अपने परिश्रम से महत्ता और उपयोगिता प्राप्त करके महान् और उत्तम बने हुए पुरुषों के जीवन चरित्र का अवश्य अभ्यास करना चाहिये। ऐसे अभ्यास से प्रोत्साहन और उच्च विचार प्राप्त होते हैं ।
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दूसरों से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है।