(रचयिता श्री. रामदयाल गुप्ता, नौगढ़, बस्ती)
धन जीवन रक्षा की वस्तु है, किन्तु आज तो धन की रक्षा के लिये जीवन हो रहा है। आज मनुष्य अज्ञान के इतने गहरे गर्त्त में जा गिरा है कि उसे धन की तृषा के आगे कर्तव्य धर्म यहाँ तक कि मनुष्य तत्व को भी भूल गया। आये दिन ऐसे समाचार सुनने को मिलते रहते हैं। जो प्रकट करते हैं, कि धन कितना पैशाचिक रूप धारण कर सकता है और कितने कुकर्म कर सकता है।
इसी अप्रैल की लखनऊ की घटना है, जिसे समाचार पत्रों में आप लोगों ने पढ़ा होगा। उसे मैं यहाँ उद्धृत करता हूँ-
“लड़की गरीब घराने की थी। माता विमाता थी। वह उससे अक्सर हमेशा ही जला भुना करती थी। उसके पिता ने उसकी शादी अपने से अच्छे घराने में कर दी। दहेज विशेष न दे सका। इधर लड़के के पिता ने समझा कि दहेज काफी मिल जायेगा। ठहराने की कोई आवश्यकता नहीं। विवाहोपरांत जब वह ससुराल आई तो उसके सास, ससुर यहाँ तक कि उसके पति देव ने भी धन न मिलने के कारण लड़की को पकड़ कर चाहे जैसे बुरी भली सुनाई। वह बेचारी गरीब लड़की खून का घूँट पीकर रह जाती। आखिर वह कर ही क्या सकती थी। जब नैहर गई तो सब बातें अपने पिता से कहीं। माता तो उस से खुद ही नाराज रहा करती थी, इससे उससे न कह कर पिता से सारा दास्तान ससुराल वालों का कह सुनाया। पिता बेचारा क्या करता उसको समझा बुझा कर भेज दिया। इस बार उसने और ज्यादा मुसीबतें सही और नैहर जाने पर पिता से कहा-”पिताजी मुझे मेरे सास तथा ससुर ने बहुत पीटा है, तथा कहा है कि अपनी मृत माता के आभूषण लेती आना। पीटने का निशान मेरी पीठ पर अभी तक बना हुआ है।” यह कह कर वह रोने लगी। बाप बेचारा बड़ा दुखी हुआ, परन्तु करता भी क्या। इधर उसकी विमाता थी तो उधर उसके सास ससुर कष्ट देते थे। लाचार होकर फिर उसको समझा बुझा कर भेज दिया।
एक दिन पड़ोस के रहने वालों ने रात को सुना “मुझे जलाओ मत चाहे मार डालो”। इतना सुन कर उन लोगों को फिर कोई आवाज मालूम न दी। सबेरे लड़की के ससुराल वालों ने यह अफवाह उड़ाई कि लड़की फाँसी लगा कर तथा जल कर मर गई है। क्योंकि जलने का दाग उसके शरीर पर बना हुआ था, और फिर जब लड़की ने जलाने को मना किया तो गले में रस्सी बाँध कर गला घोट कर मार डाला था। सबेरे पड़ोसियों द्वारा सरकारी कर्मचारियों को सब रात की दास्तान मालूम हुई और पोस्टमार्टम करने पर मालूम हुआ कि यह प्रथम जलाई जाकर फिर गला घोट कर मार डाली गई है, आखिर नतीजा यह हुआ कि उसके सास, ससुर तथा पति को हिरासत में ले लिया गया।
विवाह संस्कार दो आत्माओं का पवित्र सम्मेलन है। यह आध्यात्मिक समारोह है। इस यज्ञ कर्म में भी जब पैसे ही को प्रधानता मिलने लगी, पैसे के लिये लड़के-लड़कियाँ बिकने लगे। दहेज के लिये प्राण पीसे जाने लगे, तो समझना चाहिये कि मनुष्य जाति के मूलभूत सिद्धांतों का ही पतन हो रहा है।
हे प्रभु मनुष्यता को शैतानियता के पंजे से बचाओ।
*समाप्त*