सफलता पर दुःख

July 1941

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भारत के माननीय महानुभाव गोपाल कृष्ण गोखले जब छोटे थे और पाठशाला की किसी छोटी कक्षा में पढ़ते थे तब उनके अध्यापक ने उन्हें अंक गणित के कुछ प्रश्न हल करने के लिये दिये। वही प्रश्न कक्षा के अन्य बालकों को भी दिये गये थे।

बालकों में से और कोई उन प्रश्नों को हल न कर सका। किन्तु गोखले के सारे सवाल ठीक थे। उस पर अध्यापक ने उनकी खूब प्रशंसा की और प्रथम श्रेणी के नम्बर दिये।

प्रथम श्रेणी के नम्बर पाकर और प्रशंसा सुन कर बालक गोपाल की आंखें बहने लगीं और वे फूट फूट कर रोने लगे। इस विचित्र बात का कोई भी कुछ अर्थ न समझ सका। बालक और अध्यापक आश्चर्य में पड़ गये कि एक विद्यार्थी को अपनी सफलता पर प्रसन्न होना चाहिए, किन्तु यह तो उलटा रोता है।

अध्यापक ने उसको पुचकारते हुए रोने का कारण पूछा बालक गोखले ने रोते-रोते कहा-गुरु जी, इन प्रश्नों को मैंने बेईमानी से हल किया है। ऊँची कक्षा के एक दूसरे विद्यार्थी से चुपके से मैंने इन प्रश्नों के हल पूछ लिये थे और उन्हें ही लिखकर आपके सामने ले आया। अब जब मैं प्रथम श्रेणी के नम्बर प्राप्त कर रहा हूँ तो मुझे बड़ा दुख हो रहा है। मैंने आपको धोखा देकर जो सफलता प्राप्त की है उसके लिए मेरे हृदय में बड़ा पश्चात्ताप हो रहा है।

गुरु ने बालक को उठा कर छाती से लगा लिया और कहा-पुत्र! तेरी आत्मा में सत्य का तेज जाग्रत है। एक दिन तू महापुरुष होगा। सचमुच एक दिन गोखले ने बड़ा ऊँचा सम्मान प्राप्त किया और वे देश के माननीय नेता कहलाये।


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