तिब्बत के लामा योगी

July 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ले-श्री विश्वामित्र वर्मा)

डॉक्टर अलेक्जेण्डर कैनन, हाँकाँग (चीन) में नाइट पदवी धारी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, तथा गुप्त विद्याओं के रहस्यों के गम्भीर अन्वेषक हैं। एक लामा योगी ने उनको निमंत्रण दिया था। अतः वे अपने एक साधु मित्र के साथ लामा योगी के यहाँ जा रहे थे। उन्हें इस यात्रा में तथा जीवन भर में आध्यात्मिक तथा योग के सम्बन्ध में जो अनुभव हुए उनको (Invisible Influence) नामक पुस्तक में उन्होंने लिखा है। उपर्युक्त यात्रा के वृत्ताँत में एक स्थान पर वे लिखते हैं -

“जहाँ लामा रहते थे, उस मन्दिर के पास हम पहुँच रहे थे। मन्दिर कुछ ही दूर सामने था। परन्तु रास्ते में हमारे सामने एक बड़ी खाई थी, जिसे हम पार कर ही नहीं सकते थे। वह खाई पचास गज चौड़ी और बहुत गहरी थी। समझदार और अर्न्त दर्शी लामा ने हमारी सहायता के लिये अपना एक दूत भेजा था, जो खाई के किनारे हमें उपस्थित मिला। उस दूत ने खाई पार करने के लिये प्राणायाम, शिथिलीकरण तथा कुछ और ऐसे ही योग के साधन बतलाये। यद्यपि योग के साधनों से हम अभयस्त थे, तथापि खाई पार करने के लिए ऐसे साधन करने में उस समय मन ही मन हँसी आई और आश्चर्य हुआ, तथा खाई पार करने के लिये वे साधन हमें वैसे ही प्रतीत हुए जैसे कि मन के लड्डुओं से पेट भरना। दूत ने हमें एक प्रकार का प्राणायाम तथा (्नह्वह्लशद्धब्श्चठ्ठशह्यद्बह्य) करने को कहा। आदेशानुसार हमने खाई पार करने की तैयारी इसी साधन द्वारा की। फिर एक क्षण में ही हम दोनों (मैं और मेरे साथी मित्र) खाई के उस पार कुशलपूर्वक पहुँच गये। परन्तु हमारे साथ जो बच्चे थे, वे इसी पार रह गये। हमने उन्हें लौट जाने को आज्ञा दे दी थी। हमने देखा कि हमारा सामान भी उसी पार पड़ा हुआ था।”

फिर जब डॉक्टर कैनन लामा योगी के यहाँ से कुछ सप्ताह पश्चात् लौटे तो खाई पार करते समय पुनः वैसी ही घटना हुई। जब भरी सभा में लोगों ने डॉक्टर साहब का स्वागत किया, उस समय तो उनका अनुभव और भी अजीब था। लामा बैठे हुये थे और उनके शरीर के चारों और तीन फीट के घेरे में नीले रंग का तेजस् था। फिर कफ न में लपेटा हुआ एक मृत मनुष्य का शरीर लाया गया। डॉक्टर साहब को उस शरीर को देखने जाँचने की अनुमति दी गई। परीक्षा करने पर डॉक्टर साहब को मालूम हुआ कि उस मनुष्य को मरे चौबीस घण्टे से अधिक समय बीत चुका है। इसके पश्चात लामा के आज्ञा देते ही उस मरे हुए मनुष्य ने आँखें खोलीं, फिर वह उठ कर खड़ा हो गया और दो साधुओं की सहायता से लामा की दृष्टि से अपनी दृष्टि मिलाता हुआ लामा के पास तक गया और प्रणाम कर वापस आकर पुनः कफ न में जाकर ‘मरा’ हो गया।

इस आश्चर्य को देख कर डॉक्टर साहब के मन में यह प्रश्न उठा कि क्या प्राणायाम और राजयोग युक्त साधन की कोई घटना है, अथवा और कुछ है उन्होंने प्रश्न किया ही नहीं कि इतने में बिना कुछ पूछे या सुने ही, मानो विचारों द्वारा ही लामा को डॉक्टर साहब के मन के विचार मालूम हो गये हों, लामा ने उत्तर दिया। यह मनुष्य सात वर्ष से मरा हुआ है तथा अगले सात वर्षों तक भी इसी प्रकार सुरक्षित मृत अवस्था में रह सकता है। इसकी आयु कई सौ वर्षों की तथा और भी कई सौ वर्षों तक यह इसी प्रकार जिन्दा रह सकता है।

तब डॉक्टर साहब ने प्रश्न किया कि इसके शरीर के गुप्त मन और आत्मा कहाँ हैं? जाँच करने तो यह मालूम पड़ा। लामा ने उत्तर दिया कि इसका आत्मा और मन खास कार्यों के लिये पृथ्वी पर सर्वत्र भेजा जाता है खाई पार करने में जिसने आपको सहायता दी थी वह यही दूत था।

लौटते समय भी जब दूत खाई पर उपस्थित था तब डॉक्टर साहब ने प्रश्न किया -’मुझे जीव में ऐसे अजीब अनुभव क्यों हो रहे हैं? दूत ने ठाकुर साहब की त्रिकुटी पर दृष्टि जमाते हुए प्रेम से उत्तर दिया-हम लोग आज कल की आधुनिक स्थिति के अनुसार आपका मूल्य नहीं आँकते, हम तो आपकी विमूढ़ शक्तियों के अनुसार आपकी जाँच करते हैं। हमें तो आपके भविष्य से प्रयोजन है। आपके भविष्य में यह बात अंकित है और आपको श्रद्धापूर्वक इस मार्ग का अनुसरण करने से कोई रोक नहीं सकता।’

इसके अतिरिक्त डॉक्टर साहब ने और भी अजीब घटनाएं देखीं।

-कल्याण।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: