स्वामी रामकृष्ण परमहंस के उपदेश

July 1941

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किसी गाँव में जाते हुए एक महात्मा के पैर से एक मूर्ख का अंगूठा कुचल गया, क्रोधित हो उसने महात्मा को इतना मारा, कि वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। बड़ी कठिनाई से इलाज करने पर एक चेले ने पूछा, ये इलाज करने वाले कौन हैं, साधु बोला, जिसने मुझे पीटा था वह। सच्चे साधु शत्रु और मित्र में भेद नहीं समझते हैं।

माया परमात्मा को ऐसे ढक लेती है जैसे कि बादल सूर्य को ढ़क लेते हैं। जब बादल हट जाते हैं, तो सूर्य दिखाई देता है। ऐसे ही जब माया हट जाती है, तो भगवान के दर्शन हो जाते हैं।

परमात्मा और जीवात्मा में क्या सम्बन्ध है। जैसे किसी बहते पानी में कोई काष्ट का पट्टा पटकने से उसके दो भाग हो जाते हैं। ब्रह्म में कोई भेद नहीं परन्तु माया के कारण वे दिखाई देते हैं।

बुलबुला और पानी एक ही वस्तु हैं। वहीं बुलबुला पानी से बन कर उसी में मिल जाता है, ऐसे ही जीवात्मा और परमात्मा एक ही हैं। एक छोटा होने से परिमित है, दूसरा अपार है। एक पराधीन, दूसरा स्वाधीन है।

मछली की ताक में बैठे हुए एक बगुले पर एक शिकारी निशाना लगा रहा था। अवधूत बगुले को पीछे की कुछ चिन्ता न थी। अवधूत बगुले को प्रणाम कर बोला मैं भी आपकी तरह ईश्वर के ध्यान में किसी की तरफ निगाह न करूं।

मेंढक की दुम जब झड़ जाती है, तब जल और थल दोनों में रहता हैं। इसी तरह अज्ञान रूपी अंधेरा जब नष्ट हो जाता है, तब मनुष्य ईश्वर और संसार दोनों में रहता है।

जिस प्रकार सरसों की भरी हुई बोरी फटने से चारों तरफ सरसों फैल जाती है, उसको इकट्ठा करना मुश्किल है। उसी प्रकार सब दिशाओं में फिरने वाले मोह के चक्कर में ग्रसित मन को इकट्ठा करना कठिन हो जाता है।

ईश्वर का भक्त अपने ईश्वर के लिये सब सुखों तथा सब वस्तुओं का परित्याग कर देता है। जैसे कि चींटी चीनी के ढेर में मर जाती है, परन्तु पीछे नहीं लौटती है।

जैसे कि दूसरों की हत्या के लिये तलवारादि की जरूरत पड़ती है और अपने लिये एक सुई की नोंक ही काफी है। इसी तरह दूसरों को उपदेश देने के लिये बड़े 2 शास्त्रों की जरूरत है। परन्तु आत्मज्ञान के लिये महावाक्य पर दृढं विश्वास करना ही काफी है।

जो प्रलोभनों के बीच में रह कर मन को वश में करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करता है, वही सच्चा सूरमा है।

जिस तरह एक भिखारी एक हाथ से सितारा एक हाथ से ढोलक साथ में मुंह से गाता भी जाता है, उसी तरह संसारी जीवों, तुम भी साँसारिक कर्म करो, परन्तु ईश्वर के नाम को न भूल कर उसका भी ध्यान करते रहो।

जिस प्रकार (कुलटा) व्यभिचारिणी स्त्री घर के काम-काज को करते हुए भी अपने दिलदार की याद करती रहती है, उसी प्रकार तुम भी संसार के धन्धों को करते हुए भी ईश्वर का स्मरण करते रहो।

एक बार डुबकी लगाने से अगर मोती न मिले तो यह न कहना चाहिये कि समुद्र में मोती ही नहीं। दुबारा डुबकी लगाओ, मोती जरूर मिलेंगे, इसी तरह ईश्वर एक बार प्रयत्न करने पर न मिले तो यह न कहना चाहिये कि ईश्वर ही नहीं है। दुबारा फिर प्रयत्न करो।

कुतुबनुमा की सुई हमेशा उत्तर की ओर रहती है। इसी से समुद्र में जहाजों को अड़चन नहीं पहुँचती। इसी तरह जिसका ध्यान ईश्वर की तरफ है, वह संसार रूपी समुद्र में नहीं भटक सकता है।


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