महात्मा ईसा के उपदेश

June 1941

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(मत्ती रचित इन्जील से)

धन्य है वे जिनका मन अहंकार रहित है, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। धन्य है वे जो अपनी भूलों के लिये पश्चाताप करते हैं क्योंकि वे शान्ति पायेंगे। धन्य है वे जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। धन्य है वे जिन्हें धर्म की क्षुधा और पिपासा है, क्योंकि वे तृप्त किये जावेंगे। धन्य है वे जो दयावान् है, क्योंकि उन पर दया की जायगी। धन्य है वे जो ऐक्स का प्रचार करते है, क्योंकि वे परमेश्वर के सच्चे पुत्र कहलावेंगे। धन्य है वे जो धर्म के लिये कष्ट सहते हैं, क्योंकि स्वर्ग पर उन्हीं का अधिकार होगा।

दुनियादार कहते हैं-जैसे को तैसा, लात का जवाब लात और घूँसे का घूँसा। पर मैं तुम से कहता हूँ कि दुष्टों से भी बदला मत लो, जो तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे उसकी ओर दूसरा गाल फेर दो। जो तुम्हारा कुर्ता लेना चाहे उसे अपना लिहाफ भी दे दो। जो तुम से कोस भर बेगार लेना चाहे उसके साथ दो कोस चले जाओ। जो तुम से माँगे उसे दे दो। ऋण बाँटने में मुँह न मोड़ों।

लोग कहते हैं कि मित्र से मित्रता करो और शत्रु से द्वेष। पर मैं तुमसे कहता हूँ कि-अपने बैरियों से प्रेम रखना और सताने वालों के लिये प्रार्थना करना, इससे तुम परमात्मा के श्रेष्ठ सन्तान सिद्ध होगे, पिता धर्मी और अधर्मी दोनों के यहाँ मेह बरसाता है, सूर्य भले और बुरे दोनों पर ही उदय होता है। यदि तुम अपने मित्रों से ही प्रेम करो तो नीच लोगों में और तुम में क्या अन्तर रह जायेगा? यदि तुम अपने भाइयों को ही नमस्कार करो तो क्या बड़ा काम करोगे? ऐसा तो सब कोई करते हैं। तुम्हें ऐसा ही उदार बनना चाहिये, जैसा कि परमपिता परमात्मा है।


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