एक राजा ने किसी वैद्य से दवा बनवाई, जिसे सेवन करने से खूब कामोत्तेजना हो और मनमाना स्त्री भोग कर सके। बहुत धन खर्च करके वह दवा जब तैयार हुई तो राजा ने अपने गुरु के पास उसे परीक्षार्थ भेजा कि इसमें कोई हानिकारक पदार्थ तो नहीं हैं।
प्राचीन समय में आज कल जैसी वैज्ञानिक रसायन शालाएं न थीं, परन्तु विद्वानों का अनुभव और उनकी परीक्षण शक्ति बड़ी उन्नत होती थी। आज कल किसी वस्तु की परीक्षा यंत्रों की सहायता से होती है, उस समय के विद्वान् अपनी इन्द्रियों द्वारा इस प्रकार के परीक्षण कुछ क्षणों के अन्दर ही कर देते थे। गुरुजी ने थोड़ी सी औषधि चखी और उसमें कोई हानिकारक वस्तु न पाई। दवा जरा स्वादिष्ट थी, इसलिये गुरुजी ने एक दो तोले के ग्रास और भी चख लिये। दूतों ने गुरु जी द्वारा एक दो ग्रास खाने और उनके दवा को हानिरहित बताने का वृत्तान्त राजा से कह दिया।
राजा ने वह दवा उसी दिन से सेवन की तो रात भर काम वासना के मारे वह व्याकुल रहा। अनेक स्त्रियों से रति करने पर भी उसे शान्ति न मिली। प्रातः काल राजा जब दरबार को जाने लगा तो उसके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि इस औषधि की कुछ रत्ती मात्रा ही मैंने सेवन की है, तो मेरा यह हाल रहा, किन्तु गुरुजी ने तो इसमें से दो तोले खाई थी उनका क्या हाल हुआ होगा? राजा को परिणाम जानने की बड़ी उत्कण्ठा हुई और वह दरबार न जाकर गुरुजी के निवास-स्थान पर चल दिया। चुपचाप पहुँच कर उसने देखा कि वे शास्त्रों के अध्ययन में बड़ी तन्मयता से लगे हुए हैं। उनका चित्त बड़ी स्थिरता के साथ अपने कार्य में लगा हुआ है।
राजा ने गुरु के सन्मुख जाकर उन्हें प्रणाम किया। गुरु ने आशीर्वाद देते हुये उनका स्वागत सत्कार किया और तदुपरान्त उससे असमय आने का कारण पूछा। राजा ने अपने चित्त का सारा संदेह कह सुनाया-महाराज! जब दो रत्ती के सेवन से मैं काम वासना के मारे व्याकुल हो रहा हूँ, तो दो तोले खा लेने के उपरान्त क्या हाल हुआ होगा।
राजा के अज्ञान पर गुरुजी को हंसी आई। उन्होंने सोचा यह मूर्ख केवल तर्क से न समझेगा इसलिये इसे उदाहरण देकर समझाना चाहिये। उन्होंने राजा से कहा-राजन्! आपका शंका समाधान यथा समय किया जायगा। इस समय आप दो गरीब नौजवान कहीं से पकड़वा मंगाइये। राजा ने अपने नौकरों को वैसा ही आदेश दिया। तदनुसार दो लकड़हारे नवयुवक दरबार में उपस्थित किये गये।
गुरुजी ने आदेश किया कि इसके लिये भोजन और आराम का उत्तम प्रबन्ध किया जाय और ब्रह्मचर्य से रखा जाय। जब इन्हें किसी विशेष वस्तु की आवश्यकता हो तो मेरे पास खबर पहुँचवाई जाय। गुरु जी की आज्ञानुसार सारा प्रबन्ध हो गया। लकड़हारों को बहुत ही बढ़िया-बढ़िया भोजन मिलने लगे और मनोरंजन के सब सामान नृत्य वाद्य उनके सामने उपस्थित किये गये। इस प्रकार कई मास बीत गये। अब वे लड़के खूब हृष्ट पुष्ट हो गये थे। संरक्षकों ने उनसे किसी आवश्यकता के लिये पूछा तो उन्होंने इच्छा प्रकट की कि उनका विवाह कर दिया जाय। रोज उनकी यही माँग होने लगी। इसकी सूचना गुरुजी और राजा के पास पहुँचने लगी।
गुरु जी ने राजा के द्वारा उन लकड़हारों से कहलवा-दिया तुम्हें अगले सोमवार को काली के मन्दिर में बलिदान किया जावेगा। इसलिये जो कुछ भी तुम्हारी इच्छा हो तो पूरी कर लो। उसी दिन उन दोनों के लिए सुन्दरी स्त्रियाँ भी उपस्थित कर दी गईं। और नौकरों को हिदायत कर दी गई कि जो कुछ भी यह माँगे फौरन लाकर उपस्थित किया जाय।
बेचारे लकड़हारे मृत्यु के भय से सन्न रह गये। एक सप्ताह बाद गरदन काटी जायगी उस भय के मारे उनकी मनोदशा बिलकुल बदल गई। अन्न जल अच्छा न लगता, नाच-गाना बिलकुल बन्द हो गया, दुख और चिन्ता के मारे उनका शरीर कृश होने लगा। जो स्त्रियाँ उनकी सेवा के लिए उपस्थित की गई थीं, वे उनकी ओर निगाह उठाकर भी न देखते। दिन रात शोक में बैठे हुए आँसू बहाते रहते।
इस प्रकार जब दो रोज बीत गये तो गुरुजी राजा को लेकर उन लकड़हारों को देखने पहुँचे। देखा कि उन्हें किसी बात में रुचि नहीं रही है। विवाह के लिये जो दिन रात रट लगाये रहते थे, वे सुन्दरी स्त्रियों की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखते तब गुरु ने राजा को समझाया कि राजन्! इन्हें विश्वास हो गया है कि पाँच रोज बाद हमारी मृत्यु हो जायगी, इस भय से इनकी सारी वासनाएं मर गई हैं। जिन्हें पाँच दिन जीने का भी विश्वास नहीं और हर घड़ी मृत्यु को अपने सिर पर खड़ी देखते हैं, उन्हें कोई भी उत्तेजक दवा उसी प्रकार प्रभावित नहीं करती जैसे कि इन लकड़हारों के सामने बैठी हुई सुन्दरियाँ इनका ध्यान अपनी ओर नहीं खींच पातीं। राजा की शंका का समुचित समाधान हो गया।
कथा बतलाती है कि दवा शक्ति है। शक्ति और सत्ता प्राप्त करके अज्ञानी और विषयी मनुष्य मदान्ध बन जाते हैं। परन्तु वही शक्ति साधुजनों पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकती, क्योंकि वे जानते हैं कि हमारे मरणशील शरीर का अस्तित्व कितना तुच्छ है और इस क्षणिक जीवन में इतराना कितनी मूर्खता है। धन और वैभव अज्ञानियों को ही पागल बनाते हैं, सन्तजनों के पास यदि संपदा हो तो वे अभिमान नहीं करते, वरन् उनका अच्छे से अच्छा सदुपयोग करते हैं।