आस्ट्रले, सिविल सर्जन

June 1941

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गरीब और अनपढ़ युवक का प्रयत्न

चारों ओर मोटरों, बसों, ट्रकों और अन्यान्य सवारियों का ताँता लगा हुआ था। इसी भीड़ में एक बालक उधर निकल रहा था तो एक मोटर की चपेट में आ गया। पटक लगने से वह एक ओर गिरा और पत्थर से टकराकर उसकी एक नस टूट गई। टूटी हुई नस में से पिचकारी की तरह खून निकलने लगा।

तमाशाइयों का जमघट लग गया। सब लोग दुःख प्रकट कर रहे थे, और उसे देखने के लिये एक दूसरे को धकेल कर आगे पहुँचने की कोशिश कर रहे थे, पर किसी से कुछ न बन पड़ रहा था। इस लड़के को क्या किया जाय, यह किसी की समझ में न आता था। निश्चय था कि कुछ मिनट और इसी प्रकार खून बहता तो लड़का मर जाता।

उसी समय भीड़ में से एक युवक आगे बढ़ा और उसने सावधानी के साथ नस के ऊपरी हिस्से को बाँध दिया। इससे रक्त का प्रवाह रुक गया और लड़के की जान बचा लेने के लिए उस युवक की खूब प्रशंसा की। प्रशंसा से प्रोत्साहित होकर उस युवक ने निश्चय किया कि-’अब चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन करूंगा, ताकि इस प्रकार के पीड़ितों की जान बचा सका करूं।”

इस युवक का नाम आस्ट्रले था, बेचारा बहुत मामूली घर में पैदा हुआ और बहुत ही कम पढ़ा लिखा था। इस समय जवान हो चला था, पर उसका उत्साह तो देखो। किसी भी बात की परवा किये बिना कालिदास की तरह विद्याध्ययन में जुट गया और अनेक प्रकार के संकटों का सामना करते हुए डाक्टरी की उच्च कक्षा तक बराबर अपने कार्य में दत्तचित्त होकर जुटा रहा।

अन्त में यह युवक संसार का प्रसिद्ध सिविल सर्जन हुआ। आस्ट्रले की कीर्तिध्वजा विश्व भर में उड़ रही है। हम पग पग पर आपत्तियों से डरने वालों को आस्ट्रले से बहुत कुछ शिक्षा मिल सकती है।


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