(महात्मा गाँधी)
उस वर्ष अपनी मैसूर की मुसाफिरी में मैं कितने ही गरीब आदमियों से मिला था। पूछने पर मालूम हुआ कि वे यह नहीं जानते कि उनका राजा कौन है। उन्होंने सिर्फ यही कहा कि उनका देवता राज करता होगा। जब कि इन गरीब देहातियों का ज्ञान अपने शासक के विषय में इतना कम है, तब मैं इस पर क्यों आश्चर्य करूं कि मैं राजाओं के राजा परमात्मा के अस्तित्व को नहीं जानता, जो मुझसे महाराजा मैसूर अपनी प्रजा से जितने बड़े हैं उसके अनन्त गुणा अधिक बड़ा है। मगर तो भी जैसे कि मैसूर के गरीब देहातियों को अनुभव होता था, मुझे भी ऐसा अवश्य लगता है कि विश्व में नियमितता है, व्यवस्था है, सभी प्राणियों, सभी वस्तुओं के सम्बन्ध में जिनका कि इस संसार में अस्तित्व है, कोई अपरिवर्तनीय, अटल नियम लागू होता है। यह कोई अन्धा निष्प्राण नियम नहीं है, क्योंकि कोई निष्प्राण नियम सजीव प्राणियों पर शासन नहीं कर सकता। सर जगदीशचन्द्र बोस की खोजों की बदौलत तो अब सभी पदार्थों को सजीव कहा जा सकता है, इसलिये जो नियम सभी प्राणियों, सभी जीवों पर शासन करता है, वह परमात्मा है।
मैं धुँधले तौर पर यह अनुभव जरूर करता हूँ कि जब कि मेरे चारों ओर सभी कुछ बदल रहा है, मर भी रहा है, जो कभी नहीं बदलती, जो सबको एक में बाँध कर रखती है। जो नयी सृष्टि पैदा करती है। यही शक्ति ईश्वर है, परमात्मा है। मैं इन्द्रियों से जिसका अनुभव कर पाता हूँ उनमें से और कोई वस्तु टिकी नहीं रह सकती, नहीं रहेगी। इसलिये ‘तत्सत्’ एक वही है।
उपनिषद् चर्चा-