संसार का त्राण योगी करेंगे

June 1941

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(महात्मा अरविन्द घोष की दिव्य वाणी)

आधुनिक समय का सबसे बड़ा काम यही है कि वह कुछ पूर्ण योगी मनुष्यों को पैदा करे। इस समय संसार का भविष्य भारतवर्ष के उन्हीं पूर्ण योगियों पर ही निर्भर है। यद्यपि वहाँ काम करने वाले मनुष्य है बहुत से, किन्तु भारत के भविष्य के काम के लिये पूर्ण योगी, पुरुषों की आवश्यकता है। क्योंकि संसार के जिस विराट कार्य का भार भारत पर पड़ने वाला है, उसका भार पूर्ण योगी पुरुषों के बिना साधारण बुद्धिजीवी या हृदय जीवी मनुष्य चाहे वे कितने ही बड़े नेता अथवा कार्यकर्त्ता क्यों न हो, नहीं सँभाल सकेंगे और न उसका सँभालना किसी प्रकार सम्भव ही है।

भविष्य में भारत को जिस विपुल विराट् कर्म का भार अपने ऊपर लेकर खड़ा होना पड़ेगा, उसकी सूचना स्वरूप सारे संसार में एक विचित्र विकास का होना आरम्भ हो गया है। आगामी तीस चालीस वर्ष के भीतर संसार में एक विचित्र पवित्र परिवर्तन होगा, सारी बातों में ही उलट फेर हो जायगा, उसके बाद जो नवीन जगत तैयार होगा, उसमें भारत की सभ्यता ही संसार की सभ्यता होगी। भावी भारत का काम केवल भारत के लिये नहीं है, बल्कि समूचे संसार के लिये है। अतएव अब भारत को उन्हीं पूर्ण योगी मनुष्यों की तैयारी में लगना चाहिये जो इतने गुरुतर भार का सँभार करने में समर्थ होंगे। यह काम नीरव मातृ साधना में ही प्रारम्भ भी हो गया है। योगियों के लिये सब कुछ सम्भव है। शिक्षा, समाज, राजनीति, शिल्प और वाणिज्य आदि सभी क्षेत्रों में योगियों को अपूर्ण प्रतिभा, विचित्र सृष्टि तैयार कर सकती है। यह निश्चय है। इस समय योगियों द्वारा ही संसार में एक विचित्र नवीन परिवर्तन भगवान करना चाहते हैं। पूर्ण योगी पुरुषों द्वारा जो कर्म तैयार होगा वही भावी जगत का सच्चा काम होगा। पूर्ण योगियों को पैदा किये बिना कभी भी कार्य पूर्ण नहीं हो सकता आज उसी का साधन भी चल रहा है।

अरविन्द मन्दिर से।


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