जीन जेक रूसो

June 1941

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जो कहारी करते-करते विद्वान् बना था।

बात आज की नहीं करीब एक हजार वर्ष पुरानी है। लायोन्स नगर में एक धनी व्यक्ति के यहाँ एक बड़ा भारी भोज हुआ। दूर-दूर से बड़े-बड़े अमीर, उमराव, वकील, बैरिस्टर, अधिकारी, धर्माचार्य पधारे। आगन्तुक महानुभावों के स्वागत में एक बड़ा शानदार जलसा किया गया।

उन दिनों जलसों में किसी विषय पर बहुत युवा हिंसा करते रहने की प्रथा थी। यूनान की पौराणिक कथाओं से सम्बन्ध रखने वाले कुछ चित्र जलसे के उस प्रमोद भवन में टँगे हुए थे। मेहमानों में उन्हीं के सम्बन्ध में कुछ विवाद चल पड़ा। विवाद जब बहुत बढ़ गया तो गृह-स्वामी को निर्णय के लिये बुलाया गया, प्रश्न जब उसके सामने रखा गया तो वह बेचारा कुछ न बता सका, किन्तु उसने अपने एक कहार को बुलाया और आज्ञा दी कि इस चित्र के संबंध में आगन्तुक महानुभावों को कुछ बतावें।

कहार ने विनम्र और विश्वसनीय भाषा में उन चित्रों के सम्बन्ध में पुराणों के मर्म रहस्य विस्तार पूर्वक प्रमाणों के साथ समझा दिये। इससे सब लोगों को बड़ा सन्तोष हुआ।

एक आगन्तुक ने आदर सहित उससे पूछा -महोदय! आपने किस स्कूल में शिक्षा पाई है? कहार ने विनयपूर्वक कहा-श्रीमन्! मैं किसी स्कूल में नहीं पढ़ सका, किन्तु मैंने ‘विपत्ति’ की पाठशाला में बहुत कुछ सीखा है।

यह कहार दिनभर परिश्रम करके रोटी कमाता और बचे हुए समय में पढ़ता, अन्त में धुरंधर विद्वान् और शास्त्रकार हुआ। दुनिया जानती है कि ‘जीन जेक रूसो’ कितना बड़ा पण्डित प्राचीन काल में हो चुका है, उसने कहार का पेशा करते हुए बचे समय में इतना अध्ययन कर लिया था।


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