प्रसन्न रहना परम कर्त्तव्य है, हम यदि स्वयं प्रसन्न रहते हैं तो संसार का महान उपकार करते हैं।
हँसी वह तेल है जिसके बिना जीवन रूपी दीप बुझ जाता है।
किसी दोष पर हम सहृदयता और हास्य से हँसें और अपराधी को भी हँसाये, तो सहज में ही बिना मनोमालिन्य के सुधार हो सकता है।