अच्छे खान-पान, साज-शृंगार, नृत्य, नाटक, सिनेमा, आमोद-प्रमोद में होगी। जहाँ कि एक प्रेमी उसके मानसिक नैतिक और आत्मीय गुणों तथा शक्तियों के विकास में उसकी योजनाओं और कार्यक्रम में मग्न रहेगा।

प्रेम से मोह, मोह से भोग, भोग से पतन, यह अधोमुख जीवन की उत्तरोत्तर क्रम है, प्रेम से सेवा, सेवा से आत्म शुद्धि, आत्म शुद्धि से आत्मोन्नति ऊर्ध्वगति जीवन का क्रम है। प्रेम से हम मोह की तरफ बढ़ रहे हैं या सेवा की तरफ यही हमारे आत्म परीक्षण की पहली सीढ़ी है।

सर्वोदय।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118