(1)
नोट-स्वर योग से दिव्य ज्ञान पुस्तक के संबन्ध में अनेक पत्र हमारे पास आये हैं, जिनमें जिज्ञासु कुछ विशेष जानकारी प्राप्त करने की इच्छा प्रकट करते हैं। जिज्ञासुओं से प्रार्थना है कि वे इस सम्बन्ध में हमें न लिखकर सीधे लेखक से पत्र व्यवहार करें। लेखक का पता यह है-श्री नारायण प्रसाद तिवारी ‘उज्ज्वल’, सब इन्सपेक्टर पुलिस, पो. कान्हीवाडा, जि. छिदवाड़ा है।
संपादक।
(2)
मैं स्वरयोग का प्रेमी हूँ। हिन्दी और मराठी में स्वरयोग पर जितनी भी पुस्तकें छपी है वे सभी मैंने पढ़ी हैं, परन्तु स्वरयोग से दिव्यज्ञान जैसी विवेचना पूर्ण पुस्तक मैंने एक भी न पढ़ी थी। इससे मुझे बहुत सी नवीन जानकारी प्राप्त हुई है।
शंकरशरण अवस्थी, विलग्राम।
(3)
वर्तमान समय में बुद्धि दोष के कारण हम प्राचीन तत्व ज्ञान को नहीं समझ पाते और उसका उपहास करते हैं। फलस्वरूप अपने पूर्वजों की अमूल्य खोजों का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। स्वरयोग से दिव्यज्ञान के लेखक ने इस महत्व को वैज्ञानिक ढंग से लिखकर हमारी आँखें खोल दी हैं। भारतीय जनता इस पुस्तक के लिये लेखक की चिर ऋणी रहेगी।
-विद्यावागीश भट्ट, शोलापुर
(4)
भोग में योग पुस्तक मिली। शीघ्र पतन की मुझे भारी शिकायत थी। अनेक स्तम्भक औषधियाँ सेवन करने से निराश हो चुका था, इसमें बताई हुई विधियों से मुझे बड़ा लाभ हो रहा है।
-गिरजादत्त् गोस्वामी, डिवाई।
(5)
हमें आशा न थी कि अखण्ड-ज्योति मासिक पत्र इतने थोड़े समय में ही बुद्धि और विचार का भण्डार बनेगी। इस पत्रिका की जितनी तारीफ करें, तो भी थोड़ी ही है कारण? जब से आपका ग्राहक बनकर ‘अखण्ड-ज्योति’ अवलोकन किया, तब से हमारी आत्मा को धैर्य और शान्ति प्राप्त हुई है।
-शक्तिनन्द शर्मा, पटुको बाजार नेपाल,
(6)
आपकी महान् कृपा से तथा आपके ‘अखंड-ज्योति’ परिवार की हार्दिक प्रेरणा से मेरे जीवन में जो आश्चर्यजनक परिवर्तन हुआ है, उसके लिये हार्दिक धन्यवाद है। आज उन तूफानी आवेशों का नाम नहीं, जो पिछले वर्ष में था। यहाँ तक कि मेरे दोस्त मेरी अवस्था को देकर मुझे कहते हैं-रमेश तुझे क्या हो गया है।
-रमेश, कुम्भीपुर
(7)
मुझे ‘अखण्ड-ज्योति’ का नमूना ता 11 जून को मिला। पढ़ने से ऐसा प्रतीत हुआ कि मानों मैं। किसी ऋषि के आश्रम में बैठा उपदेश सुन रहा हूँ। सचमुच ‘अखण्ड-ज्योति’ की वाणी की अखण्ड झनकार मेरे हृदय में बज रही है। मेरे पास इस समय पैसा न होने के कारण मैं अखण्ड-ज्योति का ग्राहक नहीं हो सका। लेकिन मैं शीघ्र ही आपके पत्र का ग्राहक बनूँगा और अपने मित्रों को भी बनाऊँगा।
-गोविन्दसिंह बिष्ट, नपाल खोला, अल्मोड़ा।