परोक्ष आवाहन

June 1941

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(परलोक विद्या के आचार्य श्री. बी.डी. ऋषि, मुम्मबई)

परलोक व्यक्ति से संवाद करने के प्रयोग प्रायः उस मनुष्य के संबंधी के उपस्थिति में किये जाते हैं, संबंधी के प्रेमपूर्वक प्रार्थना से आवाहित व्यक्ति का आगमन साधारणतः सुलभता से होता है। स्नेहयुक्त व्यक्ति की उपस्थिति और माध्यम का सहकार्य इन दोनों तत्वों से दिवंगत मनुष्य अपने विचार प्रकट करने में समर्थ होते हैं, तथा जो उनको पूछा जाता है, उन बातों के सम्बन्ध में भी यथा शक्ति तथा यथा मति संदेश देते हैं। कभी-कभी स्वयं प्रेरणा से भी वे अपने विचार भिन्न-भिन्न रीति से व्यक्त करते हैं।

उपर्युक्त प्रयोगों के अतिरिक्त संबन्धियों की अनुपस्थिति में भी स्वर्गस्थ व्यक्ति से संवाद करने के प्रयत्न किये जाते हैं। इन प्रयोगों में माध्यमों के सिवाय अन्य कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं रहता है, इस अवसर पर केवल आवाहित व्यक्ति का नियमानुसार ध्यान करने पर उसका आगमन होकर संतोष कारक तथा विचारणीय संदेश प्राप्त होते हैं, इस प्रकार के प्रयोग जिज्ञासुओं के लिये करने की संधि हमेशा हमको आती है, कारण कई कारणों से बहुत से लोग हमारे प्रयोग में उपस्थित होने में असमर्थ रहते हैं।

कई पाठकों को यह विदित होगा कि प्रायः प्रतिदिन सुभद्रा बाई से हम संवाद करते हैं। वह समाप्त होने पर जिज्ञासुओं के लिये प्रयत्न किये जाते हैं, उस समय हमारे सामने जिज्ञासु के पत्र के अतिरिक्त अन्य कोई आकर्षक वस्तु नहीं रहती, जिस व्यक्ति का आह वाहन करना होगा, उसका नाम तथा संबंध उस पत्र में लिखा हुआ रहता है, उसके अनुसार हम उस व्यक्ति का नामोच्चार करके उसके आगमन के लिये प्रार्थना करते हैं। कुछ मिनट तक प्रार्थना करने पर मेज में स्वयं गति प्राप्त होती है। जिससे उस व्यक्ति का आगमन सूचित होता है। इस प्रकार से आगमन विदित होने पर उस व्यक्ति को अपने संदेश लिखकर बतलाने की विनती की जाती है, वह स्वीकार होने पर औजा बोर्ड द्वारा संदेश लिखकर आते हैं। उस व्यक्ति के संबंधों ने जो प्रश्न पूछे होंगे उनके बारे में प्रथम संदेश प्राप्त किये जाते हैं। वह समाप्त होने पर उस व्यक्ति को जो स्वयं कहना होगा। वह लिखा जाता है, इन संदेशों में आवाहित मनुष्य का व्यक्तित्व कई प्रकार से स्पष्ट होकर उनके विचार प्राप्त होते हैं।

कभी-कभी प्रथम प्रयोग में कुछ देर तक प्रार्थना करने पर भी आवाहित व्यक्ति का आगमन नहीं होता, ऐसे समय पर सुभद्रा बाई से प्रयत्न स्थगित करने की सूचना मिलती है, दूसरे दिन फिर उसी प्रकार का प्रयत्न करके इच्छित मनुष्य की प्रतिज्ञा की जाती है, प्रायः दूसरे दिन प्रयत्न सफल होता है, कदाचित ही तीसरे या चौथे दिन तक प्रयत्न करना आवश्यक होता है, बार-बार ध्यान करने पर इच्छित व्यक्ति का न आना कई कारणों पर निर्भर रहता है, कभी-कभी प्रार्थना की प्रतिक्रिया यथोचित न होने से अथवा परलोकस्य मार्गदर्शकों की अनुमति न मिलने से अथवा कुछ कार्य में व्यग्र होने से परलोक वासियों का आगमन इच्छित समय पर नहीं होता है।

सब व्यक्तियों को प्रथम प्रयोग में संदेश लिखने की सुविधा नहीं रहती, इसलिये यह देखा गया है कि ऐसे समय पर सुभद्रा बाई उनको अदृश्य रीति से साहाय्य करती है अथवा उनको पूछकर उनके विचार लिखकर बतलाती है, यदि मृतात्मा को जो भाषा आती होगी वह हमको अपरिचित हो, तो अन्य किसी परलोकस्य व्यक्ति का साहाय्य लेना आवश्यक होता है। जो इहलोक में निरक्षर थे, वे प्रायः अपने विचार अन्य साक्षरों द्वारा व्यक्त करते हैं। उसी के अनुसार बालकों के स्थिति के बारे में अन्य परिचित व्यक्ति द्वारा संदेश प्राप्त हो सकते हैं।


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