ज्ञानी कौन है?

June 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ले. शिवकुमार झा अध्यापक, टिहिया)

कोई प्रश्न करे कि “ज्ञानी कौन है?” तो इसके उत्तर में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। जो कहता है कि मुझे ज्ञान हो गया, उसे ज्ञानी नहीं कहना चाहिये, क्योंकि यों कहने से ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय तीन पदार्थ सिद्ध होते हैं। जो कहता है कि मुझे ज्ञान ही हुआ, वह भी ज्ञानी नहीं; क्योंकि वह स्पष्ट कहता है। जो यह कहता है कि मुझे ज्ञान हुआ कि नहीं मुझे मालूम नहीं, सो भी ज्ञानी नहीं है। क्योंकि ज्ञानोत्तर काल में इस प्रकार सन्देह नहीं रह सकता। यदि शरीर को ज्ञानी कहा जाय, तो जड़ शरीर का ज्ञानी होना सम्भव नहीं। यदि जीव को ज्ञानी कहा जाय, तो ज्ञानोत्तर काल में उस चेतन की जीव संज्ञा नहीं रह सकती। यदि शुद्ध चेतन तत्व को ज्ञानी कहा जाय, तो भी अपराध है, क्योंकि शुद्ध चेतन तत्व तो कभी अज्ञानी हुआ ही नहीं, इसलिये यह नहीं बतलाया जा सकता कि “ज्ञानी कौन है”! ज्ञानी की कल्पना अज्ञानी के अन्तःकरण में है। शुद्ध चेतन तत्व की दृष्टि में तो कोई दूसरा पदार्थ है ही नहीं। ज्ञानी को जब दृष्टि ही नहीं रहती, तो फिर सृष्टि कहाँ रहती? अज्ञानी जन इस प्रकार कल्पना किया करते हैं कि इस शरीर में जो जीव था सो समष्टि चेतन तत्व में मिल गया! समष्टि चेतन तत्व के जिस अंश में अन्तःकरण का अध्यारोप है, उस अन्तःकरण सहित उस चेतन तत्व का नाम ज्ञानी है। वास्तविक दृष्टि में ज्ञानी किसकी संज्ञा है, कोई भी नहीं बतला सकता। क्योंकि ज्ञानी की दृष्टि में तो ज्ञानी पन भी नहीं है। ज्ञानी अज्ञानी की कल्पना केवल लोक-शिक्षा के लिये है और अज्ञानियों के अन्दर ही इसकी कल्पना है।

भला जो गुणातीत है, उसमें लक्षण कैसे लक्षण तो अन्तःकरण में बनते हैं और अन्तःकरण से होने वाली क्रिया त्रिगुणात्मिका है, इसलिये यह नहीं बतलाया जा सकता कि “ज्ञानी कौन है”।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118