दर्पण में अपना मुख देखकर उसमें जो कुछ दोष होता है, उसे निकाल कर तुम अपने मुख की काँति बढ़ाने का प्रयत्न करते हो। तुम्हारा चरित्र भी एक प्रकार का दर्पण है, जिसमें कि तुम अपने स्वभाव से भूषण-दूषण और गुण दोषों को भली प्रकार देख सकते हैं, जिसे देख कर तुम दूषणों का नाश और भूषणों में वृद्धि करने के लिए सचेत हो जाओगे। इसलिए महान् पुरुषों के चरित्रों का अध्ययन करो और अपने को सच्चरित्र बनाओ।
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जब तुम्हारा मन अनुचित कार्यों में लगना चाहे, तुम्हारे सदाचार में उत्साह कम मालूम पड़े, तब तब तुम महान पुरुषों के चरित्रों को पढ़ो, तुम अवश्य पुनः सावधान हो जाओगे।