वनस्पति घी से सावधान

June 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री स्वामी चिदानन्द जी सरस्वती)

कई समाचार पत्रों ने कथित वनस्पति घी की बड़ी-बड़ी तारीफ की है। एक दो पत्रों ने तो इसको जीवन-दातृ शक्तियों में से एक खास शक्ति कह कर इसका प्रचार व समर्थन किया है। इसी प्रकार एक दो भले आदमियों ने भी इसकी पूरी-पूरी प्रशंसा की है।

क्योंकि समाचार पत्र इसकी तारीफ करते हैं, और एक दो सज्जनों ने भी हम से इसके गुण वर्णन किए- इसलिए स्वयं मैंने भी अपने पाचक से कह कर कथित वनस्पति घी मंगाया, और उसका सेवन किया। यह रंग, सुगन्ध और स्वाद में असली गौ के घी की तरह विशुद्ध प्रतीत हुआ। मैंने नहीं, अपितु मेरे पास आगत सैकड़ों अतिथियों ने भी इसे खाया। एक मास तक सेवन करने से इसका कोई विशेष बुरा प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़े ऐसा प्रतीत नहीं हुआ। किन्तु दूसरे मास से गला, आँख और पाचन शक्ति पर कुप्रभाव पड़ना आरम्भ हुआ-यहाँ तक हुआ कि मानो चक्कर खा रहा है, ऐसी अवस्था उत्पन्न हो गई।

अन्त में इसको खैर बाद कहना पड़ा और अपने अनुभव से इस नतीजे पर पहुँचा कि यह किसी प्रकार भी मनुष्य के लिए खाद्य वस्तु नहीं, और इसके सेवन से घर बैठे बैठाये पैसा खर्च करके रोगों को मोल लेना है।

कथित वनस्पति घी का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने का क्या कारण है? जब इसकी तहकीकात करनी शुरू की तो इसके विशेषज्ञों से मालूम हुआ कि यह चीज मिट्टी के तेल, मछली के तेल, नारियल के तेल, तोडिये के तेल, मूंगफली के तेल, बिनोले तथान्यान्य घटिया चीजों में सोडा कास्टिक, निकल धातु और हाइड्रोजन गैसें (इन सभी में स्वास्थ्य घातक विष है-ऐसा डॉक्टर कहते हैं) डाल कर उन तेलों की गन्ध तथा रंग को दूर करके शुद्ध घी जैसा रंग तथा गन्ध वाली चीज बना दी जाती है। मछली आदि के तेलों को घी का रूप और गन्ध देने से उसमें शुद्ध गो-घृत के गुण उत्पन्न नहीं होते, अपितु सोडा कास्टिक आदि के स्वास्थ्य घातक गुण उस तेल में आ जाने के कारण स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक बन जाता है।

कथित वनस्पति घी के सेवन करने वालों ने जो हानियाँ हमें बताई है, उनमें से कुछ इस प्रकार हैंः-

कथित वनस्पति घी-(1) बच्चों की बढ़ती को रोकता है। (2) बच्चों में सूखा रोग पैदा करता है (3) पाचन शक्ति को मन्द करता है। (4) कण्ठ को खराब करता है। (5) आँख व दांतों को खराब करता है। (6) सिर में चक्कर पैदा करता है। (7) शरीर के जीवन तत्वों का नाश करता है। (8) दूध पिलाने वाली माताओं के स्तनों का दूध सूख जाता है। (9) प्रमेह व प्रदर रोग को पैदा करता है। (10) उसके सेवन से शरीर में सुस्ती और काहली बनी रहती है।

डा. कर्नल एफ.पी. मैकी, इण्डियन मेडिकल सर्विस डायरेक्टर महकमा विटेरियालोजिकल बम्बई की वनस्पति घी के सम्बन्ध में सम्मति है, कि-”वनस्पति घी में प्राण पोषक पदार्थ पवित्र घी की भाँति नहीं होते। कई प्रकार के तेल जिनसे वनस्पति घी बनता है, ऐसे हैं कि उनमें नाममात्र भी प्राण पोषक पदार्थ नहीं है। यह घी तो किंचित मात्र भी बाजार में नहीं बिकना चाहिए। नगर के म्यूनिसिपल बोर्डों को इसकी बिक्री बिल्कुल बन्द कर देने चाहिए, नहीं तो इसका यह फल होगा कि बालक और वृद्ध इन तेलों को खाकर अपने स्वास्थ्य को बरबाद कर लेंगे। यह मैं कदापि आज्ञा नहीं दूँगा कि यह घी काम में लाया जावे।”

इसी प्रकार-रासायनिक पंजाब सरकार का कथन है कि-”वनस्पति घी की जाँच की गई उसमें वह गुण नहीं है जो घी में शक्ति बढ़ाने के सम्बन्ध में पाया जाता है। यह अत्यन्त आवश्यक है कि उन्हें बच्चों की माताओं को जो बच्चों को दूध पिलाती हों, यह वनस्पति न दिया जाय।”

हकीम अजमल खाँ साहब के सुपुत्र और तिब्बिया कालेज के मन्त्री हकीम जीमल खाँ कहते हैं कि-”वनस्पति घी जिन-जिन चीजों और विधियों से तैयार किया जाता है, उन सब की वैज्ञानिक तहकीकात की गई, उससे पूर्णतः सिद्ध हो गया कि न यह प्राकृतिक मानवी भोजन है और न ही मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए किसी रूप में लाभदायक है। मैं भारतीय जनता से प्रार्थना करता हूँ कि वह अपने लाभ व हानि की बात को स्वयं समझने का यत्न करें। यदि उसे अपने स्वास्थ्य का ध्यान है, तो भोजन के विषय में पूरी छान बीन से काम ले और वनस्पति घी का प्रयोग कतई न करे।

कुछ अन्य सम्मतियाँ देखिये-”यह घी देखने में तो शुद्ध और निर्मल प्रतीत होता है, परन्तु इस में मनुष्य के शरीर की चर्बी को घोलने वाला पदार्थ नहीं है। इस घी के खाने से लाभ के स्थान में हानि होती है।”

डा. कैप्टिन डीआर थामस पंजाब।

“वनस्पति घी जो कि बनाने वालों की होशियारी से आजकल बहुत प्रचलित हो रहा है, मनुष्य मात्र के लिये हानिकारक है। निर्धन लोग जो शुद्ध घी नहीं ले सकते वनस्पति घी को खाते हैं, इससे इनको नाना प्रकार की बीमारियाँ लग जाती है। दाँत खराब हो जाते हैं। शरीर की गठन और बढ़ने में अन्तर पड़ जाता है और शारीरिक शक्ति भी कम हो जाती है।”

डॉक्टर फिलमर

6 -”वनस्पति घी के बनाने वालों में से कुछ की सम्मति है, कि वनस्पति घी नब्बे प्रतिशत शुद्ध घी की मिलावट में काम आता है, इस मिलावट का अन्दाजा तीन करोड़ रुपये सालाना हैं। यदि मिलावट बन्द हो जाय तो वार्षिक तीन करोड़ का लाभ गाँव वालों को पहुँचेगा।”

-डा. एन सी राईट विशेषज्ञ भारत सरकार।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: