महानात्माओं की कृपादृष्टि

June 1941

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(ले. पं. भोजराज शुक्ल ऐत्मादपुर, आगरा)

दक्षिण देश के एक नगर में धनमदान्ध एक बनिया रहता था, वह अपने तुल्य किसी को भी बुद्धिमान और धनी नहीं जानता था। रात-दिन धन कमाने की चिन्ता में लगा रहता था, कभी भी किसी साधु महात्मा तथा ब्राह्मण का सत्कार नहीं करता था, भूल कर भी ईश्वर का नाम नहीं लेता था। दैवयोग से एक दिन एक महात्मा उस रास्ते से आ निकले जहाँ पर उस बनिये की दुकान थी। महात्मा उसकी दुकान के सामने जाकर खड़े हो गये और उस बनिये की तरफ देखने लगे। वह बनिया अपने धन के मद से ऐसा उन्मत्त था कि उसने आँख उठा कर भी महात्मा की तरफ नहीं देखा, क्योंकि धन का मद बड़ा भारी होता है।

यह दशा देखकर महात्मा को अपने दयालु स्वभाव से उस बनिये पर दया आ गई मन में सोचा कि इसको इस कीचड़ से निकालना चाहिए। ऐसा विचार करके उस बनिये से कहा कि “राम-राम कहो” उसने महात्मा की तरफ न देखा न बोला, जब कि दो तीन बार कहने से भी वह बनिया न बोला तब महात्मा ने सोचा कि यह महामूर्ख तथा अभिमानी है, इस प्रकार यह न मानेगा, इसका दण्ड दिया जायेगा, ऐसा विचार कर महात्मा उस नगर के समीप बहने वाली नदी के तीर पर चले गये। प्रातः काल जब वह बनिया नदी पर स्नान करने को गया। तब महात्मा ने अपने योग बल से अपना रूप उस बनिये के रूप के समान बना लिया, वह तो अभी स्नान ही कर रहा था, महात्मा उस बनिये का रूप धारण करके उसके घर की तरफ चल दिये। घर पर पहुँचते ही उस बनिये के लड़कों ने देखा कि पिता जी आज जल्दी स्नान करके आ गये, पूछा कि पिता जी! आज जल्दी आने का क्या कारण है? महात्मा ने उत्तर दिया कि “आज एक इन्द्र जाली हमारी सूरत बना कर आयेगा, हम देख आये हैं। वह चाहे जिसकी सूरत बना लेता है। तुम लोगों को सजग रहना चाहिये। जब वह तुम्हारे यहाँ आवे उसे घर में मत घुसने देना, धक्के देकर निकाल देना, यदि वह घर में घुसने का आग्रह करे तो दो चार जूते भी लगा देना” ऐसा कह कर महात्मा जी भोजन करके घर के कमरे में पलंग पर लेट गए।

उधर बनिया स्नान करके घर को आया, ज्यों ही घर में घुसने लगा, उसके छोटे पुत्र ने डाँटा, कहने लगा कौन है, किधर जाता है। बनिया बोला क्या तुमने भाँग पी ली है, जो पागलों की सी बातें करते हो। यह कहकर घर में घुसने लगा, छोटे लड़के ने हाथ पकड़ कर बनिये को दरवाजे से बाहर कर दिया, कहने लगा कि मेरे पिता जी तो कमरे में लेटे हैं, तू तो मायावी (इन्द्रजाली) है। मेरे पिता का रूप बनाकर घर में घुसना चाहता है, बनिया घबराकर कहने लगा कि बेटा बाप तो तुम्हारा मैं ही हूँ, मुझे घर में जाने से क्यों रोकते हो भोजन पाकर झटपट दुकान पर जाऊँ। ग्राहक लौटे जाते होंगे, क्यों तुमको किसी ने बहका दिया है, जो मेरे जीते जी मेरी सम्पत्ति के मालिक बन के मुझे निकाल देना चाहते हो। इतने में बड़ा लड़का भी आ गया। दोनों ने मिलकर उसे खूब पीटा धक्के लगाकर घर से दूर भगा दिया।

बनिये ने जाकर उस शहर के हाकिम से फरयाद की कि मेरे बेटों ने मुझे घर से निकाल दिया है, मेरी सम्पत्ति अपने अधिकार में कर ली है। हाकिम ने बनिये के दोनों लड़कों को बुलाकर कुल हाल पूछा, उन्होंने उत्तर दिया कि हुजूर हमारे पिता जी तो घर में मौजूद है। यह तो कोई बहरूपिया ठग है, जो हमारे पिता जी का रूप बनाकर घर में घुसकर हमको ठगना चाहता है। हाकिम ने लड़कों से कहा कि अच्छा अपने पिता जी को घर से लिवा लाओ, लड़के अपने पिता जी (महात्मा) को तुरन्त लिवा लाये, हाकिम दोनों की एक सी सूरत देखकर अचम्भे में पड़ गया। सोचने लगा क्या किया जावें, दोनों का अंग प्रत्यंग एक ही सा मिलता है। बोल-चाल एक सी है, किसको असली पिता कहा जावे, किसको नकली। तब महात्मा कहने लगे कि “श्रीमान यदि यह असली पिता है तो इस बात को बदलावे कि बड़े लड़के के विवाह में कितना रुपया लगा था। तथा जब मकान बना था, उसमें कितनी रकम खर्च हुई थी, यदि यह न बता सके तो मैं बतलाता हूँ, बनिया बोला कि मुझे जबानी याद नहीं है, महात्मा ने दोनों रकमें रुपये आना, पाई से ठीक बतला दीं, बस फिर क्या था, हाकिम ने तुरन्त हुक्म दिया, उस बनिये से कहा कि 6 घंटे के अन्दर शहर से निकल जाओ, वरना जेल में डाल दिये जाओगे।

अब तो बनिये का धन-मद उतर गया। अपने भाग्य को धिक्कारता हुआ नदी के किनारे पर बैठ कर रोने लगा। सन्ध्या को महात्मा जी जब नदी पर स्नान करने को गये, तब उन्होंने अपना असली रूप महात्मा का धारण कर लिया। क्या देखते हैं कि वह बनिया दिनभर का भूखा-प्यासा फूट-फूट कर रो रहा है, महात्मा जी ने उसके समीप जाकर कहा कि “लाला जी, राम राम कहो” सब दुःख दूर हो जायगा। महात्मा के वचन सुनकर बनिया काँपने लगा और जोर से ‘राम राम’ पुकारने लगा। जब महात्मा ने देखा कि अब इसको राम राम की तन, मन से रटन लग गई है, तब महात्मा बोले अब तू धक्के और जूते खाकर राम राम पुकारने लगा है। यदि तू पहिले ही राम नाम से प्रेम रखता तब क्यों धक्के और जूते खाकर घर से निकाला जाता। जिन लड़कों के लिये तूने अनेक अनर्थ करके धन कमाया उन्हीं लड़कों ने तुझे जूते मार कर घर से निकाल दिया। फिर भी तू अगर बेटों के प्रेम तथा मोह में फंसकर राम नाम का स्मरण न करेगा, तो भविष्य में तेरी इससे भी बुरी दशा होगी। अरे! तूने अपना जीवन व्यर्थ खो दिया। कभी राम नाम भूलकर मुख से न निकाला और न साधु ब्राह्मण की सेवा की।

यह सुनकर वह बनिया महात्मा के चरणों पर गिर गया, महात्मा ने कहा कि तेरे घर पर जो लड़कों का पिता पलंग पर लेटा था, मैं ही था, तुझे इस कार्य का दण्ड दिलाने को मैंने ऐसा किया, मैं बहुत समय तक तेरी दुकान के आगे खड़ा रहा, तूने वाणी से भी सत्कार न किया तू इतना धनमदान्ध हो गया था। अब तू अपने घर जा आनन्द से रह, पर कभी उम्मीद मत करना। धर्म करना, सत्संग करना साधु ब्राह्मण की सेवा करना, ऐसा कहकर महात्मा तो चले गये, उस दिन से वह बनिया भगवान का भजन करने लगा। पाठक विचार कीजिए कि महात्मा ने किस युक्ति से उस बनिये का जीवन सुधार दिया। धन्य है! ऐसे दयालु परोपकारी महात्मा जो पापियों का भी जीवन सुधारने में प्रयत्नशील रहते हैं, तभी तो शास्त्र कहते हैं-

यस्यानुभव पर्यन्तो, बुद्धिस्तत्वे प्रवर्त्तते।

त्दृष्टि गोचराः सर्वे, मुच्यन्ते सर्व किल्विषैः॥

जिसकी बुद्धि अद्वितीय आत्मा में प्रवृत्त होती है, जो सर्वभूतों में आत्मा ही देखता है ऐसा पुरुष जिसको कृपा करके देख लेता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।


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